लेख
22-Apr-2025
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निर्धन देशों के लोगों को ज्यादा क्षति पहुंचा रहे हैं पेस्टीसाइड वर्तमान में दुनिया भर में अनाज, फलों सब्जियों को कीट-पतंगों से बचाने के लिए खेतों में तमाम तरह के रासायनिक कीटनाशकों का छिड़काव बिना किसी हिचकिचाहट के धड़ल्ले से किया जा रहा है। हमारा मुल्क भी इसमें पीछे नहीं है। रिपोर्ट के मुताबिक कीटनाशक निर्माणकर्ता कंपनी मानव स्वास्थ्य व पर्यावरण के लिए उच्च खतरों को उत्पन्न करने वाले रसायनों से हर साल अरबों रुपए का मुनाफा कमा रही है। वहीं इसके अत्यधिक उपयोग से मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण को काफी क्षति पहुंच रही है। वर्तमान समय में आधुनिक खेती के लिए कीटनाशक दवाएं जरूर बन चुकी है ।गौर करने लायक बात किया है कि इससे होने वाले फायदे से ज्यादा अब क्षति हो रही है। ग्रीन पीस ब्रिटेन द्वारा घोषित बैश्वक संस्था अनअथर्ड और स्विस एनजीओ पब्लिक आई के विश्लेषण में बेहद चौंकाने वाली बातें निकलकर सामने आई है। हिंदुस्तान सहित दुनिया के 43 देश में हुए इस अध्ययन के अनुसार खतरनाक कीटनाशक विकसित देशों के मुकाबले मुक विकासशील और निर्धन देशों को ज्यादा क्षति पहुंचा रहे हैं। हिंदुस्तान में 59% खतरनाक कीटनाशकों का उपयोग किया जा रहा है वहीं ब्रिटेन में यह मात्र 11 फ़ीसदी है। कीटनाशक निर्माणकर्ता र्कंपनियां मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए हानिकारक रसायनों से हर साल अरबों डालर कमाती है। अत्यधिक खतरनाक कीटनाशकों का बिक्री अनुपात साधन-संपन्न देशों की तुलना में निर्धन देशों में अधिक पाया गया। कीटनाशक निर्माणकर्ता र्कंपनियां अपने मुनाफे को कभी भी सार्वजनिक नहीं करती है। पांच बड़ी कंपनियों द्वारा बिक्री किए जाने वाले कुल कीटनाशक का एक चौथाई मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर रूप से हानिकारक है ।इसमें कैंसर जन्य तत्व शामिल थे ,जबकि 10 फीसदी कीटनाशकों के विषैले तत्व मधुमक्खियों द्वारा लाए गए थे। इसके अतिरिक्त विश्लेषण में पाया कि 5 फीसदी बिक्री रसायनों की थी जो कि मानव के लिए हानिकारक होते हैं ।विश्व में हर साल तकरीबन 2 लाख आत्महत्याओं को कीटनाशक विषाक्त के लिए कसूरबार ठहराया जाता है। इनमें से तकरीबन सभी विकासशील देशों में है ।विश्लेषण के मुताबिक साधन संपन्न देशों में एचएचपी की बिक्री का औसत अनुपात निम्न और मध्यम आय वाले देशों में 45वीं साड़ी की तुलना में 27 फीसदी था, जबकि दक्षिण अफ्रीका में यह 65% फीसदी तक पहुंच गया। ---------------------------------------------------------------------- यूएन ने भी इन्सानी जिंदगी में जहर घोलते कीटनाशकों पर चिंता जताई, कहा कठोर बनाए जाएं नियम ------------------------------------------------------------------ विश्व स्वास्थ्य संगठन और संयुक्त राष्ट्र खाध और कृषि संगठन द्वारा कीटनाशक प्रबंधन के वैश्विक सर्वेक्षण में पाया गया कि गंभीर रूप से विभिन्न कमियां हैं। पर्यावरण और मानवों पर हानिकारक प्रभावों को कम करने के लिए देशों को कठोर नियम बनाने चाहिए। इन्सानी जिंदगी के लिए खतरनाक पदार्थों और मानवाधिकारो पर संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि कंपनियों द्वारा एच एच पी के माध्यम से आम अर्जित करना अनुचित है।इन उत्पादों का निरंतर उपयोग किया जा रहा है। यह मानवाधिकारो के उल्लंघन की वजह बन रहा है। कीटनाशक उधोग क्रोपलाइफ इंटरनेशनल ने बिना किसी हिचकिचाहट के स्वीकार किया है कि उसके सदस्यों द्वारा बेचे जाने वाले रसायनों का 15फीसदी एच एच पी है। उन्होंने कहा कि इनमें से क ई का उपयोग सुरक्षित रूप से किया जा सकता है। क्रोपलाइफ इंटरनेशनल से संबंधित सदस्य कीटनाशक प्रबंधन पर एफ ए ओ अंतरराष्ट्रीय आचार संहिता का समर्थन करते हैं। सरकार को उठाने होंगे सख्त कदम ग्रीनपीस ब्रिटेन की संस्था के मुताबिक विश्व भर को जहरीले कीटनाशकों से सराबोर फसलों के आधार पर औधोगिक खेती के माॅडल पर टिकाए रखना इन कंपनियों के हित में है, लेकिन इन खतरनाक रसायनों का स्वास्थ्य भोजन प्रणाली में कोई स्थान नहीं है और सरकारों को विश्व भर में इन पर प्रतिबंध लगना चाहिए। --------------------------------------------------------------------- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुए शोध से ज्ञात हुआ है कि कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से कैंसर, मानसिक विकार , स्मरण शक्ति का हास , प्रतिरोधक क्षमता का हास, गुर्दे तथा यकृत की बीमारियां,चर्म रोग जैसी बीमारियां उत्पन्न हो रही है। हालांकि कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से इन्सान और पर्यावरण को होने वाली क्षति को देखते हुए इसके अंधाधुंध उपयोग पर लगाम लगाने की कोशिशे तेज हुई है। देश के आजाद होने के तीन बरस बाद यानी 1950मे देश में जहां 2000टन कीटनाशक की हमारे देश में खपत थी। वहीं वर्तमान समय में यह खपत बढ़कर 90हजार टन से भी अधिक हो गई है।60के दशक में देश में जहां 6.4हेकटेयर में कीटनाशकों का छिड़काव होता था वहीं वर्तमान में 1.5करोड हेक्टेयर क्षेत्र में कीटनाशकों का छिड़काव हो रहा है। इसका दुष्प्परिणाम यह हुआ है कि हमारे मुल्क में पैदा होने वाले अनाज, सब्जी, फलों सहित दूसरे कृषि उत्पादों में कीटनाशकों के उपयोग की मात्र निर्धारित मापदण्ड से अधिक पाई गई है। वर्तमान में जिस प्रकार से कीटनाशक दवाओं का अंधाधुंध उपयोग किया जा रहा है, उससे विषाकतीकरण की घटनाएं दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। जीआर एम सी के मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डॉ अजय पाल का स्पष्ट तौर पर कहना है कि मानव शरीर पर कीटनाशकों के साइड इफेक्ट बहुत गंभीर होते हैं ।कीटनाशक भोजन के माध्यम से सीधे हमारे शरीर में पहुंच जाते हैं, जिसका असर शरीर के विभिन्न अंगों पर गंभीर रूप से होता है। इससे शरीर की इम्युनिटी सिस्टम कमजोर होती है। इसके साथ ही लिवर और किडनी पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है। इससे इंनफटिलिटी, पेट का कैंसर होने की संभावना ज्यादा रहती है। ईएमएस/22/04/2025