सोशल मीडिया पर मध्य प्रदेश पुलिस के 50000 सिपाही, हेड कांस्टेबल, एसआई, एएसआई, तथा टाउन इंस्पेक्टर बगावत की मुद्रा में हैं। मध्य प्रदेश के इतिहास में पहली बार इतनी बड़ी संख्या में पुलिस न्याय की लड़ाई लड़ने के लिए सोशल मीडिया पर उतरी है। कानून व्यवस्था की स्थिति में पुलिस को भाजपा के आनुवांशिक संगठनों तथा भीड़तंत्र द्वारा पुलिस पर हमले किये जा रहे हैं। उससे पुलिसकर्मियों को दोहरी मार झेलना पड़ रही है। भीड़ में पुलिस पिट रही है। पुलिस का भय खत्म होता जा रहा है। सरकारें भी भीड़ के दबाव में पुलिसकर्मियों को दंडित करती हैं। इससे पुलिसबल नाराज है। मध्यप्रदेश के मऊगंज में एएसआई की हत्या और इंदौर में वकीलों द्वारा पुलिस के साथ हाल ही में मारपीट के मामले ने मध्य प्रदेश की पुलिस को उत्तेजित कर दिया है। इंदौर में वकीलों और पुलिस की झड़प में पुलिस बल के कुछ लोगों को निलंबित किए जाने से नाराज पुलिस बल ने सोशल मीडिया मे ब्लैक होल की तस्वीर लगाकर विरोध करना शुरू कर दिया है। छतरपुर के सब इंस्पेक्टर अवधेश कुमार दुबे ने एक वीडियो पोस्ट किया है, जिसमें उल्लेख है, क्यों पुलिस भीड़ तंत्र का शिकार बन रही है। हमें ऐसा लग रहा है कि हमारे पंजे नोच लिए गए हैं। क्या वक्त आ गया है। हमसे कहा जा रहा है, तीर चलाओ और परिंदों को भी बचाओ। सोशल मीडिया में पुलिस द्वारा मुख्यमंत्री से गुहार लगाई गई है। एक बार पुलिस बल की ओर भी देखिए। हमारा दम्भ तो जिंदा रहने दीजिए। मऊगंज में आदिवासियों के हमले में शहीद एएसआई रामचरण गौतम की मौत के बाद मध्य प्रदेश पुलिस में बड़ी नाराजी देखने को मिल रही है। पिछले कुछ वर्षों से भीड़ के द्वारा पुलिस बल पर लगातार हमले किए जा रहे हैं। इन हमलों में आम लोगों के साथ-साथ भारतीय जनता पार्टी से जुड़े अनुवांशिक संगठन के कार्यकर्ता भी समय-समय पर सड़क और थाने के अंदर घुसकर जिस तरह का व्यवहार पुलिस के साथ करते हैं, उससे पुलिस का मनोबल लगातार गिर रहा है। देश के अधिकांश राज्यों में यही स्थिति है। पुलिस के ऊपर भीड़ द्वारा दबाव बनाया जाता है। पुलिस के ऊपर भीड़ हिंसक हमले करती है। राजनीतिक संरक्षण प्राप्त भीड़ दबाव बनाकर पुलिसकर्मियों और अधिकारियों के साथ दुर्व्यवहार करती है। उसके बाद ट्रांसफर, निलंबन इत्यादि की कार्रवाई से पुलिसकर्मी नाराज हैं। पिछले कुछ वर्षों में सभी राज्यों में भीड़ द्वारा पुलिस को निशाना बनाने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। पुलिस की कोई गलती भी नहीं होती है। कानून व्यवस्था को नियंत्रित करने के लिए कभी-कभी उसे बल का प्रयोग भी करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में शासन का संरक्षण मिलने के स्थान पर पुलिसकर्मियों के ऊपर ही कार्रवाई की जाती है। भीड़ और सरकार का गुस्सा पुलिसकर्मियों पर ही फूटता है। पिछले कुछ वर्षों में स्थिति बहुत खराब हो गई है। पुलिस खड़े-खड़े या तो तमाशा देखती रहे? या स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए वह बल का प्रयोग करे। खामियाजा पुलिसकर्मियों को ही भुगतना पड़ रहा है। धीरे-धीरे पुलिस की नाराजी बढ़ती जा रही है। पुलिस सोशल मीडिया में आकर अपना विरोध