लंदन (ईएमएस) । सबसे बड़े खारे पानी की झील कैस्पियन सागर वर्तमान में गंभीर संकट का सामना कर रही है। इसके किनारे कई महत्वपूर्ण देश जैसे कजाकिस्तान, ईरान, अजरबैजान, रूस, और तुर्कमेनिस्तान स्थित हैं, जो इसके संसाधनों पर निर्भर हैं। लगभग 10 लाख स्क्वायर किलोमीटर में फैले इस विशाल जलाशय का आकार जर्मनी से भी बड़ा है। इसके लगातार सिकुड़ने के कारण इन देशों की लाखों लोगों की जीविका पर खतरा उत्पन्न हो रहा है। कैस्पियन सागर पर निर्भर देशों की अर्थव्यवस्था मछली पकड़ने, खेती, पर्यटन, और जल के साथ-साथ इसके विशाल तेल और गैस भंडार पर आधारित है। यह जलाशय क्षेत्र की शुष्क जलवायु को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिससे मध्य एशिया में वर्षा होती है। लेकिन अब वैज्ञानिक इसके जलस्तर में गिरावट को लेकर गंभीर चिंता जता रहे हैं। जलवायु परिवर्तन और पिघलते ग्लेशियर्स के प्रभाव से, समुद्र का जल स्तर बढ़ रहा है, लेकिन कैस्पियन सागर और अन्य लैंड लॉक्ड (भू-आबद्ध) झीलों के लिए यह खतरा बना हुआ है। कैस्पियन सागर बारिश और नदी के पानी पर निर्भर है, लेकिन बांधों, अत्यधिक जल निकासी, प्रदूषण और मानव-जनित जलवायु संकट के कारण यह जलाशय तेजी से सिकुड़ रहा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि यह स्थिति बनी रही, तो कैस्पियन सागर एक ऐसे मोड़ पर पहुंच जाएगा, जहां से इसे फिर से पहले जैसा लौटाना बेहद मुश्किल हो जाएगा। इस संबंध में, कजाकिस्तान और उजबेकिस्तान के बीच का अराल सागर एक उदाहरण है, जो कभी दुनिया का सबसे बड़ा झील हुआ करता था, लेकिन मानवीय गतिविधियों और जलवायु परिवर्तन के कारण यह लुप्त हो गया है। अब वही स्थिति कैस्पियन सागर में भी देखने को मिल रही है। इसकी गिरती जल स्तर के पीछे कई कारण हैं। एक ओर जहां औद्योगिक विकास के चलते नदियों पर बांध बन रहे हैं, वहीं दूसरी ओर तेल रिफाइनरी और अन्य उद्योग कच्चे तेल की निकासी कर रहे हैं, जिससे जलाशय की स्थिति और भी खराब हो रही है। इसके अलावा, क्षेत्र में प्रदूषण भी एक गंभीर समस्या बनता जा रहा है, जो न केवल जलीय जीवन को प्रभावित करता है, बल्कि स्थानीय समुदायों की स्वास्थ्य स्थिति पर भी बुरा असर डाल रहा है। इस संकट के समाधान के लिए वैश्विक स्तर पर जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है। विभिन्न देशों को एकजुट होकर इस जलाशय के संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। कैस्पियन सागर के जल स्तर में गिरावट केवल क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को प्रभावित नहीं करेगी, बल्कि इससे पर्यावरणीय संतुलन भी बिगड़ जाएगा। इसलिए, अब वक्त आ गया है कि दुनिया के नेता, वैज्ञानिक, और पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता रखने वाले लोग मिलकर इस संकट का समाधान खोजें। सुदामा/ईएमएस 29 अक्टूबर 2024