लंदन (ईएमएस)। पोलैंड मुख्य रूप से कैथोलिक ईसाई देश है, जहां धर्म का समाज पर गहरा प्रभाव है। वहां के लोगों और सरकार को यह डर है कि अलग धर्म और संस्कृति वाले शरणार्थियों के आने से उनकी राष्ट्रीय और धार्मिक पहचान कमजोर हो जाएगी। लेख में बताया गया है कि मध्य पूर्व में अस्थिरता के बावजूद पोलैंड ने मुस्लिम शरणार्थियों को स्वीकार नहीं किया, जो इस बात का सबूत है। पोलैंड ने दूसरे विश्व युद्ध के बाद और कम्युनिस्ट शासन से मुक्ति के बाद आर्थिक रूप से खुद को मजबूत करने के लिए काफी संघर्ष किया है। उन्हें लगता है कि बड़ी संख्या में शरणार्थियों को स्वीकार करने से उनके संसाधनों पर भारी दबाव पड़ेगा। पोलैंड यूक्रेन से सटा हुआ है। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण पोलैंड अपनी सुरक्षा को लेकर बहुत चिंतित है। उन्हें डर है कि शरणार्थियों के साथ-साथ घुसपैठियों की संख्या भी बढ़ सकती है, जिससे उनकी राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हो सकता है। इसीलिए उन्होंने अपनी सीमाओं को और सख्त कर दिया है। पोलैंड ने बेलारूस जैसी सीमाओं पर कांटेदार तार, कैमरे और सशस्त्र गार्ड तैनात किए हैं। अगर कोई शरणार्थी भीतर आ भी जाता है, तब उस जबरन वापस धकेल दिया जाता है। यूरोपीय संघ (ईयू) ने शरणार्थियों को बांटने के लिए कोटा प्रणाली लागू की है, लेकिन पोलैंड ने इसका विरोध किया है। वह लगातार संसाधनों की कमी और सुरक्षा का हवाला देकर इस प्रणाली का पालन करने से बचता रहा है। पोलैंड की शरणार्थी नीति उसके ऐतिहासिक अनुभवों, धार्मिक पहचान की सुरक्षा की इच्छा, आर्थिक सीमाओं और भू-राजनीतिक खतरों पर आधारित है। यही वजह है कि पोलैंड, बाकी यूरोपीय देशों के मुकाबले, शरणार्थियों को लेकर एक सख्त रुख अपनाता है और अपनी सीमाओं को सुरक्षित रखता है। आशीष/ईएमएस 16 सितंबर 2025