लेख
14-May-2025
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ऑपरेशन सिंदूर मे भारत के प्रधानमंत्री जी का संदेश सुना और बताया कि आतंकवादी व पिओके पर ही पाकिस्तान पर बात होगी और भारतीय सेनानी को इसका श्रेय जाता है लेकिन इसमें भारत के वैज्ञानिकों का भी कहीं ना कहीं उनकी टेक्नोलॉजी के ऊपर भी गर्व है जिसमें इसरो डीआरडीओ,डीएई आदि जैसे श्रेष्ठ वैज्ञानिक संस्थान भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है भारत को अब इसपर भी देना होगा आखिर रूस नुन्ट्रल क्यों रहा उसे आपके साथ खड़ा रहना चाहिए चीन और तुरर्की से सभी व्यापार व वहाँ चल रहे प्रोजेक्ट को रोकना चाहिए मीडिया को अब शांति से काम लेना चाहिए अब जो हो गया सो हो गया एक दूसरे पर वार और हार पर शांत रहना चाहिए सेना पर विश्वास रखना चाहिए उसके प्रवक्ता ने साफ मना किया की कौन से अस्त्र व जेट का इस्तेमाल किया टीवी पर वाद विवाद करने से क़ोई दूसरा देश इसका फायदा उठा सकता है विवेक से शांति से काम करना ही आज सबसे अच्छा तरीका है क्योंकि वाद विवाद से एक देश दूसरे देश पर प्रहार करते हैं और फिर जो बताना उचित नहीं है उससे जनता मे कहीं खुशी होती है और कहीं रोष भी होता है जो हुआ वह भारत की एकता और सेना के हिम्मत और मेहनत से हुआ आतंकवादी को जड़ से ख़त्म तभी हो सकता है जब अंतराष्ट्रीय मंच पर सभी देश मे एकजुटता हो अभी आतंक से सतर्क रहने की जरुरत है क्योंकि इजराइल भी आतंकवादी से परेशान है और अभी भी ख़त्म नहीं कर पा रहा है इसका अंत विश्व पटल पर ही कठोर निर्णय से हो सकता है भारत को अभी और रक्षा में मजबूती की जरुरत है क्योंकि एक तरफ चीन उसका साथ देता है और धर्म के नाम पर बहुत से देश इसका समर्थन कर दे देते हैं हमारे सभी मुस्लिम भाई भारत के समर्थन में रहें और देश की एकता से ही सबों में भय दूर होगा और एक ही धर्म है भारतवासी अपने मात्रभूमि के लिए लड़ना और मरना, अतः संयम और शांति से देश की प्रगति में सभी योगदान दें विज्ञान की प्रगति के साथ विश्वभर में चारों ओर विकास ने नई करवट ली है। विकास के नित नये आयामों से सभी देश अपनी समृद्धि को तीव्र वेग से आगे बढ़ाने में जुट गये हैं। जिसके कई सुखद परिणाम भी सामने आये हैं। विज्ञान ने चिकित्सा स्वास्थ्य, कृषि, उद्योग, यातायात, दूरसंचार, युद्ध उपकरणों इत्यादि सभी क्षेत्रों में आशातीत प्रगति की है और इस ओर अभी भी वैज्ञानिकों का प्रयास जारी है। इस कारण आधुनिक भौतिक साधनों ने इन्सानों का जीवन ही बदल दिया है। सभी देश विज्ञान के आधार पर अपने देश को प्रगतिशील,समृद्धशाली, शक्तिशाली बनाने की होड़ में लगे हुए हैं। इस होड़ अर्थात् प्रतिस्पर्धा को लेकर सभी देश अपनी सुरक्षा के लिए अस्त्रा-शस्त्रों का उत्पादन करने में जुट गये हैं।