राष्ट्रीय
16-Jul-2025
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-हम अमेरिका से कर सकते हैं ट्रेड, लेकिन बिना आत्मा को बेचे नई दिल्ली,(ईएमएस)। भारत और अमेरिका के बीच सालों से लंबित ट्रेड डील एक बार फिर विवादों में है। इस बार वजह है नॉन-वेजिटेरियन गायों का दूध। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका में डेयरी फार्मों में गायों को ऐसे चारे दिए जाते हैं, जिनमें पशु-आधारित प्रोटीन, जैसे चिकन मीट स्क्रैप्स, गाय व सुअर की हड्डी पाउडर, रक्त आदि शामिल होते हैं। इसका मकसद दूध उत्पादन बढ़ाना है, लेकिन भारत में यह विचार धार्मिक और नैतिक रूप से अस्वीकार्य है। जानकारी के मुताबिक गाय का दूध हिंदू संस्कृति में पवित्र माना जाता है पूजा, व्रत और संस्कारों में इसका इस्तेमाल होता है। मांसाहारी आहार वाली गाय से प्राप्त दूध का प्रयोग धार्मिक अनुष्ठानों में वर्जित माना जाता है। भारत चाहता है कि ऐसे उत्पादों पर स्पष्ट लेबल लगाए जाएं। अमेरिका ने भारत के इस रवैये को अनावश्यक व्यापार बाधा बताया है। उनका कहना है कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गाय के आहार का दूध पर असर नहीं होता। वे चाहते हैं कि भारत अपना डेयरी बाज़ार अमेरिकी कंपनियों के लिए खोले। भारत का कहना है कि डेयरी सेक्टर हमारे 8 करोड़ से ज्यादा छोटे किसानों की रीढ़ है। इसमें कोई समझौता नहीं होगा। भारत ने कहा कि यह रेड लाइन है यानी कोई समझौता नहीं किया जाएगा। डेयरी सेक्टर को छुआ भी नहीं जाएगा। सांस्कृतिक मूल्यों की अनदेखी कर ट्रेड नहीं हो सकता। भारत चाहत है हर अमेरिकी डेयरी उत्पाद पर यह स्पष्ट सर्टिफिकेशन हो कि “गाय को किसी पशु-आधारित भोजन नहीं दिया गया।” यह बात राइट टू इंफॉर्मेशन सिद्धांत से भी मेल खाती है यानी उपभोक्ता को जानने का अधिकार है। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत कभी भी उस दूध को स्वीकार नहीं करेगा, जो ऐसी गायों से आता हो जिन्हें मांस और खून खिलाया गया हो। भारतर दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है। यह सिर्फ ट्रेड डील का तकनीकी मुद्दा नहीं, बल्कि भारत की संस्कृति, आस्था और खाद्य संप्रभुता का सवाल है। भारत कह चुका है कि हम ट्रेड कर सकते हैं, लेकिन बिना आत्मा को बेचे। जब तक अमेरिका भारत की इस रेड लाइन को स्वीकार नहीं करता डेयरी बाजार खोलने की उम्मीद दूध में पानी जैसी ही बनी रहेगी। सिराज/ईएमएस 16 जुलाई 2025