वाशिंगटन (ईएमएस)। वैज्ञानिकों ने “क्रिसालिस” नामक एक महत्त्वाकांक्षी अंतरिक्ष मिशन की योजना बनाई है, जिसका उद्देश्य है इंसानों को पृथ्वी से लगभग 40 ट्रिलियन किलोमीटर दूर स्थित ग्रह प्रॉक्सिमा सेंचुरी बी पर बसाना। वैज्ञानिकों का मानना है कि यहां जीवन संभव हो सकता है, इसलिए इसे इंसानों के नए घर के रूप में चुना गया है। क्रिसालिस अंतरिक्ष यान को इस बेहद लंबी और चुनौतीपूर्ण यात्रा के लिए विशेष रूप से डिजाइन किया गया है। यह ग्रह अल्फा सेंचुरी सौरमंडल का हिस्सा है, जो पृथ्वी से लगभग 4.4 प्रकाश वर्ष दूर है और आकार व वातावरण में काफी हद तक पृथ्वी जैसा माना जाता है। इसकी लंबाई 58 किलोमीटर है और इसका ढांचा परतों में बंटा हुआ है, जैसा कि रशियन नेस्टिंग डॉल में होता है। यान के अंदर एक स्वायत्त मिनी-सिटी तैयार की जाएगी, जिसमें खेती के खेत, पशुपालन के स्थान, स्कूल, अस्पताल, पार्क, घर और लाइब्रेरी जैसी सभी सुविधाएं मौजूद होंगी। हर घर में हवा और तापमान को नियंत्रित करने की उन्नत तकनीक होगी, ताकि यात्रियों को पृथ्वी जैसी आरामदायक स्थिति मिल सके। ऊर्जा के लिए इसमें न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर लगाया जाएगा, जो निरंतर बिजली उपलब्ध कराएगा। कृत्रिम गुरुत्वाकर्षण बनाए रखने के लिए यान लगातार घूमता रहेगा, जिससे यात्री शारीरिक रूप से स्वस्थ रह सकें। इस मिशन में कुल 2,400 लोगों के रहने की क्षमता होगी, लेकिन शुरुआत में केवल 1,500 लोग ही इसमें सवार होंगे, ताकि संसाधनों पर अतिरिक्त दबाव न पड़े। 400 साल लंबी यह यात्रा एक मल्टी-जनरेशन मिशन होगी, यानी जो लोग शुरुआत में इस यात्रा पर निकलेंगे, वे अपने गंतव्य तक नहीं पहुंच पाएंगे। उनकी अगली पीढ़ियां इस सफर को आगे बढ़ाएंगी और अंततः आखिरी पीढ़ी ही प्रॉक्सिमा सेंचुरी बी पर कदम रखेगी। आबादी के संतुलन के लिए जन्म दर पर सख्त नियंत्रण रखा जाएगा, जिससे सामाजिक और संसाधन संबंधी संतुलन बना रहे। पूरे मिशन के संचालन में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। एआई न केवल नियम लागू करेगी और निर्णय लेगी, बल्कि विवाद समाधान और पीढ़ी-दर-पीढ़ी ज्ञान के हस्तांतरण में भी अहम योगदान देगी, ताकि हर नई पीढ़ी मिशन के उद्देश्य, तकनीकी जानकारी और सामाजिक मूल्यों को समझते हुए आगे बढ़े। यात्रियों को इस लंबी और एकाकी यात्रा के लिए मानसिक रूप से तैयार करने के लिए उन्हें 70 से 80 साल तक अंटार्कटिका जैसे कठिन और एकांत स्थानों में प्रशिक्षण दिया जाएगा। इस प्रशिक्षण का उद्देश्य उनकी मानसिक दृढ़ता, धैर्य और अनुशासन को मजबूत करना है, ताकि वे अंतरिक्ष में लंबे समय तक एकांत और चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में भी सामंजस्य बनाकर रह सकें। यान के केंद्र में शटल्स और संचार यंत्र होंगे, जिनका इस्तेमाल अंतिम पीढ़ी ग्रह की सतह पर उतरने और संपर्क बनाए रखने के लिए करेगी। इस ऐतिहासिक यात्रा का मकसद सिर्फ अंतरिक्ष अन्वेषण नहीं, बल्कि मानवता के लिए एक नए ठिकाने की तलाश है। सुदामा/ईएमएस 17 अगस्त 2025