लेख
17-May-2025
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भारतीय समाज में जब भी नारी सशक्तिकरण की बात होती है, तो उसे अक्सर सामाजिक अधिकारों, शिक्षा या स्वास्थ्य से जोड़ा जाता है। लेकिन असल शक्ति तब दिखाई देती है जब महिलाएं उन क्षेत्रों में आगे बढ़ती हैं, जिन्हें अब तक पुरुष-प्रधान समझा जाता रहा है। भारतीय सेना, वायुसेना और नौसेना ये तीनों सेनाएँ अब उस बदलाव का गवाह बन चुकी हैं जहाँ महिला अधिकारी न केवल वर्दी पहनती हैं, बल्कि उसका गौरव भी बढ़ा रही हैं। लेफ्टिनेंट कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह आज भारतीय नारी शक्ति के ऐसे ही दो उज्ज्वल प्रतीक हैं, जिन्होंने देश, समाज और आने वाली पीढ़ियों को यह विश्वास दिलाया है कि महिलाएं नेतृत्व करने में भी किसी से कम नहीं। लेफ्टिनेंट कर्नल सोफिया कुरैशी ने वर्ष 2016 में इतिहास रचा, जब उन्होंने बहुराष्ट्रीय सैन्य अभ्यास फोर्स 18 में भारतीय दल की अगुवाई की। 18 देशों की सेनाओं के बीच भारतीय टुकड़ी की कमान किसी महिला अधिकारी को सौंपना अपने आप में इस बात का संकेत था कि सेना अब योग्यता को लिंग से ऊपर मान रही है। सिग्नल कोर की अधिकारी होने के नाते, उनका कार्य रणनीतिक संचार व्यवस्था को संभालना था। ये एक ऐसा क्षेत्र है, जो सेना के लिए रीढ़ की हड्डी जैसा होता है। इससे पहले भी वे संयुक्त राष्ट्र के कांगो मिशन में सैन्य पर्यवेक्षक के रूप में सेवा दे चुकी हैं, जहाँ उन्होंने युद्ध प्रभावित इलाकों में मानवीय प्रयासों के संचालन में सक्रिय भूमिका निभाई। उनका कद सिर्फ एक सैन्य अधिकारी के तौर पर नहीं, बल्कि एक आदर्श के रूप में स्थापित हुआ है। दूसरी ओर, हाल के घटनाक्रम में विंग कमांडर व्योमिका सिंह ने देश के समक्ष नारी नेतृत्व की एक नई मिसाल पेश की। 7 मई 2025 को उन्होंने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के संबंध में आधिकारिक मीडिया ब्रीफिंग की, जो 22 अप्रैल को हुए पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में अंजाम दिया गया था। उन्होंने पूरी सटीकता और संयम के साथ बताया कि किस प्रकार भारतीय वायुसेना ने निशाना साधते हुए सीमापार स्थित नौ आतंकी ठिकानों को नेस्तनाबूद किया, वह भी बिना किसी नागरिक क्षति के। यह नेतृत्व का वही रूप है जो शक्ति के साथ संवेदनशीलता को भी साथ लेकर चलता है। पारंपरिक सोच को चुनौती देता है और एक नई सोच को जन्म देता है। ये घटनाएँ सिर्फ दो महिलाओं की व्यक्तिगत उपलब्धियाँ नहीं हैं। यह एक बड़ा सामाजिक परिवर्तन है जो धीरे-धीरे हमारे संस्थानों की सोच में उतर रहा है। सेना जैसे अनुशासित और कठोर ढांचे में महिलाओं की स्वीकार्यता और नेतृत्व की भूमिका उस बुनियादी मानसिकता को चुनौती देती है, जहाँ शक्ति का मतलब सिर्फ बाहुबल समझा जाता था। सोफिया और व्योमिका जैसी महिलाएं दिखाती हैं कि अब शक्ति का अर्थ संवेदना, रणनीति और साहस का संतुलन है। महिला सशक्तिकरण सिर्फ आरक्षण या अवसर का सवाल नहीं है। असली सशक्तिकरण तब होता है जब एक महिला को देश की सीमाओं की रक्षा, रणनीतिक निर्णय और राष्ट्रीय गर्व के प्रतीक मिशनों की कमान दी जाती है—बिना संकोच, बिना शंका। जब कोई युवती इन नामों को पढ़ती है, तो उसे यह महसूस होता है कि सेना अब सिर्फ पुरुषों की बपौती नहीं रही। यह वही क्षण होता है जब सपनों को पंख मिलते हैं। ऐसे में आज जरूरत है कि इस सोच को और व्यापक बनाया जाए। महिलाओं की भागीदारी केवल सैन्य क्षेत्र तक सीमित न रहे, बल्कि हर उस मंच पर हो जहाँ निर्णय लिए जाते हैं, जहाँ नीति बनती है, जहाँ भविष्य की दिशा तय होती है और जब यह बदलाव सशस्त्र बल जैसे संस्थानों में संभव है, तो बाकी क्षेत्रों में भी इसे संभव बनाना कोई सपना नहीं, बल्कि संकल्प होना चाहिए। लेफ्टिनेंट कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह की कहानियाँ यही कहती हैं कि अब नारी शक्ति केवल घर की चौखट तक सीमित नहीं, वह रणभूमि से लेकर रणनीति तक हर मोर्चे पर सक्षम है। उनकी उड़ान हमें याद दिलाती है कि सशक्त नारी सिर्फ प्रेरणा नहीं, परिवर्तन की अगुआ होती है। इतना ही नहीं अब नारी शक्ति किसी विशेष अवसर की मोहताज नहीं, वह हर समय, हर स्थान पर अपनी ऊर्जा और संवेदना से राष्ट्र को मजबूती देती है। जब एक महिला बंदूक उठाती है, तो उसमें सिर्फ सुरक्षा नहीं, संवेदनशीलता भी होती है। जब वह हेलमेट पहनती है, तो उसमें सिर्फ हिम्मत नहीं, जिम्मेदारी की गंभीरता भी होती है। यह दौर अब सिर्फ पुरुषों का नहीं, बल्कि पुरुषों और महिलाओं के साझे कंधों पर टिके भारत का है। वह भारत जो युद्धभूमि से लेकर अंतरिक्ष तक, गांव की पंचायत से लेकर ग्लोबल मंच तक, नारी की उपस्थिति को स्वीकार नहीं, आत्मसात कर रहा है। ( स्वतंत्र लेखिका एवं शोधार्थी) (यह ले‎खिका के व्य‎‎‎क्तिगत ‎विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अ‎निवार्य नहीं है) .../ 17 मई /2025