उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफा देने, मुंबई सीरियल ट्रेन ब्लास्ट मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट से सभी 12 आरोपियों के बरी होने और संसद के हंगामेदार मानसून सत्र पर इस हफ्ते पंजाबी अखबारों ने अपनी राय प्रमुखता से रखी है। उपराष्ट्रपति के इस्तीफे पर जालंधर से प्रकाशित पंजाबी जागरण लिखता है- उपराष्ट्रपति के अचानक इस्तीफे से उठ रहे कई सवाल सही हैं और उनका जवाब मिलना चाहिए, लेकिन यह कहना मुश्किल है कि जवाब मिलेंगे या नहीं। उनका इस्तीफा इसलिए भी अधिक आश्चर्यजनक है, क्योंकि दिन में वे सदन में सक्रिय थे और रात में उन्होंने यह कहते हुए इस्तीफा दे दिया कि स्वास्थ्य कारणों से उन्हें ऐसा करना पड़ रहा है। कयास लगाए जा रहे हैं कि उनके और सरकार के बीच किसी मुद्दे पर मतभेद हो गए और फिर वे इस हद तक बढ़ गए कि उन्होंने इस्तीफा देना ही उचित समझा। अखबार लिखता है- उपराष्ट्रपति का इस्तीफ़ा ऐसे समय में आया है जब भाजपा अपना नया अध्यक्ष चुनने की जद्दोजहद में लगी हुई है। अब भाजपा को उपराष्ट्रपति पद के लिए भी उम्मीदवार ढूंढना होगा। ज़ाहिर है जगदीप धनखड़ ने भाजपा की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। चंडीगढ़ से प्रकाशित ‘रोजाना स्पोक्समैन’ लिखता है- धनखड़ ने अपना राजनीतिक जीवन जनता दल से शुरू किया और प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की सरकार में राज्य मंत्री के रूप में कार्य किया। जनता दल के पतन के बाद, वे कांग्रेस में शामिल हो गए। वह 2003 से भाजपा में थे और उसी पार्टी ने उन्हें 2019 में पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बनाया। अगस्त 2022 में, उन्होंने एनडीए के उम्मीदवार के रूप में उपराष्ट्रपति चुनाव जीता। जालंधर से प्रकाशित ‘अजीत’ लिखता है- वे पिछले तीन सालों से उपराष्ट्रपति पद पर थे, समय-समय पर उनके द्वारा दिए गए स्पष्ट बयानों से सरकार सहित अन्य पक्ष नाराज होते देखे गए। इस घटना ने निस्संदेह भारत के संसदीय इतिहास में एक नया और अनूठा अध्याय जोड़ा है। चंडीगढ़ से प्रकाशित ‘देशसेवक’ लिखता है- उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति के रूप में जगदीप धनखड़ ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के एजेंडे को लागू करने का कोई मौका नहीं छोड़ा। इससे पहले उपराष्ट्रपति वी.वी. गिरि ने और आर. वेकटरमन ने इस्तीफ़ा दिया था, लेकिन दोनों के इस्तीफ़े की वजह ख़ास थी। यह समझना मुश्किल नहीं है कि धनखड़ के इस्तीफे का कारण सिर्फ़ स्वास्थ्य समस्याएं नहीं हैं, बल्कि असली कारण को छुपाया जा रहा है। जालंधर से प्रकाशित नवां जमाना लिखता है- कुछ सांसदों का दावा है कि धनखड़ को पहले से ही पता था कि उनका इस्तीफा मांगा जाएगा, यही वजह है कि उन्होंने जानबूझकर सत्र के पहले दिन खड़गे को बोलने का समय दिया। उनके मुताबिक, इस्तीफ़ा भी किसी ताकतवर नेता ने लिखा था, धनखड़ ने सिर्फ़ दस्तख़त किए थे। अगले साल मई में वे 75 साल के हो जाएंगे। प्रधानमंत्री मोदी इस साल सितंबर में 75 साल के हो जाएंगे। आरएसएस ने नरेंद्र मोदी पर इस्तीफ़ा देने का दबाव बनाने के लिए धनखड़ को इस्तीफ़ा देने के लिए राज़ी किया है। चंडीगढ़ से प्रकाशित ‘पंजाबी ट्रिब्यून’ लिखता है- उपराष्ट्रपति के इस्तीफा देने के निर्णय को विडंबनापूर्ण बनाने वाली बात यह है कि इसमें विपक्ष की भूमिका में बदलाव आया है। कुछ महीने पहले ही कांग्रेस जैसी पार्टियां उन पर संवैधानिक मूल्यों को कमजोर करने का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही की मांग कर रही थीं। आज, वे यह दावा करके उनकी प्रतिष्ठा का बचाव कर रहे हैं कि उनके जाने के पीछे गहरे कारण हैं। भाजपा की चुप्पी इस कहानी को और हवा दे रही है। उनके आलोचकों ने उन्हें एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा जो संवैधानिक निष्पक्षता और पार्टी निष्ठा के बीच की रेखा को धुंधला कर रहा था। 