वाशिंगटन (ईएमएस)। अमेरिकी शोधकर्ताओं की टीम ने यह अध्ययन साइंस पत्रिका में प्रकाशित किया। उन्होंने इबोला वायरस के इलाज के लिए ओबेल्डेसिविर नामक एंटीवायरल दवा का परीक्षण किया। यह दवा रेमडेसिविर का ओरल फॉर्म है, इस दवा को पहले कोविड-19 के इलाज के लिए विकसित किया गया था। शोधकर्ताओं ने रहसस और साइनोमोलगस मैकाक प्रजाति के बंदरों को इबोला वायरस के मैकोना वेरिएंट की उच्च मात्रा से संक्रमित किया। इसके बाद 10 बंदरों को रोजाना ओबेल्डेसिविर की गोली दी गई, जबकि तीन बंदरों को कोई उपचार नहीं दिया गया और वे सभी मर गए। हालांकि अध्ययन में कम संख्या में बंदरों का इस्तेमाल हुआ था, लेकिन शोधकर्ताओं के अनुसार इसके आंकड़े काफी प्रभावी हैं। इस परीक्षण में बंदरों को इंसानों के लिए घातक मानी जाने वाली खुराक से 30,000 गुना अधिक वायरस दिया गया था, फिर भी गोली ने उन्हें बचा लिया। अन्य एंटीबॉडी उपचार केवल जैरे स्ट्रेन पर असर दिखाते हैं, लेकिन ओबेल्डेसिविर का प्रभाव कई तरह के इबोला वायरस पर देखा गया है। यह इसका सबसे बड़ा फायदा है। अध्ययन में कहा गया कि यह दवा रोग प्रतिरोधक क्षमता को विकसित करने में मदद कर सकती है और साथ ही शरीर में होने वाली गंभीर सूजन को रोकने में भी सक्षम है। बात दें कि इबोला आमतौर पर सहारा के दक्षिणी अफ्रीकी देशों में फैलता है, जहां स्वास्थ्य सुविधाएं सीमित हैं। एंटीबॉडी उपचार को स्टोर करने के लिए महंगे कोल्ड स्टोरेज की जरूरत होती है, जो इन इलाकों में संभव नहीं है। इसके बाद एक गोली के रूप में उपलब्ध दवा बहुत ज्यादा कारगार साबित होगी। शोधकर्ता के अनुसार, उनकी टीम एक ऐसी दवा विकसित करने की कोशिश कर रही थी जो आसान, सस्ती और अधिक उपयोगी हो। अब, इस शोध के सकारात्मक परिणामों के आधार पर अमेरिकी फार्मा कंपनी ने ओबेल्डेसिविर को मरबर्ग वायरस (जो इबोला का करीबी रिश्तेदार है) के लिए फेज-2 क्लिनिकल ट्रायल में शामिल कर लिया है। इबोला वायरस क्या है? इबोला एक वायरल हेमोरेजिक फीवर है, जिसे सबसे पहले डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो (डीआरसी) में खोजा गया था। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह वायरस फल खाने वाले चमगादड़ से फैलता है, जो खुद इस बीमारी से प्रभावित नहीं होते, लेकिन इससे प्राइमेट्स (बंदरों और इंसानों) में फैला सकते हैं। आशीष/ईएमएस 21 मार्च 2025