केन्द्र की मोदी सरकार को प्रमुख कार्यसूची में एक प्रमुख कार्य पूरे देश में सभी चुनाव एक साथ कराना भी है और यह अहम् कार्य मोदी सरकार इसी कार्यकाल के दौरान कराना चाहती है जिससे कि अगले लोकसभा चुनाव के समय पूरे देश में पंचायत स्तर से लेकर पाॅर्लियामेंट तक के सभी चुनाव एक साथ करा सकें, लेकिन सरकार के इस प्रस्ताव को लेकर राजनीतिक तो बाद में पहले प्रशासनिक रूकावटें सर्वाधिक है और यह प्रस्ताव ठोस रूप से सामने आने के पहले ही अभी से न्याय पालिका व विधायिका के बीच घमासान शुरू हो गया है, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों ने इस दिशा में चुनाव आयोग को दी जाने वाली शक्तियों के प्रति विरोध व्यक्त किया है, पूर्व मुख्य न्यायाधीश इस मसले पर गठित समिति के सामने पेश होकर अपनी आपत्ती दर्ज करवा दी थी। सरकार के इस फैसले के पीछे प्रधानमंत्री का तर्क यह है कि देश की आजादी के बाद यह पद्धति लागू थी और देश के सभी चुनाव कई वर्षों तक एक साथ हुए, किंतु सत्तर के दशक में यह नियम भंग हो गया क्योंकि विधानसभाओं के असमय कुछ मुद्दों पर भंग करने का सिलसिला शुरू हो गया, इसलिए राज्यों के विधानसभा चुनाव संसद से पिछड़ गए और फिर ये चुनाव अलग-अलग समय पर होने लगें, जिससे देश को भारी आर्थिक क्षति के साथ राजनीति भी प्रभावित हुई। अब मोदी सरकार पुरानी परम्परा को फिर से लागू करना चाहती है, जिससे देश में पंचायत से पाॅर्लियामेंट के चुनाव एकसाथ हो सके और सरकारें निश्चिंत होकर निर्धारित पांच वर्ष की अवधि में अपने-अपने चुनावी घोषणा-पत्र को मूर्तरूप दे सके, मोदी जी ने सर्वदलीय बैठक बुलाकर इस मुद्दें पर चर्चा भी की और अनेक प्रतिपक्षी दल इस प्रस्ताव से सहमत भी हो गए, किंतु कांग्रेस जैसे प्रमुख दलों की सहमति प्राप्त नही हो सकी। अब सवाल यह है कि यदि मोदी जी अपने प्रयासों से राजनीतिक दलों की सहमति प्राप्त कर भी लेते है तो फिर प्रजातंत्र के प्रमुख स्तंभों न्याय पालिका और कार्य पालिका की पूर्ण सहमति कैसे प्राप्त होगी? फिर एक अहम् सवाल यह भी है कि क्या मोदी जी इस प्रस्ताव को संसद से पारित कराने के लिए दो-तिहाई बहुमत से ज्यादा जनसमर्थन प्राप्त कर सकेंगे, जो इसे लागू करने की पहली शर्त है? फिर भी मोदी सरकार को पूरी उम्मीद है कि आगामी लोकसभा चुनाव 2029 तक यह नही भी हो पाया तो उसके बाद के चुनाव 2034 तक तो यह शत-प्रतिशत संभव है और यह होकर रहेगा। किंतु फिलहाल इस मसले पर मतवैभिन्य जारी है कि इस हेतु क्या चुनाव आयोग को विशेष शक्तियां प्रदान करना जायज होगा, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के साथ प्रतिपक्षी दल भी इस मसले पर गंभीर चिंतन कर रहे है। क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय के कुछ न्यायाधीश पहले ही इस मामले में अपनी प्रतिरोधी राय प्रकट कर चुके है तथा चुनाव आयोग को शक्तियां देने वाले संविधान संशोधन विधेयक के कुछ प्रावधानों पर अपनी असहमति के साथ चिंता भी जताई है तथा कहा है कि चुनाव आयोग को बेलगाम ताकत मुहैय्या नही करवा सकते। फिल हाल इस मसले पर कई स्तरों पर गंभीर चिंतन जारी है अब अंतिम फैसला क्या होता है, उसी की प्रतीक्षा है। (यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अनिवार्य नहीं है) .../ 17 जुलाई /2025