ज़रा हटके
09-Jul-2025
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नई दिल्ली (ईएमएस)। भारत के गांवों में प्रचलित कहावत ‘सावन साग न भादो दही’ इसी समझ का सरल और लोकल जुबान में उदाहरण है, जो बताती है कि सावन में हरी पत्तेदार सब्जियां और भादों में दही क्यों नहीं खाना चाहिए। सावन के दौरान बारिश और नमी के कारण जमीन के भीतर रहने वाले कई तरह के कीड़े-मकोड़े ऊपर आ जाते हैं। ये कीट हरी घास या सब्जियों को संक्रमित कर सकते हैं। चूंकि गाय-भैंस ऐसी घास खाती हैं, इसलिए उनका दूध भी संक्रमित होने का खतरा रहता है। इससे बने उत्पाद स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह हो सकते हैं। दही के सेवन से भी परहेज की सलाह दी जाती है क्योंकि नमी भरे मौसम में हानिकारक बैक्टीरिया तेजी से पनपते हैं। साथ ही दही की तासीर ठंडी होती है, जो सर्दी-जुकाम का कारण बन सकती है। आयुर्वेद के अनुसार वर्षा ऋतु में पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है। ऐसे में प्याज और लहसुन जैसी गर्म तासीर वाली चीजें अपच, पेट फूलना और गैस की समस्या बढ़ा सकती हैं। चरक संहिता में सावन महीने में बैंगन खाने से परहेज की सलाह दी गई है क्योंकि इसकी प्रकृति और नमी भरे मौसम में इसमें कीड़े लगने की संभावना अधिक रहती है। इसे गंदगी में उगने वाली सब्जी कहा जाता है, जिससे संक्रमण का खतरा भी बढ़ सकता है। सुश्रुत संहिता में भी हरी पत्तेदार सब्जियों को सावन में वर्जित माना गया है। बारिश के मौसम में मिट्टी में रहने वाले कीड़े और कीटाणु इन पत्तियों को संक्रमित कर सकते हैं, जिससे वायरल या बैक्टीरियल संक्रमण का खतरा रहता है। यही कारण है कि सदियों से भारत में सावन के महीने में खानपान को लेकर विशेष सतर्कता बरती जाती है और यह परंपरा लोककथाओं और कहावतों के माध्यम से आम जनजीवन में गहराई से जुड़ी हुई है। बता दें कि भोलेनाथ का प्रिय मास माने जाने वाला श्रावण इस वर्ष 11 जुलाई से आरंभ हो रहा है। भारतीय संस्कृति में यह महीना न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि जीवनशैली और खानपान में बदलाव की परंपरा से भी जुड़ा हुआ है। बड़े-बुजुर्ग अक्सर सावन में कुछ चीजें खाने से मना करते हैं और इसके पीछे केवल आस्था ही नहीं, बल्कि ठोस वैज्ञानिक वजहें भी बताई जाती हैं। सुदामा/ईएमएस 09 जुलाई 2025