लेख
13-Oct-2025
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लखनऊ में मायावती ने नौ साल बाद जबरदस्त शक्ति प्रदर्शन किया।पांच लाख की जनमेदनी ने समाजवादी पार्टी को सोचने के लिए मजबूर कर दिया।हाथी की मस्त चाल से सियासत गरमा गई है।उत्तरप्रदेश के साथ बिहार में हलचल तेज हो गई है।उत्तरप्रदेश विधानसभा में मिली करारी शिकस्त के बाद करीब नौ साल के बाद यह पहली विशाल रैली निकालकर बहुजन समाज पार्टी की मुखिया और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की आवाज सुनकर कार्यकर्ता फुले नही समाए।उत्तरप्रदेश में हार का कारण का पता लगाने की जगह मायावती ने अनर्गल बयान दिया।परंतु मायावती को आत्ममंथन की आवश्यकता थी।मायावती की पार्टी बहुजन समाजवादी पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने विपक्षी पार्टियों पर आरोप लगा दिया था।लखनऊ में पार्टी सम्मेलन में पांच लाख की जनमेदनी देखकर मायावती ने कहा कि इनको बुलाया नही गया है।इतने लोग स्वयं चलकर अपनी मर्जी से पार्टी सम्मेलन का हिस्सा बने है। मायावती ने भाजपा और समाजवादी दोनो पर निशान साधते हुए बहुजन समाज एकता और राजनैतिक पुनरुत्थान का बिगुल फूंका।मायावती हर समय अपनी जिम्मेदारियों से बचना चाहती है।मायावती की साख में उनकी पार्टी के पतन के साथ ही कमी महसूस की गई है।मायावती और बसपा की रणनीति का हिस्सा रहा है।दलितों को अपनी मुट्ठी में समझने वाली मायावती ने अपनी पार्टी का सिम्बोल हाथी का स्टेच्यू लखनऊ आदि शहरों में लगवा दिया था।मायावती की उड़ान मन्द पड़ गई है।अब मायावती की झोली खाली है।दलितों को बराबरी का सपना दिखाने वाली मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पहुंचने वाली मायावती का मंसूबा प्रधानमंत्री बनने का था।मायावती का सपना तो पूरा नही हुआ,पर अब तक अपना अस्तित्व बचाने की चुनौती उसके सामने है। मायावती की हार का असली कारणों और मुद्दों को दरकिनार करके स्वर्ण और सतारूढ़ दल पर अनर्गल आरोप लगाकर राजनीति जमीन तैयार करना बसपा की रणनीति रही है।चार दशक पहले बहुजन समाजपार्टी जिन मुद्दों,नारो,रणनीति, सामाजिक समीकरण और सेना के सहारे संसदीय रणनीति में उतरी थी,आज भी उसी के सहारे खड़ी है।जबकि सच्चाई यह है कि चार दशक में देश और प्रदेश की राजनीति और समाज मे ढेर सारे परिवर्तन हो चुके है।लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, ओमप्रकाश चौटाला, मायावती आदि दर्जनभर नाम पीएम की पहली पंक्ति में थे।लेकिन मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी के विकास को देखकर ये नेता प्रधानमंत्री बनने का विचार छोड़ दिया।इन नेताओं ने कहा कि मोदी सुपर है।इनके जैसा कार्य हमसे नही हो सकता है।मायावती के सपने मोदी के बाद झूलते नजर आए।दलित और अति पिछड़े समाज में भी अधिक और शैक्षणिक उन्नति हुई है।लेकिन मायावती ने अपनी रणनीति में कोई ठोस बदलाव नहीं किया है।जो बदलाव किए है उसे महज सत्ता पाने तक सीमित रखा।पार्टी और संगठन के आंतरिक ढांचे में उन परिवर्तनों का कोई असर नही पड़ा।आज भी मायावती के मन मे विकास की कोई धारणा नही है।विपक्ष पर निशान साधते हुए कांशीराम के बनाये स्मारकों के रखरखाव पर विपक्ष को घेरती नजर आई।सपा ने स्मारकों और पार्को की हालत खराब कर दी है।लेकिन भाजपा की तारीफ करते हुए कहा कि इनकी सरकार ने मरम्मत कराई ।उपस्थित कार्यकर्ताओ को नसीहत देते हुए कहा कि भाजपा,समाजवादी ,कांग्रेस सभी जातिवादी सोच की पार्टियां है और इनसे संभल कर रहने की चेतावनी दी।मायावती ने कहा कि ये दल संकीर्ण सोच वाले है।मायावती ने एकाधिकार बनाये रखने के लिए ढेर सारे नेताओ को पार्टी से बाहर कर दिया।कुछ खुद चले गए थे।डीएसफोर के जमाने मे नेताओ को बाहर का रास्ता बता दिया।विकास का कोई मुद्दा इनके मन में नही है।नेताओ के जाने के बाद बहुजन समाजवादी पार्टी को वैचारिक और सांगठनिक स्तर भारी कीमत चुकानी पड़ी थीं।जिसके बाद राजनीतिक चाल चलते हुए मायावती ने बहुजन के स्थान पर सर्वजन का नारा दिया।उस दौर में लोगो के पक्ष की बात करदेते थे तो मतदाता पार्टी से अनायास जुड़ जाते थे।निरक्षर समाज और गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले गरीब लोग दो कीलो चावल और दो लीटर केरोसिन पर वोट देने के लिए और पार्टी का प्रचार के लिए तैयार हो जाते थे।