लेख
31-Dec-2025
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(01 जनवरी वैश्विक परिवार दिवस) मनुष्य स्वभाव से एक सामाजिक प्राणी है और हमारी यह स्वाभाविक चाहत रहती है कि हम ऐसे लोगों की तलाश करें जिनसे हमारे विचार, संस्कार और भावनाएं मेल खा सकें। यह जुड़ाव हमें सुरक्षा और अपनत्व का अहसास कराता है, लेकिन अक्सर यही चाहत सीमाओं का रूप ले लेती है। जब हम अपनी पहचान को धर्म, जाति, भाषा और संकीर्ण विचारधाराओं के आधार पर गुटों में बांट देते हैं, तो यही जुड़ाव भेदभाव और समाज में बिखराव का कारण बन जाता है। विशेषकर भारतीय समाज में, जहाँ विविधता हमारे प्राण हैं, वहां अपनी व्यक्तिगत पहचान को अपनी मानवीय पहचान से ऊपर रख लेना समाज के ताने-बाने को कमजोर करता है। हमें यह गहराई से समझना होगा कि किसी भी समुदाय या क्षेत्र का हिस्सा होने से पहले, हमारी सर्वोपरि पहचान एक इंसान की है। भारतीय संस्कृति ने सदैव वसुधैव कुटुंबकम् का संदेश दिया है, जिसका अर्थ है—पूरी विश्व एक परिवार है। हमारे पूर्वजों ने सिखाया है कि संकुचित सोच वाले लोग ही अपना और पराया देखते हैं, जबकि उदार मन वालों के लिए समस्त संसार ही आत्मीय होता है। इसी महान सोच को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देने के लिए हर साल 1 जनवरी को वैश्विक परिवार दिवस मनाया जाता है। नए साल का यह पहला दिन हमें याद दिलाता है कि हम केवल अपने रक्त-संबंधियों या भौगोलिक सीमाओं तक सीमित न रहें, बल्कि पूरी दुनिया को एक सूत्र में पिरोएं। यह दिन हमें हमारी उस जिम्मेदारी का बोध कराता है जिसके तहत हमें आपसी मतभेदों और संकीर्णता से ऊपर उठकर विश्व में शांति, समझ और आत्मीयता का विस्तार करना है। आइए, इस नए साल के अवसर पर हम जाति-पाति और वैचारिक भेदभाव को भुलाकर एक-दूसरे के प्रति सम्मान, करुणा और अखंड एकता का वादा करें, ताकि हम वास्तव में एक वैश्विक परिवार की तरह प्रगति कर सकें। वैश्विक परिवार दिवस की जड़ें नवंबर 1997 में छिपी हैं, जब संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष पुस्तक वन डे इन पीस ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा। इस किताब का सपना बड़ा ही पावन और सरल था—एक ऐसी दुनिया की कल्पना करना जो 1 जनवरी 2000 को, यानी नई सदी के पहले दिन, कम से कम 24 घंटे के लिए हर तरह की हिंसा और नफरत को भुलाकर पूरी तरह शांति के साथ मिल-जुलकर रहें। इसी नेक विचार से प्रेरित होकर, संयुक्त राष्ट्र ने शांति और अहिंसा को बढ़ावा देने के लिए एक विशेष दशक की घोषणा की और 1 जनवरी 1999 को आधिकारिक तौर पर वैश्विक परिवार दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा गया। इसका उद्देश्य यह था कि जब हम नई सदी की दहलीज पर कदम रखें, तो पूरी दुनिया एकजुट होकर शांति और भाईचारे का स्वागत करे। भारतीय समाज के लिए यह विचार नया नहीं है, क्योंकि हमारी रग-रग में वसुधैव कुटुंबकम् का संस्कार बसा है। हमारे लिए वैश्विक परिवार का अर्थ केवल एक दिवस नहीं, बल्कि वह जीवन दर्शन है जिसमें हम पर-हित को सबसे ऊपर रखते हैं। आज के समय में, जब दुनिया सीमाओं की दीवारें ऊंची कर रही है, तब यह दिन हमें याद दिलाता है कि जातियों, धर्मों और ऊंच-नीच के भेदभाव से ऊपर उठकर हम सब एक ही ईश्वर की संतान और एक ही वैश्विक परिवार के सदस्य हैं। जैसे एक आंगन में रहने वाले सदस्य अलग होने के बावजूद एक ही परिवार की मजबूती होते हैं, वैसे ही दुनिया की विविधता मानव परिवार की खूबसूरती है। हम अपनी संकीर्ण सोच को त्यागें और भारत के उस महान संदेश को जीवंत करें जहाँ पूरी दुनिया हमारे लिए सगे-संबंधियों के समान है। हमारा छोटा सा कदम, यानी एक-दूसरे के प्रति सम्मान और प्रेम, पूरी दुनिया में शांति और एकता का विस्तार कर सकता है। वैश्विक परिवार दिवस मनाने में हमारी पारिवारिक परंपराओं की बहुत बड़ी भूमिका होती है। परिवार के साथ बैठकर भोजन करने जैसी छोटी-सी आदत से लेकर, आने वाले साल के लक्ष्यों और सपनों को एक-दूसरे के साथ साझा करने तक—ये सभी गतिविधियाँ हमारे रिश्तों को मजबूती देती हैं और अपनेपन का अहसास कराती हैं। परंपराएँ ही वह धागा हैं जो हमें एकजुट रखती हैं। उदाहरण के तौर पर, इटली में परिवार अपने पूर्वजों को याद करने के लिए फैमिली ट्री बनाते हैं और पुरानी कहानियाँ सुनाते हैं। भारतीय परिवेश में तो परिवार ही हमारी सबसे बड़ी शक्ति है। हमारे यहाँ बड़ों का आशीर्वाद लेना, त्योहारों पर साथ मिलकर पकवान बनाना और मुश्किल समय में एक-दूसरे की ढाल बनना ही वह संस्कार है जो हमें वैश्विक परिवार के लिए तैयार करता है। जब हम अपने घर में शांति और प्रेम का माहौल बनाते हैं, तभी हम पूरी दुनिया में सद्भावना फैलाने की क्षमता रखते हैं। (लेखक पत्रकार हैं) ईएमएस / 31 दिसम्बर 25