लेख
16-Oct-2025
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घटनाएं होती रहीं और सरकार सोती रही, आखिर कौन है जिम्मेदार मध्यप्रदेश का यह दुर्भाग्य है कि यहां पर कुछ ऐसी घटनाएं हुई हैं जो अप्रत्याशित तो थीं परंतु उन्हें थोड़ी सी सावधानियों से रोका जा सकता था। इसी तरह की घटनाओं की श्रृंखला में खांसी के सिरप में गड़बड़ी के चलते कई बच्चों की मौत होने की घटना भी शामिल हो गयी है। एक समाचार पत्र ने मध्यप्रदेश की इस स्थिति पर कमेंट करते हुआ लिखा कि इन घटनाओं से यह सिद्ध होता है कि सरकारें प्रायः गहरी नींद में सोई रहती है। वह तब तक नहीं उठती जब तक कि कोई बड़ा हादसा उन्हें झकझोर न दे। जनता को ही हर बार इसका खामियाजा भुगताना पड़ता है। इस तरह की घटनाओं में दो साल पहले गुना में एक बस में आग लगने की घटना भी थी जिसमें 13 लोग जिंदा जल गए थे। तब सरकार की आंख खुली और बसों की चेकिंग शुरू की और देखा गया कि बसों में आपातकालीन सुविधा है कि नहीं। बाद में पता लगा कि इस तरह का इंतजाम उस बस में नहीं था जिसमें 13 लोग जल गए थे। बाद में जांच हुई कि बसों में एन्ट्री और एक्जिट के अलग-अलग दरवाजे हैं या नहीं। इसी श्रृंखला में एक साल पहले हरदा में पटाखा फैक्ट्री में धमाका भी था जिसमें 13 लोगों की जानें गईं। तब जाकर पूरे देश में पटाखों की दुकानों की चेकिंग शुरू हुई। ऐसा लगा कि मानो हर पटाखे की दुकान पर कोई संतरी बैठा दिया गया हो। इस वर्ष फिर दिवाली आ रही है। परंतु अभी तक जो दुकानें लगने वाली हैं और जो फैक्टरियां हैं उनकी कोई जांच नहीं हुई है। लगता है पटाखा फैक्टरी में हुए हादसे में 13 लोगों की जानें गई थीं उसको भुला दिया गया है। कुछ दिन पहले खंडवा में दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के लिए जाते समय ट्रैक्टर-टाली पलटी थी। उस हादसे में 13 लोग मारे गए थे। फिर जांच शुरू हुई कि ट्रेक्टरट्राली में कितने लोग सवार थे। सच पूछा जाए तो ट्राली इंसानों की आवाजाही के लिए नहीं है। ट्राली तो अनाज या इस तरह की अन्य चीजों के परिवहन के लिए होती है। इसी तारतम्य में एक और घटना अभी हाल में हुई जिसमें खांसी की दवा जहरीली पाई गई। अभी तक 24-25 बच्चों की मृत्यु हो गई है। इस संबंध में कुछ प्रश्न उठ रहे हैं जिनका जवाब देना बहुत मुश्किल हो रहा है। तमिलनाडु में बनी यह दवा अनेक राज्यों को पार करके मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में क्यों पहुंची? वे कौन दुकानदार थे जो इस दवाई को आयात करते थे? फिर अकेला छिंदवाड़ा जिला क्यों? ज्यादा मौतें छिंदवाड़ा जिले में ही क्यों हुई हैं? कौन था इसके पीछे? बताया गया है कि उस खांसी की दवाई में जो खतरे हैं उनको कुछ दिनों पहले बता दिया गया था। किसने बताया था? कहां बताया था? फिर डाक से दवाओं के सैंपल जांच के लिए क्यों भेजे गए? डाक हमारे देश की सबसे सोती हुई संस्था है। जिसमें बीमार आदमी की सूचना उस समय तक पहुंचती है जब वह मर जाता है। आगमन की सूचना उस समय पहुंचती है जब अतिथि कई दिनों रहने के बाद अपने घर वापिस पहुंच जाता है। तमिलनाडु सरकार देश की बहुत ही स्मार्ट सरकारों में से एक है। वहां यह फैक्टरी कैसे चलती रही यह सवाल है? परंतु इस बात को मानना पड़ेगा कि जब तमिलनाडु सरकार को इसकी सूचना मिली तो उसने एक दिन में जांच करके यह