लेख
11-Sep-2025
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साल 1993 में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की स्थापना ने वैश्विक व्यापार और अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी। मुक्त बाज़ार और उदारीकरण की अवधारणा के साथ पूरी दुनिया में आर्थिक ढाँचा बहुत तेजी से बदला। इंटरनेट और सोशल मीडिया के विस्तार ने इस परिवर्तन को और गति प्रदान की। रोटी, कपड़ा और मकान जैसी मूलभूत ज़रूरतों के बजाय उपभोग और बाज़ार-निर्भर उत्पाद आधुनिक समाज की प्राथमिकता बन गए। बीते तीन दशकों में वैश्विक बाज़ारवाद ने उपभोक्तावाद को बढ़ावा तो दिया, लेकिन इसके सहारे खड़ा किया गया आर्थिक ढाँचा कर्ज़ पर टिका रहा। परिणामस्वरूप, आज दुनिया के अधिकांश देशों में महँगाई, बेरोजगारी और असमानता जैसे संकट विकराल रूप में खड़े हैं। साल 2014 के बाद से वैश्विक स्तर पर सामाजिक और आर्थिक अस्थिरता तेज़ी से देखने को मिली। इंटरनेट और सोशल मीडिया ने जहाँ संचार और विचारों का आदान-प्रदान आसान किया, वहीं यह एक मानसिक नशे के रूप में भी उभरा। युवा वर्ग बाज़ारवाद और वर्चुअल दुनिया का सबसे बड़ा शिकार बना। कर्ज़ के सहारे विकास की योजनाएँ भ्रष्टाचार में उलझीं और जनता का भरोसा शासन-प्रणाली से टूटने लगा। इस पृष्ठभूमि में जनाक्रोश दुनिया के कई देशों में हिंसक आंदोलनों और सत्ता परिवर्तन तक का कारण बना। जन विद्रोह की वैश्विक तस्वीर यूक्रेन (2014) : ‘यूरोमैदान आंदोलन’ में जनता ने यूरोपीय संघ से जुड़ाव की मांग की। राष्ट्रपति यानुकोविच के रूस समर्थक रुख से गुस्सा भड़का। हिंसा और लूटपाट के बीच राष्ट्रपति को देश छोड़ना पड़ा। सूडान (2019) : महँगाई और आर्थिक संकट से जूझ रहे लोगों के विरोध ने 30 वर्षों से सत्ता में बैठे उमर अल-बशीर की सरकार गिरा दी। इसके साथ ही सेना ने सत्ता संभाली। अल्जीरिया (2019) : राष्ट्रपति बूतेफ़्लिका के पाँचवीं बार चुनाव लड़ने की घोषणा ने जनाक्रोश भड़काया। भारी विरोध के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। लेबनान (2020) : व्हाट्स एप कॉल पर टैक्स लगाने के फैसले ने पहले से नाराज जनता को सड़कों पर ला दिया। हिंसक प्रदर्शन हुए और प्रधानमंत्री साद हरीरी को पद छोड़ना पड़ा। अमेरिका (2021) : डोनाल्ड ट्रंप की चुनावी हार के बाद समर्थकों ने संसद पर कब्ज़ा करने की कोशिश की। सोशल मीडिया अकाउंट बंद कराए गए, लेकिन इस दौरान लोकतांत्रिक संस्थाओं पर भरोसे की कमी साफ दिखी। श्रीलंका (2022) : विदेशी कर्ज़, महँगाई और आर्थिक कुप्रबंधन ने जनता को भड़काया। राष्ट्रपति भवन पर भीड़ ने कब्ज़ा किया, राजपक्षे परिवार को देश छोड़ना पड़ा। इराक (2022) : जनता ने संसद भवन पर कब्ज़ा कर लिया। राजनीतिक दलों और नेताओं के खिलाफ आक्रोश ने अस्थिरता बढ़ाई। बांग्लादेश (2022-23) : महँगाई और चुनावी धांधली के खिलाफ जनविद्रोह हुआ। तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना को देश छोड़ भारत में शरण लेना पड़ा और प्रमुख सलाहकार मोहम्मद यूनुस की कार्यकारी सरकार ने कार्यभार संभाला। नेपाल (2025) : सोशल मीडिया प्रतिबंध के बाद सातों प्रांतों में भीषण दंगे हुए। संसद और सुप्रीम कोर्ट तक को आग लगा दी गई। प्रधानमंत्री ओली समेत मंत्रियों को इस्तीफा देना पड़ा और बढ़ती हिंसा को देखते हुए सेना को मोर्चा संभालना पड़ा। फ्रांस (2025) : असमानता और बेरोजगारी के खिलाफ लाखों लोग सड़कों पर हैं। सरकारी संपत्तियों को आग के हवाले कर दिया गया, जिससे स्थिति भयावह बन गई। इसके अलावा म्यांमार (2021) में सैन्य तख़्तापलट, ब्राजील (2014-2023) में चुनावी विवाद और कज़ाख़स्तान में ईंधन मूल्य वृद्धि जैसे कारण भी हिंसक प्रदर्शनों में बदल गए। सामाजिक असमानता बना आक्रोश का मूल कारण इन घटनाओं से स्पष्ट है कि जब जनता की अपेक्षाओं को नज़रअंदाज़ किया जाता है और लोकतांत्रिक अधिकार छीने जाते हैं, तो आक्रोश विस्फोटक रूप ले लेता है। गरीब और अमीर के बीच की खाई लगातार चौड़ी हो रही है। एक वर्ग अपनी बुनियादी ज़रूरतें पूरी करने में असमर्थ है, जबकि दूसरा वर्ग अपार ऐशो-आराम में जी रहा है। यही असमानता हिंसक विद्रोह का सबसे बड़ा कारण बन रही है। इतिहास गवाह है कि 1917 की रूसी जार क्रांति भी इसी असमानता और तानाशाही के खिलाफ हुई थी। आज वही परिदृश्य बदले हुए रूप में सामने आ रहा है। भविष्य की चुनौतियाँ यदि वैश्विक शासन-व्यवस्थाएँ इन संकेतों को गंभीरता से नहीं लेंगी, तो आने वाले समय में और भी बड़े पैमाने पर लूटपाट, हिंसा, जन और धन हानि देखने को मिल सकती है। सोशल मीडिया की मानसिक लत, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार इस असंतोष को और गहरा कर रहे हैं। कुल मिलाकर पिछले 30 वर्षों की नीतियों ने दुनिया को उपभोक्तावाद और कर्ज़ आधारित विकास की ओर धकेला है। परिणामस्वरूप, लोकतांत्रिक देशों में जनता का धैर्य टूट रहा है। आज आवश्यकता है कि सरकारें सामाजिक न्याय, समानता और टिकाऊ आर्थिक विकास की ओर ठोस कदम उठाएँ। अन्यथा, वैश्विक स्तर पर बढ़ते जनविद्रोह भविष्य में और बड़े राजनीतिक एवं सामाजिक भूचाल का संकेत दे रहे हैं। ईएमएस / 11 सितम्बर 25