लेख
10-Jul-2025
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देश में इन दिनों चहुंओर मानसूनी बारिश खूब बरस रही है। सालों बाद जरूरत के मुताबिक ऐसी बारिश देखने को मिली। हां बरखा से जीवन व जमीन को सुविधा और दुविधा साथ-साथ हो रही है। आलम कहीं सूखे से राहत तो कहीं बाढ़ की आफत तो कहीं फसल की खुशामत तीनोें हद की हिमाकत पर है। येही तो असली कुदरत का करिश्मा है। जिसे हम मानव अपनी होशियारी व हरकत से हुकूमत समझते आए हैं। नतीजतन पानी-पानी के लिए त्राहिमाम- त्राहिमाम होना हमारी फितरत बन गई है। बकौल गंदगियों से जिंदगियां तबाह, पावन सलिला आचमन होकर सूखे कंठ और जमीं को तृप्त नहीं कर पा रही है। बावजूद सबक लेना तो दूर उसके कारक भी मानव रूपी दानव बे-रोक टोक बनते जा रहे हैं। प्रकृति अनमोल धरोहर ये भूलते हुए कि प्रकृति हमारी आने वाली पीढ़ी की अनमोल धरोहर है। उसे संजोए रखने के बजाए नेस्तनाबूत करने में प्राणपण से जुटे हुए हैं। इसीलिए प्रकृति भी अपना हिसाब समय-समय पर पूरा कर देती है। ऐसे में भी जल प्लावन, अतिवृष्टि, भूकंप, भूस्खलन, दुर्घटना और आगजनी जैसी त्रासदी में हमारी मजे की चाहत हिलौरें मारती नहीं थकती। ऐसा ही मंजर हालिया घरों, सड़कों, नदी, नालों और तालाबों में आई विनाशकारी उफान में दिखाई पढ़ा। जहां जल प्रलय, सैलाब में उमड़े जनसैलाब ने चलो, चलें बाढ़ का मजा ले कहने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। जैसे समुद्र का तट, झील की ठंड़क और वादियों का मनोहारी आबोहवा हो वैसे ही ललक से त्रासदी का मनचाहा लुत्फ उठाने में सिरमौर रहे। बर्बादी का कहर वीभत्स! विनाश पर तमाशबीनों ने गजब का तमाशा बनाया। बे-खबर राहगिरों, बीमार और जरूरतमंदों की आवाजाही में अड़ंगा लगाए रखा चाहे रास्ता जलमग्न ही क्यो ना हो? तथा मौके पर राहत में जुटा अमला और सुरक्षा कर्मी मुसीबत में फंसे त्रस्त को छोड़कर मजाकियां ग्रस्त को समझाते, झड़काते तथा हटाते रहने में मजबूर रहा। बावजूद नुक्ता-चिनी और नुराकुश्ति में मशगूल बेदरंगी अपना रौब झाड़ते हुए अपने यारों को दूरभाष यंत्र पर आंखों देखा हाल, चित्र और चलचित्र दिखाकर बर्बादी का कहर देखने न्यौता देते रहे। बिना देर गंवाए यारी भी ऐसी निभी की पलक झपकते ही शागिर्दों का रैन बसैरा वाहनों का काफिला लेकर सड़कों पर धमाचौकड़ी मचाते रहा। और तबाही का हर सुख लेते तक टस से मस नहीं हुआ, जब तक पानी खतरे से नीचे नहीं आया। बेखौफ जमघट बद्स्तुर यहां वक्त की दुहाई देते थकने नहीं वाले सरकारी नुमाइंदे, राजनैतिक आकाओं, डाक्टरों और व्यापार जगत के साहूकारों का जमघट बेखौफ, नफे नुकसान बैगर नाश को शान से देखता रहा। बरबस, तसल्ली से प्रफुल्लित मुद्रा में नाते- रिश्तेदारों को महाप्रलय की अजर- अमर खुशखबरी सुनाई। खातिरदारी में फुटकर चना, फल्ली, मक्का, चाय, पान और मंगोड़े इत्यादि बेचने वालों ने मौके का फायदा उठाकर मेहनत की कमाई कर ली। विपदा के गुनाहगार काश! इतनी ही शिद्दत, दौलत और मेहनत आपदा व बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए कर दी जाती तो डूबते को तिनके का सहारा हो जाता। कई उजड़े घरों को परछाई, बीमार को दवाई, बच्चों को पढ़ाई, बेरोजगारों को कमाई, किसान को उपज की भरपाई और गरीबों की भलाई हो जाती। लेकिन चंद मुठ्ठी भर सेवादानों और सरकारी मोहकमों के अलावा किसी ने इनकी परवाह तक नहीं की। उलट छोड़ दिया हालातों पर अपने नयन सुख के निहारने के वास्ते मौजदारों ने। गफलतबाजी में कि इस विपदा के वाकई कोई गुनाहगार है तो हम है और हम ही है, जिसका परिणाम आज दूजे तो कल हमें भोगना है। बेरुखी से दरकिनार अलबत्ता, बचाव ही उपाय है यह मूल मंत्र हमें प्रलयकारी मुसीबतों से बचा सकता है। इसके लिए हमें समय रहते कारगर कदम उठाने की जरूरत है। जो हम बेरुखी में सालों से दरकिनार करते आए हैं। प्रतिफलन सूखा, बाढ़ और भूस्खलन आदि दिक्कतें जन-जीवन तथा परि आवरण को आगोश में ले रही हैं। प्रकृति का विदोहन लिहाजा, अब बिना देर गंवाए अवैध उत्खनन- प्रदूषण रोकने, जल- जंगल- जमीन- पशुधन बचाने, वृक्ष बनाने, जैविक खेती को बढ़ावा, कांक्रीट के संजाल से मुक्ति और स्वच्छता के ईमानदारी से ठोस प्रयास करने पड़ेंगे। समेत हर घर रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम, जल सोख पीड़, पेड़ का मनोपयोग और कमशकम जिला स्तर पर नदी- नाला- तालाबों को जोड़ने की परिकल्पना जल संरक्षण के निहितार्थ साकार करना होगा। तब ही सही मायनों में प्रकृति का विदोहन सजा की जगह मजा की सुखद अनुभूति देंगा। ईएमएस/10/07/2025