वाशिंगटन (ईएमएस)। आखिरकार सालों से वैज्ञानिकों के लिए रहस्य बने तेज़ एक्स-रे फ्लैश का राज खुल गया है। वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि ये चमकती हुई रहस्यमयी एक्स-रे घटनाएं असल में एक असफल गामा-रे विस्फोट का नतीजा होती हैं। यह खोज खगोल वैज्ञानिकों के लिए बेहद अहम मानी जा रही है क्योंकि इससे सुपरनोवा और गामा-रे विस्फोटों को लेकर हमारी अब तक की समझ में बड़ा बदलाव आएगा। 1970 के दशक से वैज्ञानिक अंतरिक्ष में ऐसी रहस्यमयी घटनाएं देख रहे थे। अचानक कुछ सेकंड से लेकर कई घंटों तक चलने वाली तेज़ एक्स-रे चमक दिखाई देती थी लेकिन इसका स्रोत क्या है, यह कभी स्पष्ट नहीं हुआ। अब नार्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी की खगोल वैज्ञानिक जिलियन रास्टिनेजाद और उनकी टीम ने इसका जवाब खोज निकाला है। उनके मुताबिक, एफएक्सटी दरअसल उस समय पैदा होती है जब कोई विशाल तारा मरते वक्त अपने भीतर से बेहद शक्तिशाली जेट्स बाहर निकालने की कोशिश करता है। अगर ये जेट्स तारे की बाहरी परतों को चीर कर निकल जाएं, तो हमें गामा-रे विस्फोट दिखाई देता है। लेकिन अगर ये जेट्स फंस जाएं, तो वो अपनी ऊर्जा एक्स-रे के रूप में छोड़ते हैं। यही एफएक्सटी है। यह एक तरह से मरते तारे की अंतिम चीख होती है। 8 जनवरी 2025 को इनेस्टेइन प्रोब नाम की स्पेस एक्स-रे टेलीस्कोप ने एक तेज़ एक्स-रे चमक दर्ज की जिसे ईपी 250108ए नाम दिया गया। वैज्ञानिकों ने इस घटना का विश्लेषण किया तो पाया कि यह एक सुपरनोवा एसएन 2025केजी से जुड़ी थी, जिसे द कंगारु नाम दिया गया। यह सुपरनोवा टाइप आईसी-बीएल वर्ग की थी, जो दुर्लभ और बेहद तेज मानी जाती है। इसने अपने अवशेष लगभग 19,000 किलोमीटर प्रति सेकंड की रफ्तार से फैलाए। यहां जेट्स ने तारे की बाहरी परतें तोड़ने की कोशिश की लेकिन वे बाहर नहीं निकल पाए और भीतर ही फंस कर ऊर्जा छोड़ दी। इससे पैदा हुआ एफएक्सटी, जो गामा-रे विस्फोट जितना शक्तिशाली तो नहीं था, लेकिन फिर भी इंसानों की नज़र में आ गया। यह खोज बताती है कि असफल जीआरबी यानी एफएक्सटी घटनाएं सफल जीआरबी की तुलना में कहीं ज्यादा आम हैं। सुदामा/ईएमएस 17 जुलाई 2025