लेख
13-May-2025
...


हिंदू पौराणिक कथाओं में नारद मुनि को एक ऐसी शख्सियत के रूप में जाना जाता है, जो सूचनाओं का आदान-प्रदान करने में माहिर थे। वे देवताओं, असुरों, और मनुष्यों के बीच संदेशवाहक की भूमिका निभाते थे। उनकी यह विशेषता उन्हें आदि पत्रकार की उपाधि देती है। नारद न केवल सूचना के वाहक थे, बल्कि वे समाज में जागरूकता फैलाने और सत्य को उजागर करने में भी निपुण थे। नारद को अगर हम विस्तार से समझें तो पता चलता है कि उनका प्रत्येक संवाद जनकल्याण के लिए था। गीता के दशम अध्याय के 26वें श्लोक में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने इनकी महत्ता को स्वीकार करते हुए कहा है- देवर्षीणाम्चनारद:। अर्थात देवर्षियों में मैं नारद हूं। महाभारत के सभा पर्व के पांचवें अध्याय में नारद जी के व्यक्तित्व का परिचय इस प्रकार दिया गया है- देवर्षि नारद वेद और उपनिषदों के मर्मज्ञ, देवताओं के पूज्य, इतिहास व पुराणों के विशेषज्ञ, पूर्व कल्पों (अतीत) की बातों को जानने वाले, शिक्षा, व्याकरण, आयुर्वेद, ज्योतिष के प्रकाण्ड विद्वान, संगीत-विशारद, प्रभावशाली वक्ता, मेधावी, नीतिज्ञ, कवि, महापंडि़त, बृहस्पति जैसे महा विद्वानों की शंकाओं का समाधान करने वाले और सर्वत्र गति वाले हैं। 18 महापुराणों में एक नारदोक्त पुराण; बृहन्नारदीय पुराण के नाम से प्रख्यात है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, नारद मुनि ब्रह्मा जी के मानस पुत्र हैं। उनकी उत्पत्ति ब्रह्मा के मन से हुई, जिसके कारण उन्हें मानस पुत्र कहा जाता है। नारद मुनि का जीवन भक्ति, तप, और ज्ञान का अनुपम उदाहरण है।कथाओं के अनुसार, नारद का जन्म एक दासी के पुत्र के रूप में हुआ था। बचपन में ही उनकी माता का देहांत हो गया, जिसके बाद उन्होंने भक्ति और तप में रुचि ली। भगवान विष्णु की कृपा से उन्हें दिव्य ज्ञान प्राप्त हुआ, और वे ब्रह्मा के मानस पुत्र के रूप में प्रतिष्ठित हुए।नारद मुनि ने भक्ति मार्ग को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे भगवान विष्णु के परम भक्त थे और नारायण-नारायण का जाप करते हुए तीनों लोकों में विचरण करते थे। उनकी वीणा, जिसे महती कहा जाता है, भक्ति और संगीत का प्रतीक है। नारद मुनि ने नारद भक्ति सूत्र की रचना की, जो भक्ति के सिद्धांतों को समझाने वाला एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इसके अलावा, उन्होंने नारद पंचरात्र और नारद संहिता जैसे ग्रंथों के माध्यम से धर्म और ज्ञान का प्रसार किया। नारद मुनि के भक्तिसूत्र भारतीय दर्शन और आध्यात्मिकता का एक अनमोल ग्रंथ है, जो भक्ति के तत्वों को सरल और गहन रूप में प्रस्तुत करता है। यह सूत्र न केवल आध्यात्मिक जीवन के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है, बल्कि आधुनिक संदर्भों, जैसे पत्रकारिता, में भी प्रासंगिकता रखता है। पत्रकारिता, जो समाज का दर्पण और जनमानस को दिशा देने वाला माध्यम है, नारद के भक्तिसूत्र से प्रेरणा लेकर निष्पक्षता, सत्यनिष्ठा और मानवीय मूल्यों को सुदृढ़ कर सकती है।