2006 के मुंबई सीरियल ट्रेन ब्लास्ट मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा सभी 12 आरोपियों को बरी करने पर चंडीगढ़ से प्रकाशित ‘पंजाबी ट्रिब्यून’ लिखता है- मुंबई ट्रेन बम विस्फोट भारत में हुए अब तक के सबसे भीषण आतंकवादी हमलों में से एक था। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष अपना अपराध साबित करने में नाकाम रहा है। अखबार लिखता है- ऐसे समय में जब 26/11 हमले के आरोपी तहव्वुर राणा से एनआईए पूछताछ कर रही है और पहलगाम हमले की जांच जारी है, पाकिस्तान को भारत की जांच एजेंसियों पर सवाल उठाने का हौसला मिलेगा। जालंधर से प्रकाशित अज दी आवाज लिखता है- निचली अदालत ने लगभग 9 साल बाद अपना फैसला सुनाया, जबकि बॉम्बे हाईकोर्ट की विशेष पीठ को भी अपना फैसला सुनाने में लगभग 9 साल लग गए। इस कानूनी पचड़े में सिर्फ़ पीड़ितों का ही नुकसान होगा, जिन्हें न्याय के लिए अभी और इंतज़ार करना होगा। अखबार लिखता है- हमारा कानून उन लोगों के बारे में चुप है जो बिना कोई अपराध किए 17 साल से जेल में हैं। क्या वे बिना किसी गलती के अपनी ज़िंदगी का एक बड़ा हिस्सा जेल में बिताने के लिए मुआवज़े के हक़दार नहीं हैं? जालंधर से प्रकाशित पंजाबी जागरण लिखता है- यदि आतंकवाद के सबसे गंभीर मामलों में हमारी न्यायिक प्रणाली इतनी धीमी गति से काम करती है, तो यह दावा नहीं किया जा सकता कि भारत आतंकवाद से सख्ती से निपट रहा है। वहीं अंतर्राष्ट्रीय समुदाय यह भी सवाल उठा सकता है कि भारत की जांच एजेंसियां और न्यायिक प्रणाली आतंकवाद के गंभीर मामलों में भी सतर्क और सक्रिय क्यों नहीं हैं। पटियाला से प्रकाशित रोजाना आशियाना लिखता है- यह मामला निचली अदालतों के काम करने के तरीके पर भी एक बड़ा सवालिया निशान है। महाराष्ट्र सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की है। देश को उम्मीद है कि इस बार तथ्य सही ढंग से पेश किए जाएंगे। संसद के मानसून सत्र में विपक्ष के हंगामे और कामकाज ठप होने पर जालंधर से प्रकाशित अजीत लिखता है- संसद में पहले ही दिन इतना हंगामा क्यों मचा, जबकि सत्र से पहले इस बात पर पूरी सहमति थी कि सभी दलों की भागीदारी से महत्वपूर्ण मुद्दों पर विस्तृत चर्चा होगी। चंडीगढ़ से प्रकाशित ‘देशसेवक’ लिखता है- विपक्ष लंबे समय से मांग कर रहा है कि पहलगाम और उसके जवाब, ऑपरेशन सिंदूर के बारे में खुली चर्चा होनी चाहिए। विपक्ष सरकार से जानना चाहता है कि बिहार में मतदाता सूचियों में इस नाज़ुक समय में बड़े पैमाने पर संशोधन के पीछे असली मकसद क्या है। वहीं उपराष्ट्रपति के अचानक इस्तीफे को लेकर अब एक नया सवाल खड़ा हो गया है। अखबार लिखता है- ऐसा लगता है कि जब तक प्रधानमंत्री संसद में उपस्थित नहीं होंगे, दोनों सदनों की कार्यवाही स्थगित रहेगी। पटियाला से प्रकाशित चढ़दीकलां लिखता है- हाल ही में संसद के बाहर सरकार और विपक्ष के बीच बांग्लादेशियों की अवैध घुसपैठ और भाषा विवाद जैसे मुद्दों पर झड़पें हुई हैं, लेकिन उम्मीद है कि ये झड़पें सदन के भीतर सकारात्मक बहस तक ही सीमित रहेंगी। पटियाला से प्रकाशित रोजाना आशियाना लिखता है, विपक्ष ने अपना एजेंडा तय किया है, लेकिन ध्यान रखा जाना चाहिए कि सत्र शोर-शराबे और हंगामे की भेंट न चढ़ जाए। अखबार लिखता है- इस मामले में इस साल के बजट सत्र को उदाहरण बनाया जा सकता है। बजट सत्र में राज्यसभा और लोकसभा की उत्पादकता क्रमश: 119 और 118 प्रतिशत रही। सत्र चलाने में हर मिनट ढाई लाख रुपये से ज़्यादा खर्च होते हैं। ऐसे में सदन का न चलना समय के साथ-साथ देश के संसाधनों की भी बर्बादी है। (स्वतंत्र पत्रकार) (यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अनिवार्य नहीं है) .../ 27 जुलाई /2025