जिले में परंपरागत शिल्पकला को फिर से सहेजने की कोशिश छिंदवाड़ा (ईएमएस)। त्योहार सिर्फ खुशियों के उत्सव नहीं होते बल्कि ये परंपरा से हमारा जुड़ाव भी प्रदर्शित करते हैं। अंचलों में मनाए जाने पर्व प्रकृति और स्थानीय कला को भी सदियों से प्रदर्शित करते आ रहे हैं। स्थानीय स्तर पर उपलब्ध संसाधनों से तैयार किए जाने वाली कलाकृतियां और शिल्प कभी इस क्षेत्र की पहचान हुआ करते थे। छिदंवाड़ा जिले के तामिया में छींद के पेड़ की पत्तियों से तैयार की जाने वाली शिल्पकला विलुप्त सी होती जा रही है। इन्हें सहेजने के लिए फिर से प्रयास शुरू हो रहे हैं। तामिया में इन दिनों छींद के पत्तों से राखियंा बनाई जा रही है। खास बात यह कि न सिर्फ देश बल्कि दुनिया के कई देशों में रह रहे भारतीय छींद की इन राखियों को पसंद कर रहे हैं। इस साल भी अब तक 300 से ज्यादा राखियां जिले के कई सामाजिक संगठन और व्यक्ति विशेष खरीद चुके हैं।ध्यान रहे छींद के पेड़ में नई कोमल पत्त्यिों से ये राखियां तैयार होती है। इन पत्तों को थोड़ा सुखाकर कड़क करते हैं और फिर उन्हें काटकर विभिन्न फूलों और कलाकृतिकयों का आकार देकर फिर उस पर डेकोरेशन किया जाता है। पत्ते तोड़कर लाने और उससे राखी तैयार करने में दो से तीन दिन लगते हैं। छींद के साथ शिल्प को जीवित रखने का उद्देश्य छींप शिल्पकला को फिर से आगे लाने में इन दिनों तामिया निवासी पवन श्रीवास्तव महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। प्राकृतिक रूप से समृद्ध इस क्षेत्र में जिले की पहचान छींद को अस्तित्व बनाए रखने के लिए वे उद्देश्य ये वे काम कर रहे हैं। उनका कहना है कि छींद के प्रति लोगों को संवेदनशील करना उनका उद्देश्य है। छींद के पेड़ जीवित रहेंगे तो ये कला भी जीवित रहेगी। छींद की शिल्पकला सालेां पहले इस क्षेत्र की प्रमुख कला थी लेकिन इससे जुड़े परिवार कम हुए तो कला भी विलुप्त होती गई। हम फिर से नई पीढ़ी को तैयार करने की कोशिश में है। भारिया जनजाति और यहंा निवास करने वाले पारंपरिक लोहार समाज के बच्चों को इस कला से हम जोड़ रहे हैं। 8 से 20 वर्ष की आयु के युवाओं के साथ हम काम कर रहे हैं। युवाओं को हम समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि इस कला के जरिए हम अपनी प्रकृति से जुड़े रहकर उसे सहेज कर रख सकेंगे। प्रकृति और परंपरा से जुड़ाव का पर्व बने पवन का कहना है कि रक्षाबंधन को सिर्फ एक रिश्ते का नहीं, प्रकृति और परंपरा से जुड़ाव का पर्व भी बनें। हमारी मिट्टी, हमारी परंपरा, और हमारे शिल्पकारों से जुड़ा एक जीवंत संदेश इसके जरिए हम पूरी दुनिया को दे सकेंगे। हमारा प्रयास है कि एक विलुप्त होती शिल्पकला को हम पुनर्जीवित कर सकें और हमारा ये प्रयास छिंदवाड़ा के पेड़ों, परंपराओं और प्रतिभाओं से एक प्रेमपूर्ण बंधन बने तो बेहतर होगा। ईएमएस/ मोहने/ 02 अगस्त 2025