नई दिल्ली (ईएमएस)। आयुर्वेद के अनुसार चांदी, तांबा, कांसा और पीतल जैसे धातुओं के बर्तनों में रखा पानी शरीर के लिए लाभदायक होता है, जबकि प्लास्टिक, स्टील और लोहे जैसे बर्तनों से परहेज करने की सलाह दी जाती है। पानी को जीवन का अमृत कहा जाता है, लेकिन यह अमृत तभी पूर्ण रूप से लाभकारी बनता है जब उसे सही बर्तन में पिया जाए। इन्हीं में एक परंपरा रही है लोटे से पानी पीने की, जो आज भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सेहत के लिए बेहतर मानी जाती है। गौर करने वाली बात यह है कि पानी का खुद का कोई गुण नहीं होता। वह जिस बर्तन में रखा जाता है, उसी के गुणों को ग्रहण कर लेता है। अगर पानी दूध में मिल जाए तो वह दूध जैसा, और दही में मिल जाए तो दही जैसा बन जाता है। इसलिए पानी किस बर्तन में रखा गया है, यह बेहद मायने रखता है। लोटा, अपने गोल आकार की वजह से, पानी को एक संतुलित ऊर्जा देने में सक्षम होता है। इसके विपरीत गिलास का सीधा, सिलेंडर जैसा आकार इसे कम अनुकूल बनाता है। गोल आकार का एक और लाभ यह है कि इसका सतही क्षेत्रफल यानी सरफेस एरिया कम होता है। जब सरफेस एरिया कम होता है तो उस पर सरफेस टेंशन यानी सतही तनाव भी कम होता है। कम सरफेस टेंशन वाला पानी हमारे शरीर के लिए अधिक लाभकारी होता है, क्योंकि यह आंतों की गहराई तक सफाई करता है और पाचन को बेहतर बनाता है। ठीक वैसे ही जैसे दूध त्वचा पर लगाकर साफ किया जाए तो वह गहराई की गंदगी निकाल देता है। पुराने समय में कुएं भी गोल बनाए जाते थे और साधु-संतों के पास कमंडल हुआ करते थे, जो आकार में लोटे जैसे ही होते थे। यह सब केवल धार्मिक या पारंपरिक कारणों से नहीं था, बल्कि इसके पीछे गहरा वैज्ञानिक आधार भी था। गोल आकार का बर्तन न केवल जल की ऊर्जा को संतुलित करता है, बल्कि वह प्राकृतिक नियमों के भी अनुकूल होता है, जैसे बारिश की बूंदें भी गोल होती हैं। कम सरफेस टेंशन वाला पानी आंतों की परतों से चिपकी गंदगी को हटाने में सहायक होता है, जिससे पेट की समस्याएं जैसे बवासीर, भगंदर या सूजन की आशंका कम हो जाती है। सुदामा/ईएमएस 16 अक्टूबर 2025