राष्ट्रीय
16-Oct-2025
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नई दिल्ली (ईएमएस)। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, हमारे देश के लगभग 30 प्रतिशत युवा उच्च रक्तचाप की समस्या से जूझ रहे हैं।इसे अक्सर लोग गंभीरता से नहीं लेते, लेकिन यह साइलेंट किलर की तरह धीरे-धीरे शरीर को अंदर से प्रभावित करता है। आयुर्वेद के अनुसार उच्च रक्तचाप वात दोष के असंतुलन का परिणाम है। जब शरीर में वात दोष बढ़ता है, तो रक्तचाप की समस्या धीरे-धीरे उत्पन्न होती है। इसके लक्षणों में सिर में दर्द, घबराहट, बैचेनी और नींद की कमी शामिल हैं। इन लक्षणों की अनदेखी गंभीर परिणामों जैसे ब्रेन हेमरेज, किडनी फेलियर, आंखों की रोशनी में कमी, नाक से रक्तस्राव और हार्ट अटैक तक कर सकती है। इसलिए रक्तचाप को नियंत्रित रखना बेहद आवश्यक है। आयुर्वेद में उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने के कई प्रभावी उपाय बताए गए हैं। लौकी और तुलसी का जूस इसके लिए बेहद फायदेमंद है। आधा कप लौकी के जूस में पांच तुलसी की पत्तियां मिलाकर सुबह खाली पेट पीने से वात और कफ दोष संतुलित रहते हैं और दिल एवं पेट को ठंडक मिलती है। सर्पगंधा की जड़ भी उच्च रक्तचाप में लाभकारी मानी जाती है। इसे रातभर भिगोकर सुबह उबालकर पीना या बाजार में उपलब्ध चूर्ण का सेवन करना रक्तचाप नियंत्रित करने में मदद करता है। इसके अलावा, आंवला और शहद का संयोजन रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और दिल को मजबूत करने में कारगर है। रोजाना सुबह एक चम्मच आंवला चूर्ण शहद के साथ खाने से लाभ होता है। इसके साथ ही आयुर्वेदिक शोधन क्रिया शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालती है और कई रोगों से बचाती है। उच्च रक्तचाप वाले लोगों को अधिक तनाव से बचना चाहिए और सिगरेट, शराब व कैफीन का सेवन नहीं करना चाहिए। पर्याप्त नींद और संतुलित जीवनशैली इस बीमारी को नियंत्रित रखने में सहायक होती है। उच्च रक्तचाप के लिए नियमित आयुर्वेदिक उपाय अपनाना न केवल रक्तचाप को नियंत्रित करता है, बल्कि दिल, मस्तिष्क और अन्य अंगों की सुरक्षा भी सुनिश्चित करता है। प्राकृतिक उपायों और स्वस्थ जीवनशैली से आप इस “साइलेंट किलर” को मात दे सकते हैं और दीर्घकालिक स्वास्थ्य सुनिश्चित कर सकते हैं। मालूम हो कि आज की तेज़ और अस्वस्थ जीवनशैली ने मानव शरीर को कई रोगों के प्रति संवेदनशील बना दिया है। छोटी उम्र में ही युवा उच्च रक्तचाप जैसी गंभीर समस्याओं का सामना कर रहे हैं। सुदामा/ईएमएस 16 अक्टूबर 2025