क्षेत्रीय
29-Dec-2025
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- प्रदेश के हर संभाग में बनेगा सेंट्रलाइज्ड ड्रग वेयरहाउस। भोपाल (ईएमएस)। मप्र में सरकारी अस्पतालों में दवाओं की समय पर उपलब्धता और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए दवा आपूर्ति व्यवस्था में बड़ा बदलाव किया जा रहा है। मप्र पब्लिक हेल्थ सर्विसेज कॉरपोरेशन लिमिटेड ने प्रदेश के हर संभाग में सेंट्रलाइज्ड ड्रग वेयरहाउस स्थापित करने के प्रस्ताव को शासन ने स्वीकृति दे दी है। कॉरपोरेशन अधिकारियों के अनुसार, इस नई व्यवस्था से अस्पतालों में दवाओं की कमी, अनियंत्रित स्टॉक और एक्सपायरी दवाओं जैसी समस्याओं पर प्रभावी नियंत्रण संभव होगा। योजना को जमीन पर उतारने में करीब छह महीने का समय लग सकता है। अब तक अस्पतालों की मांग पर दवा कंपनियां सीधे अस्पतालों को दवाएं सप्लाई करती थीं। नई व्यवस्था में यह प्रक्रिया बदली जाएगी। प्रस्ताव के अनुसार, हर संभाग में एक आधुनिक ड्रग वेयरहाउस बनाया जाएगा, जहां अस्पतालों की जरूरत के अनुसार दवाओं का स्टॉक पहले से रखा जाएगा। इसके बाद यहीं से अस्पतालों को दवाएं वितरित की जाएंगी। सेंट्रलाइज्ड सिस्टम से दवा वितरण पूरी तरह योजनाबद्ध और नियंत्रित होगा। अस्पतालों को अनिवार्य रूप से तीन महीने का दवा स्टॉक रखने की जरूरत होती है, जिसे वेयरहाउस के माध्यम से आसानी से मैनेज किया जा सकेगा। सेंट्रल ड्रग वेयरहाउस को थर्ड पार्टी के माध्यम से बनाया जाएगा। साथ ही सप्लाई की जिम्मेदारी भी संबंधित एजेंसी की होगी। इसके लिए रेट तय किए जाएंगे। हालांकि दवा की खरीदी, जांच की जिम्मेदारी सरकार की होगी। यह स्टोर संभाग में मुख्यालय की जगह ऐसे शहर में बनाए जाएंगे, जहां से जिलों में दवा को सप्लाई करना आसान और कम समय में पहुंच सके। कॉरपोरेशन के अधिकारियों का यह भी दावा है कि दवाओं की गुणवत्ता जांच पहले से ही तीन स्तरों पर की जाती है, लेकिन अब इसे और सख्त किया जा रहा है। छिंदवाड़ा हादसे से सबक मप्र हेल्थ कॉरपोरेशन लिमिटेड के प्रबंध संचालक मयंक अग्रवाल का कहना है कि सेंट्रलाइज्ड ड्रग वेयरहाउस से सरकारी अस्पतालों में दवा आपूर्ति प्रणाली और अधिक मजबूत होगी। उन्होंने कहा कि मरीजों तक सुरक्षित और प्रभावी दवाएं पहुंचाना ही इस बदलाव का मुख्य उद्देश्य है। इस सेंट्रल ड्रग वेयरहाउस में छह महीने की दवाओं का स्टॉक किया जाएगा। इसके बाद प्रदेश के सभी सरकारी अस्पतालों में दवाओं की आपूर्ति यहां से की जाएगी। यह पूरी व्यवस्था छिंदवाड़ा कफ सिरप कांड से सबक लेकर बनाई जा रही है। उल्लेखनीय है कि छिंदवाड़ा में अमानक कफ सिरप से करीब 25 से अधिक बच्चों की मौत हो गई थी। इसके बाद प्रदेश में अमानक दवाईयों का मुद्दा तेजी से सामने आया। स्वास्थ्य