राज्य
31-Dec-2025


मप्र के सातों शहरों में 100 प्रतिशत काम नहीं हो पाए भोपाल (ईएमएस)। मप्र में स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत सात शहर - भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर, सागर, सतना और उज्जैन को विकसित करना था। लेकिन इन शहरों में परियोजनाओं की गुणवत्ता, समय सीमा में देरी, और धन का सही उपयोग नहीं होने के कारण विकास अधूरा रह गया है। इस कारण स्मार्ट सिटी कागजों में ही सिमट कर रह गई है। आलम यह है की राजधानी भोपाल सहित अन्य शहरों के जिन क्षेत्रों में स्मार्ट सिटी को विकसित किया जा रहा था, वह लोगों की परेशानी का सबब बने गया है।स्मार्ट इंफ्रास्ट्रक्चर, स्मार्ट सेवाएं और बेहतर शहरी जीवन स्तर के उद्देश्य से शुरू की गई स्मार्ट सिटी परियोजना पर अब कई शहर आंसू बहा रहे हैं। भोपाल का टीटी नगर हो अथवा अन्य शहरों के प्रोजेक्ट, कहीं वीरानी छाई है तो कहीं काम अधूरे पड़े हैं। जानकारी के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा तय की गई समय सीमा पर काम पूरे नहीं हो पाए। इससे लोगों को परेशान होना पड़ रहा है। वर्ष 2015 में आरंभ हुए स्मार्ट सिटी मिशन में पहले भोपाल, इंदौर और जबलपुर फिर ग्वालियर, उज्जैन, सतना और सागर को शामिल किया गया। सतना में अब भी कई काम अधूरे हैं। अन्य छह शहरों में भी 100 प्रतिशत काम नहीं हो पाए। केंद्र सरकार ने स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट को बंद कर दिया है, बजट मिलना भी बंद हो गया है। प्रतिनियुक्ति पर लिए गए अधिकतर कर्मचारियों मूल विभागों में वापस भेजा जा रहा है। कुछ कर्मचारी आउटसोर्स पर लिए गए थे। स्मार्ट सिटी के अधूरे कामों पर पिछले दिनों नगरीय विकास एवं आवास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने कहा था कि नगर निगम के कुछ काम दिखते हैं और कुछ नहीं दिखते। ड्रेनेज लाइन और वाटर सप्लाई डिस्ट्रीब्यूशन लाइन जैसे कुछ काम जमीन के अंदर हुए हैं, जो नजर नहीं आते। लोग हमसे कहते हैं आपने पैसा कहां लगा दिया, सिटी तो स्मार्ट हुई नहीं? 11 परियोजनाएं अब भी अधूरी जानकारी के अनुसार, प्रदेश में 6,930 करोड़ रुपये की 662 परियोजनाएं स्वीकृत की गई थीं। इनमें से 6741.78 करोड़ रुपये की 651 परियोजनाएं ही पूर्ण हो पाईं। 188.22 करोड़ रुपये की 11 परियोजनाएं अब भी अधूरी हैं, इन्हें मार्च 2026 तक पूर्ण करना है। सतना शहर को स्मार्ट सिटी मिशन के तहत 20 अक्टूबर 2017 को पब्लिक लिमिटेड कंपनी स्थापित कर 1530.74 करोड़ का बजट स्वीकृत किया गया। इसमें एबीडी (एरिया बेस्ड डेवलपमेंट) के लिए 1171.41 करोड़ और पैन सिटी के लिए 285.64 करोड़ निधि निर्धारित थी। सतना स्मार्ट सिटी में प्रोजेक्ट्स थे, जिनमें से 29 ही पूर्ण हुए। 52 प्रोजेक्ट्स कार्य आदेश स्तर पर थे। देश की 100 स्मार्ट सिटीज में इसे 79वीं रैंक मिली थी, जो यह दर्शाता है कि फंड का उपयोग, में 81 प्रोजेक्ट पूर्ण करना और प्रदर्शन के मामले में शहर पिछड़ा रहा। 5.50 करोड़ का साइकिल ट्रैक, तीन साल से कम समय में ही उखडऩे लगा है। सांसद गणेश सिंह ने संसद में मुद्दा उठाकर थर्ड पार्टी जांच कराने की मांग की है। अधिकारी-कर्मचारी बैठकर ले रहे वेतन वर्ष 2016 से आरंभ हुए जबलपुर स्मार्ट सिटी लिमिटेड का कार्यकाल आधिकारिक तौर पर 31 मार्च 2025 को समाप्त हो चुका है। परंतु अधूरे प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार ने 30 दिसंबर 2025 तक इसकी अवधि बढ़ा दी है। स्मार्ट सिटी ने 10 वर्षों में 119 प्रोजेक्ट पर 940 करोड़ खर्च किए। वर्तमान में 23 (दो नियमित व 21 अस्थाई) अधिकारी-कर्मचारी स्मार्ट सिटी कार्यालय में कार्यरत हैं। एक अप्रैल 2025 को इनकी सेवाएं समाप्त कर दी थीं, लेकिन कर्मचारी हाई कोर्ट से स्टे ले आए। स्मार्ट सिटी फिलहाल वेतन, आफिस मेंटनेंस व अन्य खर्च एक करोड़ रुपये की एफडी पर मिलने वाले ब्याज व पूर्व प्रोजेक्ट से हो रही आय कर रही है। स्मार्ट सिटी को हर माह करीब दो करोड़ रुपये ब्याज व अन्य मदों से प्राप्त हो रहे हैं। वायदे सिर्फ कागजों में सिमटे बता दें, केंद्र सरकार ने लगभग 10 साल पहले स्मार्ट सिटी मिशन की शुरुआत की थी। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल को 28 जनवरी 2016 को पहले चरण में स्मार्ट सिटी के रूप में चयनित किया गया। इस दौरान शहर के विकास के लिए करीब 1 हजार करोड़ रुपए खर्च हुए। वहीं करीब 7 माह पहले 31 मार्च 2025 को स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के लिए केंद्र से फंडिंग बंद कर दी गई। हालांकि इतनी राशि खर्च होने के बाद भी न तो शहर स्मार्ट हुआ न ही फंड का सही इस्तेमाल हुआ। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट की शुरुआत में कई तरह के बड़े-बड़े वादे किए थे जो अब धरातल पर पूरे होते हुए नहीं दिख रहे हैं इसमें खास तौर पर नॉलेज हब, स्टार्ट हब और हेल्थ एजुकेशन हब जैसे काम अधूरे हैं। साथ ही पब्लिक एड्रेस सिस्टम और फ्री वाई-फाई जैसे वायदे भी कागजों से बाहर नहीं आ सके हैं। स्मार्ट कंपनी ने खुद की आमदनी के लिए जो प्रोजेक्ट तैयार किया वह भी अब वीरान है। दूसरी ओर टीटी नगर एरिया बेस्ड डेवलपमेंट के नाम पर हरियाली और मकानों को तोडक़र बनाया गया ये प्रोजेक्ट जीआइएस में नुमाइश किया गया। मगर उद्योग समूहों को इसमें कोई स्कोप नजर नहीं आया। पूरे स्मार्ट सिटी एरिया में 6 हजार से ज्यादा पेड़ थे, जिनमें से अधिकतर पेड़ यहां रहने वाले सरकारी कर्मचारियों ने ही लगाए थे। बताया जाता है कि इनमें से 2 हजार पेड़ काटे जा चुके हैं। विनोद/ 31 ‎दिसम्बर /2025