इसे विडंबना कहे कि जिस तम्बाकू के पेड के पत्तों को गधे भी नहीं खाते वह समझदार प्राणी कहे जाने वाले मानव का सबसे प्रिय खानी वाली एक वस्तु है । तम्बाकू आज के दौर में भारत में बच्चों, किशोर, युवा और वृद्ध सभी आयु वर्ग में खाई जाने वाली वस्तु है । तम्बाबू एक प्रकार की निकोटियाना प्रजाति के पेड के पत्तों को सूखा कर नशा करने की वस्तु बनाई जाती है । यह एक मीठा और धीमा जहर है जो धीमे धीमे आदमी की जान लेता है । भले की सरकार को तम्बाकू के माध्यम से राजस्व के रूप में करोड़ों रूपये प्राप्त होता है । परन्तु दूसरी ओर इससे उत्पन्न रोगों के इलाज पर इससे ज्यादा खर्च किया जाता है । इसके सेवन से जीवनी शक्ति का ह्मस होता है । लाख बुराई होने और इसके नुकसान को जानने के बाद भी जब इसकी लत आदमी को लग जाती है तो उसको छुड़ा पाना मुश्किल हो जाता है । इस प्रकार से वह अपने आप को उसके हवाले करके अपनी ताकत धीरे धीरे खोते जाता है । इसके शौकीन पुरूष महिला सभी है । भारत में प्रयोग की जाने वाली धुंआरहित तम्बाकू में तम्बाकू वाला पान/पान मसाला/तम्बाकू चूने और बूझे हुए चूने का मिश्रण/मैनपुरी तम्बाकू/मावा/तम्बाकू और बूझा हुआ चूना खैनी/चबाने योग्य तम्बाकू/ सनस/मिश्री/बज्जर/गुडाखू/क्रीमदार तम्बाकू पावडर/तम्बाकू युक्त पान इत्यादि । इसी के साथ तम्बाकू का उपयोग सिगरेट और बीड़ी के माध्यम से भी किया जात है । तम्बाकू धू्रमपान एक ऐसा अभ्यास है जिसमें तम्बाकू को जलाया जाता और उसका धुंआ या तो चखा जाता है या फिर उसे सांस में खींचा जाता है । इसका चलन सन् 5000 ई. पूर्व से हुआ है । तम्बाकू सेवन का सबसे आम तरीका धू्रमपान है । प्रारंभिक अवस्था में धू्रमपान सुखद अनुभूतियां प्रदान करता है । सकारात्मक दृष्टिकोण के एक स्त्रोत के रूप में कार्य करता है बाद में इसके नकारात्मक प्रभाव शरीर में पड़ते है। धू्रमपान के अलावा दवा के रूप में भी तम्बाकू का उपयोग होता है। एक दर्द निवारक के तौर में यह कान के दर्द और दांत के दर्द और कभी कभी एक प्रलेप के रूप में भी प्रयोग किया जाता है । रेगिस्तान में रहने वाले भारतीय कहते है कि धू्रमपान करने से जुकाम ठीक हो जाता है । वर्तमान समय बाजार में बड़ी संख्या में पाऊच बेचे जा रहे है । जिसमें किसी न किसी प्रकार से तम्बाकू का अंश बहुत ज्यादा है । 1980 के दशक में मिले वैज्ञानिक प्रमाण के अनुसार तम्बाकू कंपनियों ने दावा किया कि लापरवाही बरतने का कारण स्वाद पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव से पहले उनका अंजान होना था या पर्याप्त विश्वसनीयता का अभाव था । कि इसका प्रभाव किस प्रकार पड़ता है । धूुमपान और तम्बाकू सेवन से बचने के लिये विश्व स्तर पर प्रचार अभियान सभी देशों की सरकारों द्वारा चलाया जाता है । जिसके कारण इसके प्रति रूचि रखने वाले लोगों में इतनी कमी नहीं आ पाई जितनी सरकार अपेक्षा करती है । सिगरेट में पत्तों को जलाकर और वाष्पीकरण गैस को सांस से खींचकर प्राप्त किया जाने वाला आनंद शरीर के भीतर नये नये रोगों को जन्म देता है। क्योंकि यह प्रभावशाली ढंग से पदार्थो को खून में अवशोषित कर फेंफडों में कोशिकाओं के जरिये पहुंचाया जाता है । फेंफड़ों में लगभग 300 मिलियन रक्त कोशिका होती है । अधिक धू्रमपान किये जाने से ह्नदय रोग की बीमारी भी उत्पन्न होती है । जो महिलाएं इसके सेवक करती है । उनके शरीर के भीतर भी अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न होते है । तम्बाकू का पत्ता अर्थात निकोटिन एक ऐसा जहर है जो जबान पर तो आनंद प्रदान करता है परन्तु शरीर के भीतर जाने के बाद यह कई प्रकार के बीमारियों का रास्ता खोल