रूस और यूक्रेन के युद्ध में निर्दाेष नागरिकों की बहुत अधिक संख्या में जान जा रही है और लोगों का जीवन अस्त व्यस्थ हो गया है इस जंग में यूक्रेन व रूसी सैनिकों की भी मौत हो रही है एक देश दुसरे देश के शक्ति प्रदर्शन के चक्कर में अपने देश का ही नहीं बल्कि पूरे विश्व की अर्थव्यवस्था तबाह हो रही है व विश्व शांति पर खतरा मंडराने लगा है 2साल से अधिक समय से चल रहे इस युद्ध में केवल तबाही मची है व बेगुनाह लोगों की मौत हो रही है अब ऐसा लग रहा है कि यह युद्ध में कहीं परमाणु अस्त्रों का इस्तेमाल न हो जाए लेकिन ऐसा किस उद्देश्य के लिए हो रहा होगा उधर चीन और ताईवान मेँ भी युद्ध के बादल मंडरा रहें हैं जैसा चीन और अमेरिका के वक्तवय व ताईवान की सीमा पर चीन द्वारा लगातार युद्धाभ्यास से नजर आ रहा है दोनों देश के पास परमाणु अस्त्रओं का भंडार है अतः आज विश्व मेँ परमाणु हमले का खतरा मंडरा रहा है जिसके शिकार निर्दोष जनता को भुगतना पड़ सकता है इसके अलावा जो आस पास के देश होंगे वहां भी एटम बम के विस्फोट से रेडिशन फ़ैल जाएगा और इसका खामियाजा उन देशों को रेडीएशन की मार से कैंसर, शारीरिक विकृति के शिकार हो सकते हैं इससे सिर्फ आस पास के देश ही नहीं बल्कि पूरा विश्व वैश्विक तापन की मार झेल सकता है क्योंकि परमाणु अस्त्र के विस्फोट से ओजोन परत इस कदर से नाश होगा कि पूरा विश्व ही ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव से प्रभावित होगा.इस पर चिंतन करने की आवश्यकता है आज सारे देश में हथियार खरीदने की होड़ लगी है इसे रोकना चाहिएएइस कारण नित्य नये-नये घातक अस्त्रा-शस्त्रों का निर्माण हो रहा है जो कभी भी विनाश के कारण बन सकते हैं। अस्त्रा-शस्त्रों की बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण सम्पूर्ण विश्व चिंतन के सागर में डूबा हुआ है। इससे बचने के लिये सभी देश, जो स्वयं अपनी सुरक्षा के लिये चिंतित होने पर भी अस्त्रा-शस्त्रा के भंडारण में जुटे हुए होने के बाद भी विश्व शान्ति के लिये निःशस्त्रीकरण का राग अलापते थकनहीं रहे हैं।विध्वंशकारी अस्त्र-शस्त्रों से विनाश की स्थिति को जानते हुए भी कई देशों ने एक-दूसरे देश पर आक्रमण कर विनाश लीला का खुला तांडव खेला है। जिसके दुष्परिणामों ने असंख्य इन्सानों की जान ली है। वहाँ अनगिनत देश की समृद्धि की झलक दिखाने वाले निर्माण कार्यों को विध्वंश कर दिया है। चारों ओर तबाही मचाने में किसी प्रकार की कमी नहीं रखी है। विकास को विनाश में बदल दिया है। इस आक्रमणकारी नीति से बचने के लिये सभी अपने देश में शान्ति, खुशहाली, समृद्धि के पक्ष में निःशस्त्रीकरण की फिराक में रहते हैं और इसके लिए सभी देशों का जन समर्थन जुटाने में कटिबद्ध हैं। क्योंकि सभी को विनाश का खतरा सामने दिखाई देता है। आज दुनिया परमाणु युद्ध की तरफ बढ़ रहा है इसके परिणाम हम सभी जानते हैं 76 साल पहले 6 अगस्त 1945 को अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा शहर पर दुनिया का पहला परमाणु बम हमला किया था. इसके तीन दिन बाद जापान के ही नागासाकी शहर पर दूसरा परमाणु बम गिराया गया. दोनों शहर लगभग पूरी तरह तबाह हो गए. डेढ लाख से अधिक लोगों की पल भर में जान चली गई और जो बच गए वो अपंग हो गए और आज भी जो बच्चे जन्म लेते हैं वे अपंगता के शिकार होते हैं क्योंकि रेडिएशन का खतरा 100वर्षों य़ा इससे भी अधिक रहता हैव जिसकी मार मासूम लोगों को भुगतना पड़ता हैए इसके लिये सभी देशों को निर्दाेष इन्सानों की रक्षा हेतु परमाणु निःशस्त्रीकरण