:: सनाढ्य ब्राह्मण समाज द्वारा चंद्रभागा जूनी इंदौर में चल रही भागवत कथा में मना नंदोत्सव-आज रुक्मणी विवाह :: इंदौर (ईएमएस)। भगवान का अवतरण भक्तों की रक्षा और दुष्टों के नाश के लिए हुआ है। उनकी लीलाओं में प्राणी मात्र के प्रति सदभाव और कल्याण का चिंतन होता है। संसार की दृष्टि से भगवान की लीलाओं का चाहे जो अर्थ-अनर्थ निकाला जाए, यह शाश्वत सत्य है कि यदि हमारी भक्ति अडिग और अखंड रहेगी तो भगवान को भक्तों की रक्षा के लिए आना ही पड़ेगा। भक्ति निष्काम और निर्दोष होना चाहिए। भक्ति मनुष्य को निर्भयता प्रदान करती है। ये दिव्य विचार हैं भागवताचार्य पं. लोकेशानंद शास्त्री के, जो उन्होंने सनाढ्य ब्राह्मण समाज के तत्वावधान में चंद्रभागा, जूनी इंदौर स्थित समाज के राधा-कृष्ण मंदिर पर आयोजित सात दिवसीय भागवत ज्ञान यज्ञ महोत्सव में बाल लीला एवं गोवर्धन पूजा प्रसंग की व्याख्या के दौरान व्यक्त किए। कथा में गोवर्धन पर्वत बनाकर बाल ग्वालों की ओर से छप्पन भोग भी समर्पित किए गए। कथा शुभारंभ के पूर्व व्यासपीठ का पूजन पं. देवेन्द्र शर्मा, भगवती शर्मा, अनिल शर्मा, रमेश पटेल, मनीष पटेल, डॉ. रमेश दुबे, सुनील पाठक, सतीश पाठक, प्रकाश तेनगुरिया, मोहन पचौरी, गोविंद दुबोलिया, अंकित दुबे एवं ओमजी शर्मा ने किया। मातृशक्ति की ओर से वंदना शर्मा, सुनीता पाराशर, चंद्रप्रभा स्थापक, पार्वती शर्मा, पुष्पा मुदगल, कृष्णा तिवारी, शारदा तिवारी, शांति शर्मा एवं उषा शर्मा ने विभिन्न व्यवस्थाओं की कमान संभाली। :: आज रुक्मणी विवाह :: अध्यक्ष पं. देवेन्द्र शर्मा एवं महासचिव संजय जारोलिया ने बताया कि कथा में मातृ शक्ति द्वारा भजनों पर पर थिरकने का क्रम पहले दिन से ही चल रहा है। पं. शास्त्री के श्रीमुख से कथा का यह दिव्य आयोजन राधा अष्टमी के उपलक्ष्य में 6 सितम्बर तक प्रतिदिन दोपहर 2 से 5 बजे तक चलेगा। कथा में शुक्रवार को रुक्मणी विवाह का उत्सव धूमधाम से मनाया जाएगा। शनिवार को कथा का समापन होगा। आचार्य पं. शास्त्री ने कहा कि भगवान की भक्ति कभी निष्फल नहीं होती। कृष्ण की बाल लीलाएं पूतना वध से शुरू होकर कंस वध तक जारी रही और सब में भक्तों के कल्याण का ही भाव है। बृज की भूमि आज भी भगवान की लीलाओं की साक्षी है जहां हजारों वर्ष बाद भी गोपीगीत, महारास और कालियादेह नाग के मर्दन के जीवंत उदाहरण मौजूद है। हमारी संस्कृति में कुछ भी कपोल-कल्पित नहीं है। जितने प्रसंग हमारे धर्मशास्त्रों में बताए गए है, उन सबके प्रमाण आज भी देखे जा सकते हैं। यह भारत भूमि का ही चमत्कार है कि यहां सबसे ज्यादा देवी - देवता अवतार लेते है। भक्तों की भी यही भूमि है और लीलाओं का अलौकिक मंचन भी भारत की पुण्यधरा पर ही होता है। प्रकाश/4 सितम्बर 2025