पता लगा लिया कि दवा में जहर मिला हुआ था। उसके अगले दिन मध्यप्रदेश सरकार की जांच में भी वही बात निकली। सवाल यह है कि पूरा प्रदेश कह रहा था कि दवा पर शक है तो सरकार ने क्यों कहा कि अभी जांच चल रही है। जांच तो चलती रहती पर उसके पहले उस दवा को प्रतिबंधित कर देना चाहिए था। फिर उन डाक्टरों को इसके लिए जिम्मेदार बनाया गया जिन्होंने इस दवा के नुस्खे लिखे। पता लगा कि जिस डाक्टर ने यह दवा बच्चों की बीमारी के लिए सिफारिश की थी उसकी दुकान उस डाक्टर की पत्नी की थी। यानी दवाई को लिखने वाला भी वही, बेचने वाला भी वही। यह एक पारिवारिक उद्योग चल रहा था। डॉक्टरों के संगठन का कहना है कि यह डॉक्टरों की जिम्मेदारी नहीं है। परंतु प्रश्न यह उठता है कि क्या हमारे देश में कोई ऐसा मेकेनिज़म है जिससे दवाईयों के बीमार के पास पहुंचने से पहले यह सुनिश्चित हो सके कि उस दवाई में कोई हानिकारक चीज मिली हुई तो नहीं है?सैंकड़ों दवाइयों की फैक्टरियां हमारे देश में ऐसी हैं जिनका अस्तित्व ही संदेह पर टिका हुआ है। कौन इन दवाईयों को स्वीकृति देता है। इन दवाईयों को चलाने वाले कौन हैं? दवाई में जहर की मिलावट के परिणाम के बाद अब यह आदेश जारी किया गया है कि दवाईयां अब वह दुकानदार ही बेच सकेंगे जिनके पास ट्रेंड फार्मासिस्ट होंगे। परंतु यह आदेश निकालने में इतना समय क्यों लगा? इसमें किसकी जिम्मेदारी है? मंत्री स्तर की, या अधिकारी स्तर की। परंतु जो 24 जानें चली गई हैं उसकी भरपाई तो नहीं हो पाएगी। जहां मध्यप्रदेश में इस तरह की गैरकानूनी गतिविधि संभव हो सकी, वहीं मध्यप्रदेश की एक और विशेषता है। वह यह है कि लगता है कि राज्य भ्रष्टाचारियों के लिए हरित भूमि है। समाचार पत्रों में हर दिन किसी न किसी ऐसी घटना का उल्लेख होता है जो अत्यधिक गैरकानूनी है। परंतु वह धड़ल्ले से चल रहा है। ऐसा ही भ्रष्टाचार का एक अत्यधिक निम्न श्रेणी का उदाहरण अभी मिला है। लोक निर्माण विभाग के एक अधिकारी का पता चला जिन्होंने अपनी सरकारी नौकरी के दौरान करोड़ो रुपए कमाए। जांच के बाद इस अधिकारी के घर में लाखों रुपए, सोना-चांदी, मकानों की रजिस्ट्रियां इत्यादि मिले। चौंकाने वाली बात पता लगी कि इस अधिकारी के फार्म हाउस में 2 किमी की सीमेंट रोड बनी हुई है। यह रोड किसने बनाई? लोकायुक्त पता लगा रहा है कि इस रोड को किसने बनाया है। क्या इस अधिकारी ने किसी कान्ट्रेक्टर पर दबाव बनाने के बाद सड़क बनवाई? लोकायुक्त पुलिस ने 2 अक्टूबर को इसके चार ठिकानों पर एक साथ छापा मारकर करीब 10 करोड़ से अधिक की संपत्ति का खुलासा किया है, जिसमें करीब 36 लाख रुपए नगद, 2649 ग्राम सोना, 5203 ग्राम चांदी, एक फैक्टरी और फर्म के दस्तावेज इत्यादि शामिल हैं। इसके अलावा उसने अनेक मकान बनाए हैं। उन मकानों की संख्या अभी पता नहीं लग पाई है। लोकायुक्त की टीम को उनके भोपाल स्थित बंगले से 15 पासपोर्ट मिले हैं। वे सभी उनके और परिवार के सदस्यों के नाम पर हैं। पुलिस का कहना है कि इतनी संख्या में पासपोर्टों का मिलना भी संदेहास्पद है। हाल ही में एक सनसनीखेज खबर सामने आयी है। उस खबर के अनुसार मध्यप्रदेश की सरकार ने एक ऐसी कंपनी को 476 करोड़ का प्रोजेक्ट दिया है जिसे गुजरात में ब्लैक लिस्ट कर दिया गया है। इस कंपनी को यह प्रोजेक्ट इस शर्त के साथ दिया गया कि उसे 2028 में