का संकल्प लेने पर जोर दिया है ताकि कभी भी किसी देश पर आक्रमण करने की स्थिति ही नहीं बने। विश्व में अस्त्र-शस्त्रों की होड़ ही आक्रमणकारी बनाने का माध्यम बनती है। वहाँ इन्सान भी आवेश, आक्रोश,गुस्से, बदले की भावना, किसी को प्रताड़ित करने के उद्देश्य से, किसी का तिरस्कार करने, किसी को दंडित करने के लिये आक्रामक रुख अपनाते हुए आक्रमणकारी होता है तो उसके सामने, सामने वाले के विनाश के अलावा कुछ दिखाई नहीं देता है। आक्रमणकारी की चाह रहती है कि वह जो आक्रमण कर रहा है वह विफल न हो जावे व परमाणु बम के हमला की आशंका बढ़ जाती है । इस कारण इन्सान-इन्सान में घृणा, द्वेषभाव, ईर्ष्या, दुश्मनी आदि उत्पन्न होती है जो इन्सानों की सुख-शांति, अमनचैन छीनती है। ऐसी आक्रमणकारी नीति से बचने के लिये और विश्व में शान्ति स्थापित करने हेतु परमाणु निःशस्त्रीकरण पर अधिक बल देना चाहिए। इसी सुख-शान्ति अमन-चैन के साथ एक-दूसरे के प्रति भाईचारे के भाव बनाने के लिए इन्सान को अन्य किसी इन्सान पर आक्रमणकारी नहीं बल्कि सहयोगी बन कर रहने में ही भलाई है। इससे आक्रमणकारी को भी शांति और संतोष मिलता है। बुरे विचार इसके दिल और दिमाग से हट जाते हैं। ऐसी मानसिक शांति पाने के लिये आक्रमणकारी नहीं बनने की सीख आचार्य तुलसी ने देश की आजादी के बाद मानवता आंदोलन चलाकर विश्व को एक नई दिशा दी। मानवता के आधार पर इन्सान यह सोचे कि मैं आक्रमणकारी नहीं बनूं और न ही सहयोग दूंगा। इस दृढ़ संकल्प द्वारा वह शांति का शंखनाद करने में कदापि पीछे नहीं रहेगा। वर्तमान में इसकी महत्ती आवश्यकता है। इसी प्रकार एक-दूसरे देश पर आक्रमण करता है तब अन्य देश आपस में लड़ने वाले किसी एक देश की आक्रामक नीति में भागीदार बनता है, उसे ममदद देता है, सहयोगी के रूप से दुश्मन समझने वाले देश से युद्ध करता है तब वहाँ सर्वत्रा विनाश ही विनाश होने की संभावना बढ़ती है। ऐसी विषम स्थिति में विश्व शांति को कभी भी खतरा उत्पन्न हो सकता है। विनाश की इस स्थिति से अपने को दूर रखने के लिए आक्रामक देश को समर्थन सहयोग नहीं देने का संकल्प अणुव्रतों को आधार मानकर किया जाय तो विश्व शांति की स्थिति बन सकती है और इन्सानों को अकाल मृत्यु, बेमौत मरने से बचाया जा सकता है। वहाँ परिवार और समाज में स्नेह, आत्मीयता,भाईचारे की भावना के साथ सहयोग एवं सहानुभूति कर संकल्प लिया जाय तो इन्सान का जीवन स्वर्गमय बन सकता है। ऐसे इन्सान को सुख, चैन, शान्ति से जीवनयापन करने से कोई रोक नहीं सकता।निःशस्त्रीकरण आज की मांग है। इस बात की आवश्यकता है कि उचित निदान द्वारा विश्वजनित मतभेदों को भुलाकर अशांति का माहौल खत्म किया जाए। अतः निःशस्त्रीकरण एक सराहनीय कदम है।अतः शांति व शौर्य से ही देश में खुशहाली होगी हमें दूसरे देश पर निर्भरता कम करनी चाहिए क्योंकि हमारे देश में टैलेंटेड लोगो की कमी नहीं है.अतः अब सचेत होकर अपने आप को विश्व पटल पर रक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ना है और अब शांति से काम करने की जरुरत है क्योंकि देश की तरक्की हमेशा आतंकमुक्त होकर तकनिकी विकास से ही आगे बढ़ेगी। ईएमएस/14/05/2025