वाशिंगटन (ईएमएस)। आयुर्वेदाचार्यों के मुताबिक, पान के पत्तों में प्राकृतिक एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटी-ऑक्सीडेंट गुण पाए जाते हैं, जो शरीर को कई तरह से लाभ पहुंचाते हैं। अमेरिकन नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के अनुसार, पान का पत्ता कुछ हद तक कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि को रोकने में सहायक हो सकता है। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर संक्रमण से लड़ने में मदद करता है। आयुर्वेद में इसका प्रयोग सर्दी-जुकाम, खांसी, गले की खराश और मुंह की दुर्गंध जैसी सामान्य बीमारियों में लंबे समय से किया जाता रहा है। पान के पत्ते पाचन क्रिया के लिए भी लाभकारी हैं, क्योंकि यह पेट की अम्लता को नियंत्रित करता है और गैस या अपच जैसी समस्याओं को कम करता है। पान के पत्ते चबाने से मुंह की बदबू दूर होती है और सांसें ताजी हो जाती हैं। इसके एंटी-बैक्टीरियल गुण मुंह में मौजूद हानिकारक जीवाणुओं को कम करते हैं, जिससे यह भोजन के बाद प्राकृतिक माउथ फ्रेशनर का काम करता है। पत्तों में मौजूद विटामिन सी और अन्य एंटीऑक्सीडेंट्स शरीर को फ्री रेडिकल्स से बचाते हैं और उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा करते हैं। घर में पान की बेल लगाना बेहद आसान है। यह ज्यादा तेज धूप पसंद नहीं करती और बालकनी, बरामदा या किसी छायादार दीवार के पास उगाई जा सकती है। पान की बेल धीरे-धीरे फैलती है और घर को प्राकृतिक सुंदरता भी देती है। इसे बीज से नहीं बल्कि 5-6 इंच लंबी टहनी से उगाया जाता है। हल्की नमी वाली मिट्टी में गोबर की खाद या कंपोस्ट मिलाकर इसे लगाएं और नियमित पानी दें। गर्मियों में इसे सीधी धूप से बचाएं और पत्तों पर हल्की स्प्रे करते रहें। सर्दियों में पानी कम दें, लेकिन मिट्टी को पूरी तरह सूखने न दें। कीट लगने पर नीम के पानी या घरेलू कीटनाशक का उपयोग करें। इस प्रकार पान का पत्ता न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी अद्भुत फायदे प्रदान करता है। इसे अपने घर में लगाना और इसका नियमित उपयोग करना सेहत और ताजगी का प्राकृतिक तरीका है। बता दें कि भारतीय संस्कृति में पान का पत्ता सदियों से शुभता, औषधीय गुण और परंपरा का प्रतीक माना जाता रहा है। चाहे कोई पूजा-पाठ हो, शादी-ब्याह या धार्मिक आयोजन, हर शुभ अवसर पर पान का पत्ता अनिवार्य होता है। आयुर्वेद और आधुनिक विज्ञान दोनों ने इसके फायदों को मान्यता दी है। सुदामा/ईएमएस 09 सितंबर 2025