राष्ट्रीय
29-Dec-2025


नई दिल्ली,(ईएमएस)। भारत सरकार लंबे समय से आत्मनिर्भर भारत बनने की बात कर रही है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि आज भी देश कई रोजमर्रा के सामनों के लिए आयात पर निर्भर है। छाते, चश्मे, सूटकेस, मशीनें और यहां तक कि खेती-बाड़ी में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों तक का बड़ा हिस्सा विदेशों से आता है। खास तौर पर चीन भारत का सबसे बड़ा सप्लायर बना हुआ है, जिससे व्यापार घाटा बढ़ रहा है। यह देखकर मोदी सरकार आने वाले बजट में बड़ा कदम उठाने की तैयारी में है। योजना यह है कि कुछ चुनिंदा वस्तुओं पर कस्टम ड्यूटी बढ़ाए और देश में उनके उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए आर्थिक प्रोत्साहन (इंसेंटिव) दिया जाए। मोदी सरकार ने करीब 100 इसरतरह के उत्पादों की पहचान की है, जिनमें इंजीनियरिंग सामान, स्टील उत्पाद, मशीनरी और रोजमर्रा की उपयोग की वस्तुएं शामिल हैं। अभी इन पर 7.5 से 10 प्रतिशत तक आयात शुल्क लगता है, जिसे बढ़ाया जा सकता है। आंकड़े समस्या की गंभीरता को दिखाते हैं। अप्रैल से नवंबर 2025 के बीच भारत ने जहां 292 अरब डॉलर का निर्यात किया, वहीं 515.2 अरब डॉलर का आयात किया। इससे देश का व्यापार घाटा काफी बढ़ा है। सिर्फ चीन के साथ व्यापार में भारत को करीब 72 अरब डॉलर का घाटा हुआ। छातों के आयात में करीब 85 प्रतिशत हिस्सा चीन से आता है, वहीं चश्मों और गॉगल्स के मामले में भी आधे से ज्यादा माल चीन का है। केंद्र सरकार मानती है कि सिर्फ आयात शुल्क बढ़ाने से समस्या हल नहीं होगी। घरेलू उद्योगों को गुणवत्ता और लागत दोनों मोर्चों पर मजबूत बनाना होगा। अभी कई भारतीय उत्पाद महंगे हैं और उनकी गुणवत्ता आयातित सामान से कम मानी जाती है, जिससे वे प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाते। इसलिए उद्योगों को तकनीक, कौशल और सप्लाई चेन सुधार पर ध्यान देना होगा। आत्मनिर्भर भारत का सपना तभी साकार होगा जब देश में उत्पादन बढ़े, रोजगार के नए अवसर बनें और भारतीय उत्पाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर टिक सकें। इसके लिए सरकार और उद्योग जगत दोनों को मिलकर काम करना होगा। आयात पर जरूरत से ज्यादा निर्भरता कम करना केवल आर्थिक मजबूरी नहीं, बल्कि देश की दीर्घकालिक आर्थिक सुरक्षा के लिए भी जरूरी है। आशीष दुबे / 29 दिसंबर 2025