राष्ट्रीय
14-Oct-2025
...


नई दिल्ली (ईएमएस)। आज काम से लेकर पढ़ाई और मनोरंजन तक, हर चीज अब इंटरनेट के दायरे में सिमट गई है। तकनीक की इस निर्भरता ने एक नई और गंभीर समस्या को जन्म दिया है इंटरनेट एडिक्शन। इंटरनेट के दुष्प्रभाव उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर गहराई से दिखाई दे रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि स्मार्टफोन और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के अत्यधिक उपयोग ने युवाओं को एक ऐसी स्थिति में पहुँचा दिया है, जहां उनका ध्यान भटकने लगा है, एकाग्रता की कमी देखी जा रही है और उनमें चिड़चिड़ापन बढ़ता जा रहा है। मोबाइल नोटिफिकेशन की आदत, गेमिंग और लगातार ऑनलाइन रहने की प्रवृत्ति दिमाग को लगातार उत्तेजित रखती है। यही कारण है कि जब इंटरनेट से कुछ समय के लिए भी दूरी बनती है, तो बेचैनी, तनाव और अनिद्रा जैसे लक्षण सामने आते हैं। अध्ययनों के अनुसार, 16 से 30 वर्ष के बीच की उम्र के युवाओं में इंटरनेट पर बिताया जाने वाला औसत समय 6 से 8 घंटे तक पहुँच गया है। यह समय न केवल उनकी उत्पादकता को प्रभावित कर रहा है, बल्कि उनके सामाजिक जीवन को भी नुकसान पहुँचा रहा है। ऑनलाइन गेम्स, रील्स और चैटिंग के कारण नींद की गुणवत्ता गिर रही है। देर रात तक मोबाइल पर सक्रिय रहने से जैविक घड़ी (बॉडी क्लॉक) गड़बड़ा जाती है, जिससे शरीर में थकान, चिड़चिड़ापन और ध्यान की कमी जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। मनोचिकित्सकों का कहना है कि इंटरनेट एडिक्शन अब केवल आदत नहीं, बल्कि एक व्यवहारिक विकार बन चुका है। “लोगों को यह एहसास नहीं होता कि वे कितने समय तक स्क्रीन के सामने रहते हैं। इंटरनेट पर निर्भरता बढ़ने से व्यक्ति अपने परिवार और समाज से कटता जा रहा है। भावनात्मक अस्थिरता और मानसिक थकावट बढ़ रही है।” इस लत का एक और गंभीर पहलू यह है कि यह युवाओं की सोचने-समझने की क्षमता पर असर डाल रही है। जब दिमाग को लगातार तेज़ गति से चलती डिजिटल सामग्री मिलती है, तो उसकी सहनशीलता कम हो जाती है। इसका नतीजा यह होता है कि युवा ऑफलाइन गतिविधियों जैसे पढ़ाई, बातचीत या सामान्य जीवन के कार्यों में जल्दी ऊबने लगते हैं। मनोचिकित्सकों का मानना है कि इस समस्या का सबसे प्रभावी समाधान “डिजिटल डिटॉक्स” अपनाना है। यानी हर दिन कुछ समय तक मोबाइल और इंटरनेट से दूरी बनाकर खुद को प्राकृतिक माहौल में रखना। योग, ध्यान, पुस्तक पठन और दोस्तों व परिवार के साथ वास्तविक बातचीत से यह लत धीरे-धीरे कम हो सकती है। साथ ही, नींद का समय निश्चित रखना और रात में स्क्रीन टाइम को सीमित करना बेहद ज़रूरी है। इंटरनेट एक शक्तिशाली साधन है, लेकिन इसका विवेकपूर्ण उपयोग ही स्वस्थ जीवन की कुंजी है। अगर इसे नियंत्रित न किया गया, तो आने वाले वर्षों में यह लत युवाओं की ऊर्जा, उत्पादकता और मानसिक स्थिरता को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है। सुदामा/ईएमएस 14 अक्टूबर 2025