देती है । ध्रूमपान की शुरूआत अधिकतर समय किशोर अवस्था से की जाती है। परन्तु बाद में यह इंसान को अपना गुलाम बना लेती है । तम्बाकू के बारे में अनेक सचेत करने वाले प्रचार प्रसार/संदेश सरकारों के तरफ से लगातार जारी किये जाते है परन्तु इसका कोई दूर दूर तक असर दिखाई नहीं पड़ता । विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि तम्बाकू के कारण पैदा हुई बीमारियों और उससे हुई मौत के मामले ज्यादातर शिकार गरीब होते है । क्योंकि वह इसके दुष्परिणामों को गंभीरता से नहीं लेते । सन् 2004 में दुनिया भर में 58.8 मिलियन लोगों की मृत्यु का अनुमान लगाया गया । जिनमें 5.4 मिलियन के लिये तम्बाकू को जिम्मेदार ठकराया । उसी प्रकार 2007 में 4.9 मिलियन मौते तम्बाकू की वजह से होना बताया जाता है । तम्बाकू उपयोग के बारे में अनेक प्रकार की दुनिया भर में मान्यता व धारणाएं प्रचलित है। केंसर जैसा घातक रोग का जिम्मेदार भी तम्बाकू को माना जाता है । ऐसी मान्यता है कि तम्बाकू इस जगह से निर्माता से मिला एक उपहार था और इसके कश से निकला धुंआ उसे व्यक्ति विशेष के विचारों और प्रार्थनाओं को स्वर्ग तक ले जाने में सक्षम है । तम्बाकू की हानि को इसी बात से समझा जा सकता है कि इसका जो पौधों होता है। उसके पत्तों को गधा जैसे मूर्ख प्राणी भी नहीं खाता । परन्तु बुद्धजीवी कहा जाने वाला मानव उसे खुशी खुशी खाते है । तम्बाकू में पाया जाना वाला निकोटिन का प्रभाव इतना गहरा है कि यह जब सिगरेट में पिया जाता है तो उसका धुंआ केवल पीने वालें को भी नहीं अन्य आसपास बैठे व्यक्तियों के शरीर पर भी अपना दुष्प्रभाव छोड़ता है इसीप्रकार धु्रमपान और चबा कर तम्बाकू जब शरीर में जाती है तो खून में मिल जाती है जिनके कारण इसकी आदत व्यक्ति से छूट नहीं पाती और वह इसका आदि हो जाती है । वह जल्दी थक जाता है ज्यादा दूर तक पैदल नहीं हल पाता थोडी से मेहनत से दम भर जाती है। ऐसे अनेक प्रकार के लक्ष्ण व्यक्ति में उत्पन्न हो जाते है। मद्य निषेध के नाम पर लूट:- भारत सरकार का स्वास्थ्य मंत्रालय विभिन्न एन.जी.ओ के माध्यम से लोगों धुूमपान और तम्बाकू से बचने के लिये देश व्यापी प्रचार अभियान चलाता है परन्तु वास्तविकता यह है कि इसका रत्तीभर भी प्रभाव नहीं होता बल्कि मद्य निषेध के नाम पर एन.जी.ओ. अपनी जेब लाखों रूपयों से भर रहे है । किसी भी स्थान पर एकाध छोटा से प्रोग्राम करके अखबारों मे ंलंबा चौडा प्रचार करवाकर लाखों रूपये की स्वीकृति सरकार से प्राप्त कर लेते है । तम्बाकू के दूष्प्रभाव से बचने के लिये सबसे अच्छा और सरल साधन यह है कि व्यक्ति उस वातावरण से दूर रहे जहां पर लोग इसका सेवक अधिक करते है । क्योंकि यह एक ऐसा शौक है जो बेहद सामान्य तरह से प्रारंभ होता इै और शीरे धीरे शरीर को भीतर ही भीतर तरह तरह की बीमारियों का केन्द्र बना देता है । अनेक बार ऐसा देखा गया है कि धुपमान के माध्यम सेतम्बाबू का मजा लेने वाले युवा असमय ही दिल का दौरा पड़ने से दुनिया से चले गये । किसी भी रूप में तम्बाकू के सेवन करने वाले पुरूष महिला लड़ाका लड़किया और अन्य सभी से यही अपेक्षा है कि संसार में ईश्वर द्वारा प्रदान किया गया । जीवन अमूल्य है । इसे कुप्रवृतियों मद्यमान, धु्रमपान और तम्बाकू सेवन के शौक के माध्यम से समय पूर्व बर्बाद न करें ऐसे रोगों का रोगी न बने जो आपकी उम्र को कम करता है । यह तभी संभव है जब आप मन के भीतर से कुप्रवृत्तियों को छोउ़ने का संकल्प उत्पन्न करें । और उस वातावरण से दूर रहे जहां पर इस प्रकार की कुप्रवृतियों को गले लगाया जाता है । जीवन अनमोल है कि इसके महत्व को समझो । .../ 20 जनवरी /2025