आज शिक्षित समाज किसी भी मुद्दे पर सौ बार विचार करता है।आज किसी को बेवकूफ बनाना टेडी खीर है।अब सर्वजन कौन कहे बहुजन भी मायावती से पीछा छुड़ाता दिख रहा है।2012 में मायावती को विपक्ष की भूमिका दी थी।पांच वर्ष तक मायावती विपक्ष की भूमिका निभाने के बजाय सत्ता के इंतजार में गंवा दिया।जबकि अखिलेश कुमार की सरकार में प्रदेश की जनता को दंगो की आग का सामना करना पड़ा।जबकि मायावती मौन साधे बैठी रही।इस बार मायावती का भाषण सुनने लोग सभा मे एकत्रित तो हुए है लेकिन आज भी विकास की कोई बात या दलित गरीबो के उत्थान का मापदंड मायावती के मन मे नही है।2012 में जनता ने विपक्ष की भूमिका निभाने लायक नहीं रखा। मायावती के हार के अनेक कारण है।लेकिन मायावती फूली नही समा रही है।मजूबत वोट बैंक के अभाव में दलित मतों में बिखराव और अपने आधार वोट को मजबूत करने के बजाय मायावती ने पुराने दांव ही अपनाए है।वर्तमान आईआईटी का जमाना है।मायावती को अपने विचार अपनी सोच और टेक्नोलॉजी पर गहन विचार कर मतदाताओ के दिल मे जगह बनाने की कोशिश करनी चाहिए। 2007 में मायावती ने विधानसभा चुनाव के पहले बसपा ने अति पिछड़ा,दलित के साथ मुसलमान और ब्राह्मण वर्ग को अपने साथ जोड़ने के लिए सामाजिक भाईचारा कार्यक्रम शुरू किया।यह जवाबदारी सतीश चंद्र मिश्र और नसीमुद्दीन को सौंपी गई।जिसके मद्देनजर एक मजबूत आधार तैयार हुआ। सूबे की राजनीति से माफिया उन्मूलन और कानून का राज स्थापित करने का वादा किया।जिसका फायदा उस समय चुनाव में मिला।और मायावती पूर्ण बहुमत से मुख्यमंत्री बनी।लेकिन 2017 में अपने मुद्दों और मजबूत आधार नही दे पाई।90के दशक में मुलायमसिंह यादव और बहुजन पार्टी का यूपी की राजनीति में वर्चस्व स्थापित होना शुरू हो गया था।मायावती बहनजी के पार्टी की साख पूरे भारत मे थी।मायावती की पार्टी अन्य राज्यो में भी चुनाव लड़ती थी।लेकिन धीरे धीरे जातीय संगठन को चुनाव तक ही सीमित रखा और पार्टी की बढ़ती साख पर ग्रहण लगने लगा।नेताओ को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नही दी जाती थी।शुरुआती दौर में सवर्णों के इतर दलित और पिछड़े वर्ग के काडरों के संगठन को महत्वपूर्ण पद पर रखा।अति पिछड़ा वर्ग के ढेर सारे नेता पार्टी का चेहरा हुआ करते थे।लेकिन मायावती की निरंकुश जीवनशैली और पार्टी के एकाधिकार के कारण अधिकांश दलित और पिछड़े नेताओ को बेइज्जत करके पार्टी से बाहर का रास्ता बता दिया।तब सम्पूर्ण दलित और पिछड़ों के बजाय बसपा दलितों की सिर्फ पार्टी मानी जाने लगी थी।चुनाव के पूर्व स्वामी प्रसाद मौर्य ,ब्रजेश पाठक और आरके चौधरी और पार्टी के कई छोटे बड़े नेताओ ने पार्टी को अलविदा कह दिया।बसपा छोड़ने वाले नेता भाजपा में शामिल हो गए।जिस दल में किसी के अधिकारी को छीना जाता है।पार्टी में उनकीनही सुनी जाती है,तब यही हश्र होता है।इससे जहां भाजपा मजबूत हुई,वही बसपा में दूसरी पंक्ति के नेताओ का अभाव हो गया।मायावती को एक भरोसा था कि दलित और पिछड़ा उनके साथ है।यूपी में 40 से ज्यादा दलित मुस्लिम वोटर है।लेकिन कांग्रेस की तरह इन जातियों के साथ भी बसपा ने वो ही व्यवहार किया।मुसलमानों को अधिक टिकट और चुनाव के वक्त कुख्यात माफिया मुख्तार अंसारी को पार्टी में शामिल कर दलित मुस्लिम गठजोड़ का संदेश दिया।मायावती मीडिया से दूरी बनाकर चलती है।सत्ता में रहते हुए मीडिया को तवज्जो नही दी।मायावती की माया वो ही जाने,लेकिन लखनऊ की राजगद्दी मायावती के लिए बहुत दूर है।क्योंकि योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री के तौर विकास की गंगा बहा दी गई है।जिसकी रोशनी में विपक्ष की आंखे चरमराई हुई है।उत्तरप्रदेश देश मे आर्थिक मजबूती में दूसरे नम्बर पर है।चारो तरफ विकास की होड़ लगी हुई है।लेकिन मायावती की सोच उसी पर टिकी हुई है कि ईवीएम धांधली से हमे हराया गया।मायावती को अभी तक ईवीएम मशीने ही दृष्टिगोचर हो रही है।लेकिन उनकी भूल तक स्वीकार नही है ।मायावती को राजनीति की दहलीज तक जाने के लिए फिर से भारी मेहनत करनी होगी।क्योंकि उत्तरप्रदेश अब उत्तमपुरुष के हाथों उत्तम प्रदेश बन चुका है। (वरिष्ठ पत्रकार साहित्यकार -लेखक) (यह लेखक के व्य‎‎‎क्तिगत ‎विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अ‎निवार्य नहीं है) .../ 13 अक्टूबर/2025