ज़रा हटके
09-Jul-2025
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कैलिफोर्निया (ईएमएस)। वैज्ञानिकों के अनुसार, एक ऐसा आनुवंशिक बदलाव खोजा है जो इंसानों में कैंसर का खतरा बढ़ा देता है। अमेरिका के कैलिफोर्निया डेविस यूनिवर्सिटी के इस रिसर्च के मुताबिक, यह बदलाव हमारे इम्यून सिस्टम यानी शरीर की रक्षा प्रणाली को कमजोर कर देता है, जिससे कैंसर कोशिकाएं तेजी से बढ़ने लगती हैं। इसे कैंसर के इलाज में बड़ी प्रगति माना जा रहा है, क्योंकि इसकी मदद से भविष्य में नई और ज्यादा असरदार थेरेपी विकसित की जा सकती है। शोध में सामने आया है कि इंसान और दूसरे नॉन-ह्यूमन प्राइमेट्स जैसे चिंपैंजी के बीच एक छोटा सा जेनेटिक अंतर है, जो बड़ी भूमिका निभाता है। दरअसल, हमारे शरीर की कुछ प्रतिरक्षा कोशिकाएं सॉलिड ट्यूमर यानी गांठ वाले कैंसर से लड़ने में उतनी असरदार नहीं होतीं जितनी चिंपैंजी या अन्य प्राइमेट्स की होती हैं। यह अंतर ‘एफएएस-लिगैंड’ नाम के एक प्रोटीन में पाया गया है, जो प्रतिरक्षा कोशिकाओं को कैंसर कोशिकाओं पर हमला करने में मदद करता है। इंसानों में इस प्रोटीन की संरचना में एक मामूली बदलाव हुआ है एक अमीनो एसिड प्रोलाइन की जगह सेरीन आ गया है। इसी बदलाव के कारण यह प्रोटीन प्लास्मिन नामक एंजाइम से ज्यादा आसानी से कट जाता है और कमजोर पड़ जाता है। प्लास्मिन एक प्रोटीज एंजाइम है जो ट्यूमर कोशिकाओं की मदद करता है और कैंसर को ज्यादा खतरनाक बना सकता है। इस कटाव की वजह से ‘एफएएस-एल’ प्रोटीन की ताकत कम हो जाती है और इम्यून सिस्टम ठीक से काम नहीं कर पाता। इस बारे में मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी और इम्यूनोलॉजी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर जोगेंद्र तुशीर सिंह का कहना है कि यह बदलाव इंसानी दिमाग की सोचने-समझने की क्षमता को तो बढ़ा सकता है, लेकिन कैंसर के खिलाफ लड़ाई में नुकसानदेह साबित हुआ है। उन्होंने यह भी कहा कि इंसानों में चिंपैंजी और अन्य प्राइमेट्स की तुलना में कैंसर की दर कहीं ज्यादा पाई जाती है। सुदामा/ईएमएस 09 जुलाई 2025