लेख
11-Sep-2025
...


कई दशकों तक, पूर्वोत्तर को विकास की बाट जोहने वाला एक सुदूर सीमांत क्षेत्र माना जाता था। पूर्वोत्तर राज्यों में रहने वाले हमारे भाई-बहन तरक्की की उम्मीदें तो रखते थे, लेकिन जिस बुनियादी ढांचे और अवसरों के हकदार थे, वे उनकी पहुंच से दूर रहे। यह सब तब बदल गया जब प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी ने एक्ट ईस्ट नीति की शुरुआत की। जिस पूर्वोत्तर को कभी सुदूर सीमांत माना जाता था, आज उसकी एक अग्रणी क्षेत्र के रूप में पहचान स्थावपित हो चुकी है। शांति, समृद्धि और प्रगति यह बदलाव रेलवे, सड़कें, हवाई अड्डे और डिजिटल कनेक्टिविटी में रिकॉर्ड निवेश की वजह से संभव हुआ है। शांति समझौते स्थिरता ला रहे हैं। लोग सरकारी योजनाओं से लाभ उठा रहे हैं। स्ववतंत्रता के बाद पहली बार उत्तर-पूर्वी क्षेत्र को भारत की विकास यात्रा का केंद्र माना जा रहा है। रेलवे में किए गए निवेश को ही देख लीजिए। वर्ष 2009 की तुलना में वर्ष 2014 में क्षेत्र के लिए रेलवे बजट पांच गुना बढ़ा है। सिर्फ इस वित्तीय वर्ष में ही 10,440 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। वर्ष 2014 से वर्ष 2025 तक कुल बजट आवंटन 62,477 करोड़ रुपये रहा है। वर्तमान में 77,000 करोड़ रुपये की रेलवे परियोजनाएं संचालित हैं। इससे पहले उत्तर-पूर्व ने इतना बड़ा निवेश कभी नहीं किया गया। मिज़ोरम प्रथम मिजोरम इस विकास गाथा का हिस्सा है। यह राज्य अपनी समृद्ध संस्कृति, खेल प्रेम और खूबसूरत पहाड़ियों के लिए जाना जाता है। फिर भी, यह दशकों तक संपर्क की मुख्यधारा से दूर रहा। सड़क और हवाई संपर्क सीमित था। रेल अब तक राजधानी तक नहीं पहुंच पाई थी। लोगों में आकांक्षाएं तो बलवती थीं, लेकिन विकास की मुख्यकधारा अदृश्यत थी, ल‍ेकिन अब हालात बदल चुके हैं। माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी के हाथों कल बैराबी–सैरांग रेलवे लाइन का उद्घाटन मिजोरम के लिए ऐतिहासिक उपलब्धि है। 51 किलोमीटर लंबी यह परियोजना 8,000 करोड़ से अधिक की लागत से बनी है और पहली बार आइजोल को राष्ट्रीय रेल नेटवर्क से जोड़ेगी। इसके साथ ही, प्रधानमंत्री सैरांग से दिल्ली (राजधानी एक्सप्रेस), कोलकाता (मिज़ोरम एक्सप्रेस) और गुवाहाटी (आइजोल इंटरसिटी) के लिए तीन नई रेल सेवाओं का भी शुभारंभ करेंगे। यह रेलवे लाइन दुर्गम पहाड़ी इलाकों से होकर गुजरती है। रेल अभियंताओं ने मिजोरम को जोड़ने के लिए 143 पुल और 45 सुरंगें बनाई हैं। इनमें से एक पुल कुतुब मीनार से भी ऊंचा है। दरअसल, इस इलाके में, बाकी सभी हिमालयी लाइनों की तरह, रेलवे लाइन भी पहले एक पुल, फिर एक सुरंग और फिर एक पुल के रूप में आगे बढ़ती है। हिमालय में सुरंग निर्माण की तकनीक उत्तर-पूर्वी हिमालय अभी युवा पर्वत हैं, जिनके बड़े हिस्से नरम मिट्टी और जैविक पदार्थ से बने हैं। ऐसी स्थिति में सुरंग और पुल बनाना बेहद चुनौतीपूर्ण था। पारंपरिक तरीके यहां काम नहीं कर सकते थे, क्योंकि ढीली मिट्टी निर्माण का भार सहन नहीं कर पाती। इस समस्या को दूर करने के लिए हमारे अभियंताओं ने एक नया और अनोखा तरीका विकसित किया, जिसे अब हिमालयन टनलिंग मैथड कहा जाता है। इस तकनीक में पहले मिट्टी को स्थिर और मज़बूत किया जाता है, फिर सुरंग और निर्माण का काम किया जाता है। इससे क्षेत्र की सबसे कठिन परियोजनाओं में से एक को पूरा करना संभव हुआ। एक और बड़ी चुनौती ऊंचाई पर पुलों को स्था यी रूप से मजबूत बनाना था, क्योंकि यह क्षेत्र भूकंप प्रभावित है। इसके लिए भी विशेष डिज़ाइन और उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल किया गया, जिससे पुल सुरक्षित और मज़बूत बन सके। यह स्वदेशी नवाचार पूरी दुनिया के लिए ऐसे ही भौगोलिक क्षेत्रों में एक मॉडल है। हज़ारों अभियंताओं, श्रमिकों और स्थानीय लोगों ने मिलकर इसे संभव बनाया। जब भारत निर्माण करने की ठान लेता है तो वह अद्वितीय निर्माण करता है। क्षेत्र को लाभ रेलवे को विकास का इंजन माना जाता है। यह नए बाज़ारों को करीब लाता है और व्यापार के अवसरों का सृजन करता है। नई रेल लाइन मिज़ोरम के लोगों का जीवन स्तर सुधारेगी। राजधानी एक्सप्रेस की शुरुआत के साथ ही आइजोल और दिल्ली के बीच की यात्रा का समय 8 घंटे कम हो जाएगा। नई एक्सप्रेस ट्रेनें आइजोल, कोलकाता और गुवाहाटी के बीच की यात्रा को भी तेज और आसान बनाएंगी। किसान, विशेष रूप से जो बांस की खेती और बागवानी से जुड़े हैं, वे अपनी उपज को तेजी से और कम लागत पर बड़े बाजारों तक पहुंचा पाएंगे। अनाज और खाद जैसे जरूरी सामान की ढुलाई आसान होगी। मिज़ोरम की प्राकृतिक सुंदरता तक पहुंच के और सुविधाजनक हो जाने से पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। इससे स्थानीय कारोबार और युवाओं के लिए नए अवसर सृजित होंगे। यह परियोजना लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार तक बेहतर पहुंच भी देगी। मिजोरम के लिए यह कनेक्टिविटी सिर्फ इतना ही नहीं, बल्कि उससे कहीं ज़्यादा लेकर आएगी। अब से आइजोल को कभी दूर नहीं माना जाएगा। पूरे देश में विकास देशभर में रेलवे में रिकॉर्ड स्तर पर बदलाव हो रहा है। हाल ही में 100 से अधिक अमृत भारत स्टेशनों का उद्घाटन किया गया है और 1200 और स्टेशन तैयार हो रहे हैं। ये स्टेशन यात्रियों को आधुनिक सुविधाएं प्रदान करेंगे और शहरों को नए विकास केंद्र बनाएंगे। 150 से ज़्यादा हाई-स्पीड वंदे भारत रेल यात्री सुविधा के नए मानक स्थापित कर रही हैं। साथ ही, लगभग पूरे नेटवर्क का विद्युतीकरण रेलवे को और हरित बना रहा है। वर्ष 2014 से अब तक 35,000 किलोमीटर नई पटरियां बिछाई गई हैं। यह उपलब्धि पिछले छह दशकों में हुए समग्र विकास कार्यों से कही अधिक है। सिर्फ़ पिछले वर्ष ही 3,200 किलोमीटर नई रेल लाइनें जोड़ी गईं। विकास की यह गति और बदलाव उत्तर-पूर्व में भी स्प्ष्ट नजर आ रहा है। पूर्वोत्तर के लिए दृष्टिकोण प्रधानमंत्री ने कहा था कि हमारे लिए पूर्व अर्थात ईस्टप का अर्थ है- एम्पॉवर (सशक्त बनाना), एक्ट (कार्य करना), स्ट्रेंथन (मजबूत बनाना) और ट्रांसफॉर्म (बदलना)। ये शब्द पूर्वोत्तर के प्रति उनके दृष्टिकोण का सार बताते हैं। कई क्षेत्रों में निर्णायक पहलों ने इस क्षेत्र में बड़ा बदलाव सुनिश्चित किया है। असम में टाटा का सेमीकंडक्टर संयंत्र, अरुणाचल प्रदेश में टाटो जैसी जलविद्युत परियोजनाएं और बोगीबील रेल-सह-सड़क सेतु जैसे ऐतिहासिक बुनियादी ढांचे इस क्षेत्र का रूप बदल रहे हैं। इसके साथ ही, गुवाहाटी में एम्स की स्थापना और 10 नए ग्रीनफील्ड हवाई अड्डों ने स्वास्थ्य सुविधाओं और संपर्क को मज़बूत किया है। सीमांत से अग्रणी क्षेत्र तक कई दशकों तक मिज़ोरम के लोगों से सड़कों, विद्यालयों और रेल के लिए प्रतीक्षा करने को कहा जाता रहा। अब वह इंतज़ार ख़त्म हो गया है। कभी सीमांत कहे जाने वाले पूर्वोत्तरर क्षेत्र में वर्तमान परियोजनाएं हमारे प्रधानमंत्री की पूर्वोत्तर के प्रति सकारात्म क दृष्टिकोण का प्रमाण हैं, जिन्हेंा अब भारत की प्रगति में अग्रणी माना जाता है। (लेखक, केन्द्रीय रेल, सूचना प्रौद्योगिकी और सूचना एवं प्रसारण मंत्री हैं) ईएमएस / 11 सितम्बर 25