-वाराणसी से लेकर उत्तरकाशी तक श्रद्धा और उत्सव की होगी रौनक नई दिल्ली,(ईएमएस)। ज्योतिपर्व दिवाली भले ही समाप्त हो जाए, लेकिन उसकी आभा अभी खत्म नहीं होने जा रही है। दरअसल अब उत्तराखंड सहित पूरे देश में एक और दिव्य पर्व देव दीपावली की तैयारियां शुरू हो गई हैं। यह पर्व हर वर्ष कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है और इस बार यह 5 नवंबर 2025 (मंगलवार) को मनाया जाएगा। इस दिन वाराणसी, हरिद्वार, ऋषिकेश और उत्तरकाशी जैसे धार्मिक शहर फिर से दीपों की उजास से जगमगाएंगे। देव दीपावली, जिसे त्रिपुरारी पूर्णिमा या त्रिपुरोत्सव भी कहा जाता है, भगवान शिव की विजय का प्रतीक पर्व है। कथा के अनुसार, त्रिपुरासुर नामक राक्षस ने तीनों लोकों में आतंक फैला दिया था। देवताओं और ऋषियों की प्रार्थना पर भगवान शिव ने उसका वध किया। इस विजय के उपलक्ष्य में सभी देवी-देवताओं ने काशी नगरी में दीप जलाकर उत्सव मनाया। तभी से यह पर्व “देव दीपावली” के रूप में मनाया जाने लगा। वाराणसी और उत्तराखंड में विशेष उत्सव वाराणसी में इस दिन गंगा तट के सभी घाटों पर हजारों दीपक जलाए जाते हैं। पूरा शहर मानो आकाशगंगा की तरह जगमगा उठता है। यहां दशाश्वमेध घाट पर धार्मिक अनुष्ठान, आरती, संगीत और नृत्य के भव्य आयोजन होते हैं। यही परंपरा 1991 में शुरू हुई थी, जो अब विश्व प्रसिद्ध हो चुकी है। इसी प्रकार उत्तराखंड में भी देव दीपावली का पर्व बड़ी श्रद्धा से मनाया जाता है। हरिद्वार, ऋषिकेश, देवप्रयाग, और उत्तरकाशी में गंगा तटों पर दीपदान का दृश्य अद्भुत होता है। शाम ढलते ही घाटों पर जलते हजारों दीपक पूरे वातावरण को दिव्यता और शांति से भर देते हैं। दीपदान का आध्यात्मिक फल इस दिन गंगा स्नान और दीपदान का विशेष महत्व होता है। श्रद्धालु 5, 7, 11 या अपनी श्रद्धा के अनुसार दीप जलाकर गंगा में प्रवाहित करते हैं। मान्यता है कि देव दीपावली पर किया गया दीपदान असीम पुण्य प्रदान करता है और जीवन में सुख, समृद्धि एवं मानसिक शांति लाता है। देव दीपावली अब केवल धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, कला और अध्यात्म का जीवंत उत्सव बन चुकी है। इस दिन उत्तराखंड और काशी दोनों ही ‘देवभूमि’ की पहचान को आलोकित कर देते हैं। हिदायत/ईएमएस 22 अक्टूबर 2025