लेख
04-Sep-2025


इंदौर का एमवाय अस्पताल, जो कभी जीवन का केंद्र था, आज मौत का अड्डा बन चुका है। यहाँ की दीवारों पर इंसानी खून नहीं, बल्कि सरकारी लापरवाही का काला धब्बा लगा है। चूहों के काटने से दो मासूम नवजातों की मौत सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि उन लोगों के मुंह पर करारा तमाचा है, जो खुद को इस सिस्टम के रखवाले कहते हैं। ये घटना बताती है कि हमारे सरकारी अस्पतालों में इंसानियत दम तोड़ चुकी है। मरीजों का इलाज तो दूर, उनकी जान की भी कोई गारंटी नहीं। एक आईसीयू, जहाँ जिंदगी और मौत के बीच जंग चलती है, वहाँ चूहों ने अपनी अदालत लगा रखी है। यह सिर्फ एक अस्पताल की कहानी नहीं, यह पूरे मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग की सड़ी हुई असलियत है। क्या यह उम्मीद करना गलत था कि एक अस्पताल प्रशासन अपनी प्राथमिक जिम्मेदारी को समझेगा? क्या यह उम्मीद करना गलत था कि जिला प्रशासन जनता के स्वास्थ्य की फिक्र करेगा? इन मौतों के लिए सिर्फ चूहे नहीं, बल्कि हर वह अधिकारी जिम्मेदार है, जिसने अपनी आँखें मूंद रखी थीं। अब सिर्फ जाँच और निलंबन काफी नहीं है। उन सभी दोषियों को, चाहे वे अस्पताल के अधिकारी हों या जिला प्रशासन के, कटघरे में खड़ा करना होगा। जब तक इन लोगों को उनके पद से हटाकर कठोर सजा नहीं दी जाती, तब तक ये चूहे इसी तरह हमारे बच्चों की जान लेते रहेंगे और हम सिर्फ बेबसी से देखते रहेंगे। यह मौत के सौदागरों का अस्पताल है, जहाँ जनता की जान से ज्यादा चूहों की गिनती मायने रखती है। प्रकाश/3 सितम्बर 2025