विभाग और औषधि प्रशासन विभाग ने कई स्तरों पर सुधार के लिए काम किया। छिंदवाड़ा कफ सिरप कांड के बाद मध्यप्रदेश सरकार ने दवाओं की निगरानी को लेकर बड़े-बड़े दावे किए थे, लेकिन हकीकत इससे उलट नजर आ रही है। मप्र हेल्थ कॉर्पोरेशन की रिपोर्ट के अनुसार अगस्त से दिसंबर के बीच प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में करीब एक दर्जन अमानक दवाएं अमानक पाई गई। कॉर्पोरेशन का दावा है कि वेयर हाउस बनने के बाद ना केवल दवाओं जांच पुख्ता होगी, बल्कि अस्पतालों में दवाओं की कमी को भी नियंत्रित किया जा सकेगा। अमानक दवाओं के मामले आ रहे सामने प्रदेश में अमानक दवाओं के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। बीते छह महीने में कई दवाएं अमानक पाई गईं। रतलाम अधीक्षक ने उल्टी और मतली में काम आने वाली दवा डॉक्सिलामाइन पाइरिडोक्सिन की गुणवत्ता को लेकर विभाग को पत्र लिखा। दिसंबर 2025 में कब्ज केसाथ लिवर की बीमारी में दिया जाने वाली लेक्टोलस सोडियम दवा अमानक पाई गई। दिसंबर 2025 में दर्द निवारक डाईक्लोफेनिक सोडियम दवा की गुणवत्ता मानकों के अनुसार नहीं मिली। दिसंबर 2025 में ईयर ड्रॉप जेंटामाइसिन की की गुणवत्ता को लेकर विभाग को पत्र लिखा। सितंबर 2025 में टीबी के मरीजों को दी जाने वाली आइसोनियाजिड टेबलेट अमनक निकली। अक्टूबर 2025 में मानरिस रोगों की प्रमुख दवा एस्किटालोप्राम ऑक्सेलेट दवा भी मानक स्तर की नहीं थी। अभी प्रदेश के सभी सरकारी अस्पताल कॉरपोरेशन के माध्यम से सीधे डीलर्स से दवा खरीदते हैं। ऐसे में कई बार ऑर्डर तीन से छह महीने लेट हो जाते हैं और अस्पतालों में दवा की कमी हो जाती है। वेयर हाउस बनने के बाद दवा तत्काल अस्पताल के पास पहुंच जाएगी। पूर्व डीएमई डॉ. एके श्रीवास्तव ने बताया कि अमानक दवा बीमारी को जड़ से खत्म करने में कम कारगर होती है। वहीं दवाओं का गुणवत्ता विहीन होना अलग बात है। अगर दवा की गुणवत्ता सही नहीं होगी तो इससे मरीजों को सामान्य एलर्जी से लेकर किडनी और अन्य अंगों पर प्रतिकूल प्रभाव भी हो सकते हैं। सरकारी अस्पतालों में दवा पहुंचने से पहले तीन स्तर पर जांच होती है। कंपनी के ओके रिपोर्ट के बाद इन दवाओं को एनएबीएल लैब से भी सर्टीफिकेट लेना होता है। इसके बाद कॉर्पोरेशन अस्पतलों से रेंडम सैम्पलिंग करता है। रेंडम सैम्पलिंग के दौरान कई बार दवा अमानक मिलती है। वेयर हाउस में दवा स्टॉक करने से पहले तीनों स्तरों पर जांच कर ओके रिपोर्ट ली जाएगी। ऐसे में अमानक दवाओं का खेल पूरी तरह खत्म हो जाएगा। मयंक अग्रवाल ने बताया कि सेंट्रल ड्रग वेयरहाउस के लिए निविदाएं बुलाई जा चुकी हैं। अगले साल इसे शुरू कियाा जाएगा। इससे अमानक दवाओं की सप्लाई पूरी तरह से निष्क्रिय हो जाएगी। विनोद / 29 दिसम्बर 25