राज्य
12-Oct-2025
...


भोपाल (ईएमएस)। मध्य प्रदेश की पुलिस और न्यायिक व्यवस्था ने एक नया रिकॉर्ड बनाया है। 12 सालों में 100 से ज़्यादा हिरासत में मौतें, लेकिन सज़ा शून्य! राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) और मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के आंकड़े बताते हैं कि एमपी की सुरक्षित पुलिस कस्टडी में संदिग्धों का स्वर्गवास होना अब आम बात हो गई है। मानवाधिकार विशेषज्ञ अब मान रहे हैं कि एमपी पुलिस शायद एक नई किस्म का डेथ टूरिज्म चला रही है, जहाँ आरोपी को हिरासत में लिया जाता है और वह सीधे स्वर्ग सिधार जाता है। सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि हर मौत के बाद आरोपी पुलिसकर्मियों को तुरंत निलंबन की छुट्टी दे दी जाती है, ताकि वे कुछ दिन घर पर आराम कर सकें, और फिर मामला शांत होने पर चुपचाप वापस ड्यूटी पर आ सकें। एनसीआरबी और एनएचआरसी के आंकड़ों के मुताबिक, मध्य प्रदेश हिरासत में मौतों के मामले में देश के शीर्ष तीन-चार राज्यों की सूची में अपनी जगह पक्की कर चुका है। पिछले एक दशक में, हिरासत में 100 से अधिक मौतें दर्ज की गई हैं। यह आंकड़ा एमपी पुलिस की क्रिएटिविटी और कार्यशैली को दिखाता है। 100 से ज़्यादा मौतें, लेकिन सज़ा या दोषसिद्धि एक भी नहीं हुई! ऐसा लगता है कि एमपी के पुलिसकर्मी क़ानूनी कवच पहनकर काम करते हैं, जिस पर आईपीसी की धारा 302 या 330 का कोई असर नहीं होता। विशेषज्ञ अब मानते हैं कि निलंबन मध्य प्रदेश में एक दंड नहीं, बल्कि सरकारी वीकेंड पैकेज है। जैसे ही हिरासत में मौत होती है, आरोपी अधिकारी को तुरंत निलंबित कर दिया जाता है। यह निलंबन दरअसल उन्हें जांच से दूर रहने, सबूतों को कमजोर करने और कानूनी लड़ाई की तैयारी करने का समय देता है। पुलिस का संरक्षण तंत्र यहाँ किसी बाहुबली की तरह काम करता है। स्थानीय पुलिस आरोपी साथियों के ख़िलाफ़ सबूत जुटाने में इतनी कमजोर हो जाती है कि कोर्ट में केस खुद ही दम तोड़ देता है। -सुको का फ़ैसला लागू नहीं हाल ही में जब सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में आरोपी पुलिसकर्मियों को तुरंत गिरफ्तार करने को कहा, तो एमपी सरकार ने गिरफ्तारी में महीनों लगा दिए। सुप्रीम कोर्ट की फटकार पर चुटकी लेते हुए लोगों का कहना है कि सरकार शायद सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को अंतिम चेतावनी की बजाय अनिवार्य सलाह मानती है।