राष्ट्रीय
01-May-2025


नई दिल्ली (ईएमएस)। भारत में पहली बार स्वतंत्रता के बाद जातिगत जनगणना होगी। मोदी सरकार के इस फैसले पर कांग्रेस ने श्रेय लेने की कोशिश की है, जबकि बीजेपी इसे सामाजिक न्याय के प्रयास के रूप में प्रस्तुत कर रही है। आज आपको बताते हैं कि जातिगत जनगणना का इतिहास, राजनीतिक पहलुओं और कहां पेंच फंसा रहा है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को राजनीतिक मामलों की कैबिनेट कमेटी की बैठक में जातिगत जनगणना कराने का फैसला लिया गया। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि देश में होने वाली जनगणना में जातियों की गणना भी की जाएगी। आजादी के बाद पहली बार देश में जातियों की गिनती की जाएगी। मोदी सरकार को देर आए दुरुस्त आए बताने के साथ-साथ कांग्रेस जातीय जनगणना का श्रेय राहुल गांधी को दे रही है। वहीं, बीजेपी का कहना है कि कांग्रेस हमेशा से विरोध में रही है और मोदी सरकार ने सामाजिक न्याय के लिए जातिगत जनगणना कराने का फैसला लिया है। जातिगत जनगणना पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच क्रेडिट वार छिड़ गया है। इसमें कोई संदेह नहीं कि जातिगत जनगणना को लेकर राहुल गांधी ने सड़क से संसद तक मोर्चा खोल रखा था, लेकिन देश में लंबे समय तक कांग्रेस की सरकार रही। पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी और राजीव गांधी तक ने देश में जातिगत जनगणना कराने से परहेज किया, लेकिन राहुल गांधी ने सामाजिक न्याय के मुद्दे को लेकर चलने का फैसला किया। जातिगत जनगणना को अपने राजनीतिक अभियान का बड़ा मुद्दा बनाया और देखते ही देखते इस मुद्दे पर राहुल गांधी विपक्ष के किसी भी दल या नेता से आगे हो गए। आजादी के बाद देश में पहली बार 1951 में जनगणना हुई, उस समय कांग्रेस की सरकार थी। पंडित जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री थी, लेकिन जातिगत जनगणना के लिए राजी नहीं हुई। हालांकि, आजादी से पहले तक जनगणना जाति आधारित ही होती थी। अंग्रेजी शासन के दौरान 1881 से लेकर 1931 तक देश में जितनी भी जनगणना हुई हैं, उसमें लोगों के साथ सभी जातियों की गणना की जाती रही, लेकिन आजादी के बाद उस पर पूर्ण विराम लगा दिया गया। अजीत झा /देवेन्द्र/नई दिल्ली/ईएमएस/01/मई/2025