नारद भक्तिसूत्र में सत्य को भक्ति का आधार माना गया है। पत्रकारिता का मूल उद्देश्य भी सत्य को उजागर करना है। एक पत्रकार, जो नारद के सिद्धांतों से प्रेरित हो, सनसनीखेज खबरों या पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग से बचेगा और तथ्यों को निष्पक्ष रूप से प्रस्तुत करेगा। सूत्र 25 में नारद कहते हैं:तद्विस्मरणात् संसारदुःखंअर्थात, सत्य को भूलने से संसार में दुख उत्पन्न होता है। पत्रकारिता में असत्य या भ्रामक जानकारी का प्रसार समाज में अराजकता और अविश्वास को जन्म देता है। इसलिए, पत्रकार को सत्य के प्रति अटूट भक्ति रखनी चाहिए। नारद भक्ति को निष्काम कर्म से जोड़ते हैं, जहां कार्य बिना स्वार्थ के किया जाता है। पत्रकारिता में भी निष्पक्षता और निष्काम भाव आवश्यक है। एक पत्रकार को व्यक्तिगत लाभ, राजनीतिक दबाव या कॉरपोरेट हितों से ऊपर उठकर केवल समाज के कल्याण के लिए कार्य करना चाहिए। सूत्र 19 में नारद कहते हैं न तद् भक्तिर्व्यसनं यथाअर्थात, भक्ति कोई व्यसन या लत नहीं है, बल्कि वह पूर्ण समर्पण है। पत्रकारिता को भी सनसनी या लोकप्रियता की लत से मुक्त होकर समाज के प्रति समर्पित होना चाहिए।भक्तिसूत्र में करुणा और प्रेम को भक्ति के अभिन्न अंग बताया गया है। पत्रकारिता में भी मानवीय संवेदनाओं का सम्मान आवश्यक है। उदाहरण के लिए, आपदा या व्यक्तिगत त्रासदी की खबरों को संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत करना पत्रकार का कर्तव्य है। नारद का यह सिद्धांत पत्रकारों को स्मरण दिलाता है कि उनकी कलम से निकला प्रत्येक शब्द समाज पर गहरा प्रभाव डालता है।नारद भक्तिसूत्र में आत्मसंयम और नैतिक आचरण पर बल दिया गया है। पत्रकारिता में भी नैतिकता का पालन अनिवार्य है। चाहे वह स्रोतों की गोपनीयता हो, तथ्यों की सत्यता हो, या किसी की निजता का सम्मान, पत्रकार को नारद के सूत्रों से प्रेरणा लेकर अपने आचरण को शुद्ध रखना चाहिए। सूत्र 66 में नारद कहते हैं:सङ्गत्यागात् सत्सङ्गतिअर्थात, कुसंगति का त्याग कर सत्संगति अपनानी चाहिए। पत्रकार को भी भ्रष्टाचार, पक्षपात या अनैतिक प्रथाओं से दूरी बनाकर सत्य और नैतिकता के मार्ग पर चलना चाहिए। आधुनिक पत्रकारिता में टीआरपी, डिजिटल क्लिकबेट, और कॉरपोरेट दबाव जैसे कारक सत्य और नैतिकता को चुनौती देते हैं। फिर भी, नारद का यह सूत्र प्रेरणा देता है:भक्तिरेवैनं नयति (सूत्र 54)अर्थात, भक्ति ही अंततः मार्ग दिखाती है। पत्रकार, जो सत्य और समाज के प्रति भक्ति भाव रखता है, वह इन चुनौतियों को पार कर सकता है।