क्षेत्रीय
17-May-2025
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जटाशंकर त्रिवेदी स्नातकोत्तर महाविद्यालय के विद्यार्थियों ने किया नवाचार पराली से बनाए दो तरह के अलग-अलग उत्पाद बालाघाट (ईएमएस).पराली अब किसानों के लिए समस्या नहीं रहेगी। बल्कि इससे किसानों की आय भी बढ़ेगी और पर्यावरण प्रदूषित भी नहीं होगा। जटाशंकर त्रिवेदी स्नोतकोत्तर महाविद्यालय के छात्र-छात्राओं ने पराली पर नवाचार किया है। छात्रों ने पराली से दो तरह के उत्पाद तैयार किए हैं। जिसमें अग्रहणीय और खाद्य शिल्प शामिल है। पराली से बनाए गए उत्पादों को राज्य स्तर पर सम्मानित भी किया गया है। जानकारी के अनुसार शासकीय जटाशंकर त्रिवेदी स्नातकोत्तर महाविद्यालय के छात्र मानसी बिसेन, नैशा कटरे, श्रद्धा शिववंशी और ओम डहरवाल ने विभागाध्यक्ष बायोटेक्नोलॉजी डॉ दुर्गेश एम अगासे के निर्देशन में पराली से विभिन्न प्रकार के उत्पाद बनाने का फार्मूला तैयार किया है। इसके लिए विद्यार्थियों ने काफी प्रयोग किए। जिसमें उन्हें सफलता मिल गई है। विद्यार्थियों के अनुसार गेहूं की पराली को बारिक काटकर थर्माकोल और गैसोलीन बेस्ट चिपकने वाले पदार्थ के साथ मिलाकर एक कॉम्पोजिट सामग्री तैयार की जा सकती है। यह उत्पाद पर्यावरण के अनुकूल होता है। इसके तैयार होने पर अब देश में कृषि कचरे का दोबारा उपयोग होगा और ग्रामीण भारत में पारली जलाने से होने वाले प्रदूषण को कम करने में मदद मिलेगी। ऐसे तैयार होते हैं अग्रहणीय शिल्प अग्रहणीय शिल्प में सजावटी फर्नीचर, फे्रम या कठोर मॉडल बनाए जाते हैं। इसे तैयार करने के लिए घरेलू पॉलिस्टायरीन चिपकने वाला पदार्थ का उपयोग किया जाता है। इस पॉलिस्टायरीन (थर्मोकॉल) को पेट्रोल में धीरे-धीरे घोलकर तैयार किया जाता है। जिससे एक मजबूत व चिपचिपा पदार्थ तैयार हो जाता है। इसी पदार्थ से पराली और अन्य हल्के लिग्रोसिलूलोजिक अवयवों को कठोर कॉम्पोजिट संरचनाओं को आपस में जोडऩे का कार्य करता है। इससे प्राप्त घोल को तत्काल ही अग्रहणीय शिल्प बनाने के लिए उपयोग में लाया जाता है। बेल का उपयोग कर तैयार किए जाते हैं खाद्य शिल्प पराली से खाद्य शिल्प उत्पादों में दोना, पत्तल, कटोरी सहित अन्य सामग्री तैयार की जाती है। यह बायोडिग्रेडेबल होती है। इसे तैयार करने के लिए मुख्य रुप से बेल का उपयोग किया जाता है। बेल से निकलने वाला गम (चिपचिपा पदार्थ) जो एग्ले मारमेल्स से प्राप्त होता है। जिसमें गेर टॉक्सिस और बायोडिग्रेडेबल पॉलिसाक्राइड होता है। इसमें मुख्य रुप से गैलेक्टोज, रन्मोज, अरैबिनोज और गैलेक्टयूरोनिक एसिड्स होते हैं। इन घटकों की वजह से इसकी उत्कृष्ट म्यूकोएडेसिव व फिल्म बनाने की गुणात्मक विशेषताएं होती है। गम को हल्की आंच पर पानी में घोलकर फिर इसमें बारिक कटी व सूखी हुई पराली को मिलाया जाता है। जिससे एक लचिला और खाद्य सुरक्षित पेस्ट तैयार हो जाता है। इस मिश्रण को बायोडिग्रेडेबल मोल्ड्स का उपयोग करके आकार दिया जाता है। जिसके सूखने पर वह सुरक्षित खाद्य शिल्प उत्पाद के रुप में तैयार होता है। पराली जलाने से होता है वायु प्रदूषण पराली जलाने से हवा में बहुत ज्यादा प्रदूषण होता है। जिसका सबसे ज्यादा असर बच्चों पर पड़ता है। धान की पराली जलाने से निकलने वाली कार्बन मोनो ऑक्साइड गैस जब हवा में महीन कणों के साथ मिलती है तो यह शरीर में ऑक्सीजन को अवशोषित करने की क्षमता कर देती है। इससे सांस लेने की समस्या पैदा होती है। इसके अलावा ग्रीन हाउस गैसें और अन्य हानिकारक प्रदूषक फैलते हैं। इससे मिट्टी का तापमान भी बढ़ जाता है। जिससे सूक्ष्मजीव नष्ट होते हैं और मिट्टी की उपजाऊ क्षमता घट जाती है। पराली जलाने की समस्या और उससे होने वाले नुकसान को कम करने के लिए विद्यार्थियों ने पराली पर नवाचार किया है। पराली जलाने पर दर्ज हो चुकी है तीन एफआइआर जिले में पराली जलाने पर अभी तक तीन एफआइआर अलग-अलग थानों में दर्ज कराई गई है। दरअसल, कलेक्टर मृणाल मीना ने पराली जलाने पर रोक लगाने के आदेश जारी किए हैं। वहीं आदेश का उल्लंघन करने पर संबंधितों पर एफआइआर दर्ज कराने के निर्देश दिए हैं। जिसके तहत जिले में अभी तक तीन स्थानों पर पराली जलाए जाने पर एफआइआर दर्ज कराई गई है। भानेश साकुरे / १७ मई २०२५