लेख
31-Dec-2025
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हर वर्ष की विदाई दरअसल हमारे अपने कर्मों,निर्णयों और चूकों की विदाई होती है।जब हम वर्ष 2025 को अलविदा कह रहे हैं, तो यह केवल कैलेंडर का पन्ना पलटना नहीं है, बल्कि एक ऐसे दौर को पीछे छोड़ना है जिसने हमें बार-बार आईना दिखाया—हमारी सामूहिक चेतना, हमारे लोकतंत्र, हमारी संवेदनशीलता और हमारे भविष्य की दिशा का।* काल का च्रक महाकाल के इशारे पर अपनी धुरी पर निरतंर - र्निर्विध्न घुमता रहता है।समय का पहिया कभी नहीं रुकता।वह न किसी सत्ता या सरकार के आदेश का इंतज़ार करता है, न किसी विचारधारा की अनुमति लेता है।हर वर्ष की विदाई दरअसल हमारे अपने कर्मों,निर्णयों और चूकों की विदाई होती है।जब हम वर्ष 2025 को अलविदा कह रहे हैं, तो यह केवल कैलेंडर का पन्ना पलटना नहीं है, बल्कि एक ऐसे दौर को पीछे छोड़ना है जिसने हमें बार-बार सच्चाई का आईना दिखाया—हमारी सामूहिक चेतना,हमारे लोकतंत्र,हमारी संवेदनशीलता और हमारे भविष्य की दिशा का। एक बार फिर से वर्ष 2025 उम्मीदों और आशंकाओं के बीच झूलता रहा।यह वर्ष न पूरी तरह अंधकारमय था, न पूरी तरह ऊजालों से भरा रहा। यह वह समय था जब तकनीक ने अभूतपूर्व छलांग लगाई, लेकिन इंसानी रिश्तों में दूरी भी बढ़ी। यह वह साल था जब अर्थव्यवस्था के आँकड़े मजबूत दिखे, लेकिन आम आदमी की थाली, नौकरी और सुरक्षा पर सवाल उठते रहे। यह वह वर्ष भी था जब लोकतंत्र की संस्थाओं पर बहस तेज़ हुई और नागरिक अधिकारों को लेकर समाज दो स्पष्ट धाराओं में बँटा दिखा। 2025 ने हमें सिखाया कि विकास केवल सड़क, पुल और इमारतों का नाम नहीं है। .विकास का असली पैमाना यह है कि आख़िरी पंक्ति में खड़ा व्यक्ति कितना सुरक्षित, सम्मानित और सुना हुआ महसूस करता है।इस वर्ष ने यह भी बताया कि राष्ट्रवाद का सबसे सशक्त रूप वह होता है, जिसमें सवाल पूछने की आज़ादी सुरक्षित हो और असहमति को देशद्रोह न समझा जाए। राजनीतिक परिदृश्य की बात करें तो 2025 में राजनीति और जनभावना के बीच की खाई और स्पष्ट हुई। राजनीति नेताओं ने अपने चुनावी भाषणों में जनता को सपने दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी , उनके घोषणापत्रों में वादे थे, लेकिन ज़मीनी सच्चाइयों से उनका मेल हमेशा नहीं बैठ पाया। सत्ता और विपक्ष दोनों की भूमिकाओं पर जनता की निगाहें टिकी रहीं। संसद से लेकर सड़कों तक,बहसें गरम रहीं—कभी कानूनों को लेकर,कभी संस्थाओं की स्वायत्तता को लेकर, तो कभी अभिव्यक्ति की सीमाओं को लेकर। लोकतंत्र का सौंदर्य यही है कि वह सवालों से जीवित रहता है। 2025 में सवाल पूछे गए—कभी दबे स्वर में, कभी तेज़ आवाज़ में। पत्रकारिता, जो लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कही जाती है, उसने भी इस वर्ष अपनी कठिन परीक्षा दी। कहीं वह दबाव में दिखी, कहीं साहस के साथ खड़ी नज़र आई।सच और सत्ता के बीच की यह खींचतान 2025 की सबसे बड़ी पहचान बनकर उभरी।आर्थिक मोर्चे पर 2025 विरोधाभासों का वर्ष रहा। एक ओर स्टार्ट-अप,डिजिटल भुगतान,आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और ग्रीन एनर्जी जैसे क्षेत्रों में तेज़ प्रगति दिखी।दूसरी ओर बेरोज़गारी, महँगाई और असंगठित क्षेत्र की असुरक्षा ने लाखों परिवारों को चिंता में डाले रखा। शहरों की चमक और गाँवों की चुनौतियों के बीच की दूरी और गहरी होती प्रतीत हुई।यह वर्ष बार-बार याद दिलाता रहा कि अगर विकास समावेशी नहीं है, तो वह स्थायी भी नहीं हो सकता। शिक्षा और युवाओं के संदर्भ में 2025 एक निर्णायक मोड़ जैसा रहा। युवा ऊर्जा से भरे हैं, सपने देखते हैं, सवाल करते हैं। लेकिन उनके सामने अवसरों की अनिश्चितता, प्रतियोगिता का दबाव और मानसिक स्वास्थ्य की चुनौतियाँ भी हैं। इस वर्ष ने यह साफ़ किया कि केवल डिग्री बाँटना पर्याप्त नहीं, बल्कि कौशल, नैतिकता और रोजगार की ठोस व्यवस्था करना समय की मांग है। युवा अगर आश्वस्त नहीं होंगे,तो भविष्य भी अस्थिर रहेगा। तकनीक के क्षेत्र में वर्ष 2025 ऐतिहासिक रहा।आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस,ऑटोमेशन और डेटा-आधारित निर्णयों ने जीवन को सुविधाजनक बनाया,लेकिन साथ ही निजता,रोजगार और मानवीय हस्तक्षेप पर नए सवाल खड़े किए। यह वर्ष हमें चेतावनी देकर गया कि तकनीक साधन है, साध्य नहीं। अगर तकनीक का संचालन मानवीय मूल्यों के बिना हुआ, तो वह प्रगति नहीं, संकट बन सकती है। पर्यावरण के मोर्चे पर 2025 ने सबसे कड़ा संदेश दिया। जलवायु परिवर्तन अब भविष्य की आशंका नहीं, वर्तमान की सच्चाई बन चुका है। कहीं बाढ़, कहीं सूखा, कहीं भीषण गर्मी—प्रकृति ने साफ़ शब्दों में कहा कि उसका धैर्य टूट रहा है। विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन का सवाल अब टाला नहीं जा सकता। यह वर्ष हमें याद दिलाकर गया कि धरती केवल संसाधन नहीं, हमारी साझी विरासत है।अगर हम सामाजिक ताने-बाने की बात करें तो 2025 में सहिष्णुता की परीक्षा हुई।विविधता हमारे समाज की ताकत रही है,लेकिन इसे कमज़ोरी समझने की प्रवृत्ति भी दिखी। धर्म, जाति, भाषा और विचार के नाम पर खिंची लकीरें कहीं-कहीं और गहरी हुईं।फिर भी इसी समाज में ऐसे स्वर भी उभरे जिन्होंने संवाद, समरसता और मानवीय मूल्यों की बात की। यही विरोधाभास 2025 की आत्मा रहा। अब जब हम नववर्ष 2026 की दहलीज़ पर खड़े हैं, तो सवाल यह नहीं कि नया साल हमें क्या देगा, बल्कि यह है कि हम नए साल को क्या देंगे। क्या हम पुराने पूर्वाग्रहों को भी साथ लेकर जाएंगे, या उन्हें यहीं छोड़ देंगे? क्या हम केवल शिकायतों की सूची बढ़ाएंगे, या समाधान का हिस्सा बनेंगे? 2026 का स्वागत केवल आतिशबाज़ी और शुभकामनाओं से नहीं होना चाहिए,बल्कि संकल्पों से होना चाहिए।संकल्प—एक अधिक संवेदनशील समाज का, एक अधिक जवाबदेह शासन का, एक अधिक ईमानदार सार्वजनिक जीवन का। हमें यह स्वीकार करना होगा कि बदलाव किसी एक सरकार,संस्था या व्यक्ति से नहीं आता; वह सामूहिक चेतना से जन्म लेता है। नववर्ष 2026 हमें यह अवसर देता है कि हम संवाद को टकराव से ऊपर रखें।असहमति को शत्रुता न बनने दें। सवाल पूछने को अपराध नहीं, बल्कि जिम्मेदारी समझें। लोकतंत्र तभी मजबूत होगा जब नागरिक जागरूक, निर्भीक और संवेदनशील होंगे। आर्थिक रूप से 2026 से अपेक्षा है कि विकास के लाभ अंतिम व्यक्ति तक पहुँचें। रोजगार सृजन केवल आँकड़ों में नहीं, ज़मीन पर दिखे। किसान, श्रमिक, छोटे व्यापारी और मध्यम वर्ग—सभी को भरोसा मिले कि वे विकास की यात्रा के सहभागी हैं, दर्शक नहीं। पर्यावरण के संदर्भ में 2026 को चेतना का वर्ष बनना होगा। यह समझ विकसित करनी होगी कि प्रकृति के साथ युद्ध नहीं, सहअस्तित्व ही एकमात्र रास्ता है। नदियाँ, पहाड़, जंगल—ये केवल भौगोलिक संरचनाएँ नहीं, बल्कि हमारी सभ्यता की साँसें हैं। युवाओं के लिए 2026 आशा का वर्ष बन सकता है, बशर्ते उन्हें अवसर, मार्गदर्शन और विश्वास मिले। उनकी ऊर्जा को नकारात्मक दिशाओं में भटकने से रोकना समाज और शासन दोनों की जिम्मेदारी है। युवा अगर राष्ट्र निर्माण में सहभागी होंगे, तो भविष्य स्वतः सुरक्षित होगा। अंततः, वर्ष 2025 को अलविदा कहना केवल बीते समय को विदा करना नहीं है, बल्कि उसकी सीख को साथ लेना है।गलतियों से सीखकर आगे बढ़ना ही समय की सबसे बड़ी समझदारी है। नववर्ष 2026 हमारे सामने एक खुली किताब की तरह है—इसके पन्नों पर क्या लिखा जाएगा, यह हमारे आज के निर्णय तय करेंगे। आइए,इस नववर्ष 2026 पर यह संकल्प लें कि हम सभी अधिक संवेदनशील,अधिक जिम्मेदार और अधिक ईमानदार मानव बनेगें। क्योंकि जब समाज बेहतर बनता है, तभी वर्ष भी वास्तव में नया होता है। वर्ष 2025 को विनम्र विदाई के संग नववर्ष 2026 का स्वागत—उम्मीद, विवेक और विश्वास के साथ करें । हमारी हार्दिक शुभकामनाएं स्वीकार करे ।नव वर्ष मंगलमय हो (स्वतंत्र पत्रकार व स्तम्भकार) (यह लेखक के व्य‎‎‎क्तिगत ‎विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अ‎निवार्य नहीं है) .../ 31 ‎दिसम्बर /2025