प्रदर्शन कर रही है। पुलिसकर्मियों की शिकायत है, पुलिस बल का उपयोग अब कानून व्यवस्था के स्थान पर राजनीतिक हितों को साधने के लिए किया जा रहा है। अपराधी प्रकृति के लोग राजनेता बनकर घूम रहे हैं। वह पुलिस के ऊपर समय-समय पर अनावश्यक दबाव बनाते हैं। वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा पुलिसकर्मियों को संरक्षण नहीं दिया जाता है। पुलिस खुद अपनी रक्षा नहीं कर पा रही है। ऐसी स्थिति में पुलिस बगावत की मुद्रा में आ गई है। पिछले कुछ वर्षों में राजनीतिक संरक्षण प्राप्त अनुवांशिक संगठनों के कार्यकर्ता और राजनेता पुलिस के ऊपर ऐसे कामों को करने के लिए दबाव बनाते हैं। जो उनके कार्य की परिधि में नहीं आते हैं। इसका खामियाजा भी पुलिसकर्मियों को भुगतना पड़ रहा है। व्यक्तिगत स्तर पर पुलिसकर्मियों के ऊपर मुकदमे दर्ज हो रहे हैं। जिसके कारण उन्हें लगातार मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। पुलिसकर्मियों का कहना है, उनका कोई संगठन नहीं है। वह अपनी बात कह भी नहीं पाते हैं। यदि अपना पक्ष रखने की कोशिश करते हैं। तो उनके ऊपर अनुशासन की कार्रवाई कर दी जाती है। ट्रांसफर और निलंबन करके उन्हें प्रताड़ित किया जाता है। पिछले कुछ वर्षों से देशभर में बड़ी संख्या में धरना प्रदर्शन हो रहे हैं। एक्सीडेंट और अन्य अपराधिक वारदात के कारण बड़ी संख्या में भीड़ समय-समय पर एकत्रित हो जाती है। सामने पुलिस होती है, पुलिस को ही भीड़ के गुस्से का शिकार होना पड़ता है। इसके बाद भी पुलिसकर्मियों को ही दंडित किया जाता है। जिसके कारण अब पुलिसकर्मी न्याय पाने की लड़ाई लड़ने के लिए एकजुट होते हुए दिख रहे हैं। सरकार को इस दिशा में संवेदनशीलता के साथ पुलिसकर्मियों की समस्याओं का समाधान करने की जरूरत है। भाजपा से जुड़े अनुवांशिक संगठनों के नेता और कार्यकर्ता, राजनीतिक दलों से जुड़े हुए जन प्रतिनिधियों का व्यवहार पुलिस के साथ अच्छा नहीं है। पुलिसकर्मियों को सरेआम अपमानित किया जाता है। पुलिस बल से लगातार ड्यूटी कराई जा रही है। राज्यों में स्वीकृत पुलिस बल उपलब्ध नहीं है। कई वर्षों से भर्ती नहीं हुई है। 450 लोगों की जनसंख्या में न्यूनतम एक पुलिसकर्मी होना आवश्यक है। देश के कई राज्यों में 1100 से 1500 लोगों के बीच में एक पुलिसकर्मी है। सिपाही, हेड कांस्टेबल, एएसआई, सब इंस्पेक्टर और टीआई के पद कई वर्षों से खाली पड़े हुए हैं। पुलिसकर्मियों को अवकाश भी नहीं मिल पाता है। पुलिस पर दबाव लगातार बढ़ता चला जा रहा है। लगातार काम करने के कारण पुलिसकर्मियों की सेहत पर असर पड़ रहा है। केन्द्र एवं राज्य सरकारों को पुलिसवालों की जायज मांग पर ध्यान देने की जरूरत है। पुलिस की कार्यप्रणाली में राजनीतिक हस्तक्षेप कम से कम हो। कानून व्यवस्था को बनाए रखने में पुलिस निष्पक्षता के साथ बिना किसी भेदभाव के काम करेगी। तभी कानून व्यवस्था की स्थिति को नियंत्रित किया जा सकता है। पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों का दायित्व है, पुलिसकर्मियों को जो परेशानी झेलनी पड़ रही है उसका त्वरित रूप से निराकरण हो अन्यथा पुलिसबल कभी भी सड़कों पर उतर सकता है। ईएमएस / 19 मार्च 25