—सवालों के घेरे में जांच एजेंसी की कार्यशैली नई दिल्ली,(ईएमएस)। देश की सबसे शक्तिशाली जांच एजेंसियों में से एक प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की कार्रवाई को लेकर वर्षों से सवाल उठते रहे हैं, अब संसद में पेश ताजा आंकड़े इन सवालों को और मजबूती प्रदान करते दिखे हैं। बीते 10 सालों (1 जनवरी 2015 से 30 जून 2025) के दौरान ईडी ने 5892 मामलों में जांच शुरू की, लेकिन इनमें से सिर्फ 8 मामलों में दोष सिद्ध हो सका और महज 15 लोगों को सजा सुनाई गई। यह जानकारी राज्यसभा में सांसद साकेत गोखले के सवाल के जवाब में वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने दी। रिपोर्ट के अनुसार कुल जांच किए गए मामलों की संख्या 5892 रही, जबकि अदालत तक पहुंचे मामलों की संख्या 1751 है, जिनमें 1398 मुख्य अभियोजन शिकायतें और 353 पूरक अभियोजन शिकायतें शामिल हैं। आरोप तय (चार्ज फ्रेम) हुए केसों की संख्या 366 रही जबकि सजा पाए मामलों की संख्या महज 8 है और दोषी ठहराए गए लोगों की संख्या 15 है। इस प्रकार कुल सजा दर 0.13 प्रतिशत ठहरती है। ईडी की यह सारी कार्रवाई प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) के तहत होती है, जिसे मनी लॉन्ड्रिंग जैसे आर्थिक अपराधों को रोकने के लिए लागू किया गया था। क्या उठते हैं सवाल? इन आंकड़ों से सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि अगर हजारों लोगों पर छापेमारी, पूछताछ और गिरफ्तारियां की जा रही हैं, तो अंततः दोष सिद्ध क्यों नहीं हो पा रहे? कई मामलों में राजनीतिक बदले की भावना से कार्रवाई का आरोप भी लगता रहा है। खासकर विपक्षी दलों ने बार-बार आरोप लगाया है कि ईडी का उपयोग सरकार विरोधियों को डराने-धमकाने के लिए किया जा रहा है। पिछले साल भी सामने आए थे आंकड़े 2023 में सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किए गए हलफनामे में बताया गया था कि 2005 से लेकर 2022 तक ईडी ने 501 लोगों को गिरफ्तार किया, लेकिन सिर्फ 23 मामलों में सजा हुई। हिदायत/ईएमएस 01अगस्त25