बालाघाट (ईएमएस).सीमित संसाधनों में पली-बढ़ी सीमा (परिवर्तित नाम) ने विषम परिस्थितियों में भी हार नहीं मानी और आज वह कई महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुकी है। माता पिता द्वारा रोजगार गारंटी योजना के तहत मजदूरी करके सीमा को बीए की शिक्षा दिलाई। सामाजिक रीति-रिवाजों के अनुसार उसका विवाह संदीप (परिवर्तित नाम) से हुआ। परंतु यह संबंध शीघ्र ही मानसिक और शारीरिक हिंसा में तब्दील हो गया। सीमा को गाली गलोज देकर मारपीट करना उसके रंग रूप को लेकर भद्दी टिप्पणी कर गर्भावस्था के दौरान ही उसे घर से निकाल दिया गया। बेबस और असहाय स्थिति में सीमा ने अपने माता-पिता की सहायता से वन स्टॉप सेंटर बालाघाट की शरण ली। जहां वन स्टॉप सेंटर प्रशासक रचना चौधरी द्वारा उसे निशुल्क परामर्श मार्च 2023 में दिया गया। पुलिस साहयता जुलाई 2023 में प्रदान की गई। कानूनी सहायता तथा घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत घरेलु हिंसा रिपोर्ट न्यायालय में अगस्त 2023 दर्ज कराया गया। इसी दौरान सीमा ने एक बेटी को जन्म दिया। दस्तावेज़ों की अनुपलब्धता के कारण नवजात को लाड़ली लक्ष्मी योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा था, किंतु वारासिवनी परियोजना अधिकारी पियूष बोपचे के प्रयासों से ‘एकल माता’ के रूप में प्रकरण तैयार कर योजना का लाभ सुनिश्चित किया गया। वन स्टॉप सेंटर बालाघाट से सीमा को रिक्शा चलाने का प्रशिक्षण वर्ष 2024 से प्रदान किया गया। चार पहिया वाहन का ड्राइविंग लाइसेंस भी बनवाया गया। इसके बाद मुख्यमंत्री उद्यम क्रांति योजना के अंतर्गत 1.67 लाख रुपये का ऋण स्वीकृत हुआ। जिससे उसे 15 मई को ई-रिक्शा उपलब्ध कराया गया। अब सीमा स्वावलंबन की राह पर अग्रसर है और अपने जीवन में नए अध्याय की शुरुआत कर चुकी है। आज सीमा सिर्फ एक पीडि़ता नहीं बल्कि साहस, आत्मबल और पुनर्निर्माण की प्रतीक बन चुकी है। उसकी कहानी इस संदेश के साथ गूंजती है कि अगर हौसला हो तो हर अंधेरा उजाले में बदला जा सकता है। भानेश साकुरे / 24 मई 2025