नारद के भक्तिसूत्र पत्रकारिता के लिए एक आध्यात्मिक और नैतिक मार्गदर्शक की तरह कार्य करते हैं। सत्य, निष्पक्षता, करुणा और आत्मसंयम जैसे सिद्धांत पत्रकारिता को न केवल एक पेशा, बल्कि समाज के प्रति एक पवित्र कर्तव्य बनाते हैं। नारद का यह संदेश कि भक्ति परम प्रेम और समर्पण है, पत्रकारों को प्रेरित करता है कि वे अपनी कलम को सत्य और मानवता की सेवा में समर्पित करें। आज के युग में, जब पत्रकारिता पर विश्वास का संकट मंडरा रहा है, नारद के भक्तिसूत्र एक प्रेरणादायी प्रकाशस्तंभ की तरह हैं, जो इस पेशे को पुनः सम्मान और विश्वसनीयता की ऊंचाइयों तक ले जा सकते हैं। देवर्षि नारद के संचार का पूर्ण अध्ययन किया जाए तो हम पाते हैं उनका पूरा संवाद लोककल्याण के लिए था। नारद को भगवान विष्णु का परम भक्त माना जाता है। पुराणों के अनुसार, वे ब्रह्मा के मानस पुत्र हैं और उनकी उत्पत्ति ब्रह्मा के मन से हुई। नारद का व्यक्तित्व जटिल और बहुआयामी है। वे एक तपस्वी, गायक, कथावाचक, और संगीतज्ञ हैं, जो अपनी वीणा के साथ भक्ति भजनों का गायन करते हैं। उनकी त्रिलोक भ्रमण की आदत उन्हें हर जगह सूचनाएँ एकत्र करने और उन्हें जरूरतमंदों तक पहुँचाने में सक्षम बनाती है।नारद की विशेषता उनकी वाक्पटुता और बुद्धिमत्ता है। वे अपनी बात को इस तरह प्रस्तुत करते थे कि वह सुनने वाले पर गहरा प्रभाव छोड़ती थी। नारद मुनि को संदेशवाहक के रूप में भी जाने जाते थे। वे देवताओं, दानवों, और मनुष्यों के बीच संवाद स्थापित करते थे। उनकी बुद्धिमत्ता और कूटनीति ने कई पौराणिक घटनाओं को प्रभावित किया। नारद की पत्रकारिता के कई गुण आज भी प्रासंगिक है। नारद सूचनाओं को त्वरित और सटीक रूप से एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाते थे। वे त्रिलोक (स्वर्ग, पृथ्वी, और पाताल) में स्वतंत्र रूप से विचरण करते थे, जिससे उन्हें हर घटना की जानकारी रहती थी।नारद किसी एक पक्ष के प्रति पूरी तरह झुके हुए नहीं थे। वे देवताओं और असुरों दोनों के साथ संवाद करते थे और सत्य को प्राथमिकता देते थे।उनकी वाणी में जादू था। वे अपनी बात को इस तरह प्रस्तुत करते थे कि वह सुनने वाले को विचार करने पर मजबूर कर दे। नारद ने कई अवसरों पर समाज में जागरूकता फैलाई। उदाहरण के लिए, भगवान विष्णु की भक्ति को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने कई कथाएँ और भजन गाए। आज के डिजिटल युग में पत्रकारिता का स्वरूप बदल चुका है लेकिन नारद के गुण और उनकी संचार की क्षमता से सभी पत्रकारों को एक नई प्रेरणा मिलती है । उनकी निष्पक्षता, त्वरित सूचना संप्रेषण, और समाज को जागरूक करने की क्षमता आधुनिक पत्रकारों के लिए एक आदर्श है। नारद की पत्रकारिता हमें यह भी सिखाती है कि पत्रकारिता में सनसनीखेज खबरें फैलाने से हर हाल में बचना चाहिए और सत्य को संतुलित रूप में प्रस्तुत करना चाहिए।नारद मुनि न केवल एक पौराणिक चरित्र हैं, बल्कि वे पत्रकारिता के प्रथम प्रतीक भी हैं। उनकी सूचना संप्रेषण की कला, निष्पक्षता और समाज को जागरूक करने की क्षमता उन्हें आदि पत्रकार के रूप में अमर बनाती है। आज के पत्रकारों को नारद से यह सीख लेनी चाहिए कि सत्य और निष्पक्षता ही पत्रकारिता का मूल आधार है। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं ) (यह लेखक के व्य‎‎‎क्तिगत ‎विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अ‎निवार्य नहीं है) .../ 13 मई /2025