होने वाले उज्जैन के सिंहस्थ के पहले तैयार करना है। परंतु एक ऐसी कंपनी जिसे एक राज्य में अनेक गलत काम करने के कारण प्रतिबंधित कर दियागया हो, उसी कंपनी को क्यों इतना बड़ा ठेका दिया गया है? बताया गया है कि उसने यह ठेका अपने पुराने कारनामों को छुपाने के बाद हासिल किया है। क्या सरकार के पास ऐसा तरीका नहीं था कि इस कंपनी कीक्या पृष्ठभूमि है यह ज्ञात हो, और क्या यह समाचार पत्रों में खबरें प्रकाशित कर नहीं जाना जा सकता था? इस तरह के अनेक घपलों की खबरें हर दिन आ रही हैं। लोकायुक्त की टीम क्या कर रही है? वह क्यों भ्रष्टाचार नहीं रोक पाई है? आखिर मध्प्रदेश में ऐसा कौनसा वातावरण है कि जो लोगों को, अधिकारियों को इतना बड़ा भ्रष्टाचार करने के लिए सुविधा मुहैया करवाती है। इनमें कौन शामिल हैं? क्या मंत्री शामिल हैं? क्या अधिकारी शामिल हैं? या अन्य राजनैतिक नेता शामिल हैं? यह एक जांच का विषय है। इसके अलावा मध्यप्रदेश की एक और विशेषता है। यहां पर अंधविश्वास के अनेक कारनामे नजर आते हैं। मध्यप्रदेश आदिवासियों की सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है। यहां पर आए दिन अंधविश्वास से संबंधित अनेक घटनाएं होती हैं। उन पर रोक लगाने के लिए अभी तक कोई प्रभावशाली कदम नहीं उठाए गए हैं। आए दिन अंधविश्वास की घटनाएं समाचारपत्रों में प्रकाशित होती रहती हैं। अंधविश्वास के नाम पर एक युवती को चुड़ैल बताकर यातनाएं देने का अत्यधिक वीभत्स घटना हुई है। दुख की बाद है कि इस घटना में एक महिला भी शामिल थी जो हाथ में तलवार लेकर झाड़-फूंक करती थी। उसी के कहने पर एक युवती को बंधक बनाकर जंजीर से पीटा गया। हथेलियों पर गर्म कोयले रखकर जलाया गया। चूल्हे पर सिक्का गरम कर उस पर चिपकाया गया। इस सबसे वह बेहोश हो गई परंतु उसके बाद भी जुल्म जारी रहे। बाद में किसी तरह वह महिला इन यातना देने के वालों के चंगुल से भाग निकली और उसने महिला थाने में रिपोर्ट की। जिसके फलस्वरूप तीन आरोपियों को गुरूवार रात और बाकी पांच को शुक्रवार को गिरफ्तार किया गया। आरोपियों में अनेक महिलाएं और पुरूष शामिल थे। पीड़ित 22 वर्ष की यह महिला अपने ही रिश्तेदारों के द्वारा बंधक बनाई गई थी और उसे झाड़फूंक के नाम पर जला कर यातनाएं दी जा रही थीं। स तरह की घटनाओं पर रोक लगाने के लिए कई याचिकाएं सरकार को भेजी गईं थीं परंतु अभी तक इस ओर कोई कदम नहीं उठाया गया है। यहां यह बताना आवश्यक है कि देश के 9 राज्यों में अंधविश्वास को प्रतिबंधित करने के लिए कानून बने हैं। परंतु आदिवासियों के बीच इस तरह की घटनाएं आए दिन हो रही हैं। उनको प्रतिबंधित करने के लिए कानून के अलावा चेतना फैलाने की आवश्यकता है। इन नकारात्मक खबरों के साथ एक सुखद खबर भी मध्यप्रदेश से आ रही है, वह यह है कि मध्यप्रदेश के तीन जिलों बालाघाट, अलीराजपुर और मंडला में स्कूलों में बच्चियों की संख्या ज्यादा है और वे इस बात की प्रतीक हैं कि इन तीनों जिलों में पुरूषों के अनुपात में महिलाओं की संख्या ज्यादा है। यह एक सुखद खबर है। यह बताना यहां पर आवश्यक है कि ये तीनों जिले मुख्य रूप से आदिवासी जिले हैं और उसके बावजूद वहां बहुत प्रभावी काम हुआ है। (यह लेखक के व्य‎‎‎क्तिगत ‎विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अ‎निवार्य नहीं है) .../ 16 अक्टूबर/2025