लेख
23-Oct-2025
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कैसी विडंबना हैं की कहीं खुशी थी कहीं गम था कहीं खुशियाँ मनाई जा रही थी तो कहीं किसी के घर आँगन में मातम था l दीपावली पर दीये जल रहे थे कहीं लाशें जल रही थी l त्यौहार आते हैं लोग इंतज़ार करते हैं लेकिन घटना दुर्घटना घटित हो जाती हैं घरों के चिराग बुझ रहे हैं गाँव में युवाओं की मोतें हो रही हैं l संवेंदनहीन समाज के लोगों को कोई सरोकार नहीं है कौन जी रहा कौन मर रहा खुशियाँ मना रहे हैं समाज बहुत बेरहम हो चूका है lईश्वर की लीला भी कितनी अजीब है किसी क़ो नसीबवाला बना दिया तो किसी क़ो बदनसीब बना दिया हैl भाग्य अपना अपना है l कर्म अपने अपने हैं l ईश्वर किसी क़ो रुला रहा है किसी क़ो हँसा रहा है दुनिया में कोई दुखी है तो कोई सुखी है कहीं खुशी है कहीं गम है l कैसी विडंबना है यह की कहीं खुशी मनाई जाती है कहीं मातम पड़ा होता है l खुशी में कहीं दीये जल रहे हैं तो कहीं मोमबतियाँ जलाई जा रही हैं कहीं किसी अपने की मौत पर आंसू बह रहे हैंl संवेदनहीनता की हदें लांघी जा रही हैं सरेआम कत्लेआम हो रहे हैं हादसों व दुर्घटना में आदमी सड़क पर तड़फ रहा है लोग हाथ तक नहीं लगाते पास से गुजर जाते हैं बेचारे वहीं दम तोड़ देते हैँlप्रतिवर्ष त्योहार मनाये जाते हैं बेहिसाब पैसा खर्च किया जाता है l कल दिवाली का त्यौहार मनाया जायेगा लोगों ने पटाखे खरीदे करोड़ों रुपया स्वाहा हो जायेगा चारों तरफ प्रदूषण फैल जायेगा l कोई पैसे क़ो तरस रहा है कहीं अकूत पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है l केवल एक ही रात में पैसा राख बन गया l अमीरों ने हजारों रूपये के पटाखे जला दिए आतिशबाजी से कई घर जल गए कोई घायल हो गया किसी के हाथ जल गए हजारों पक्षी मारे जाते हैं विस्फोट से डर कर बेमौत ही काल क़े गाल में समा जाते हैं l दिवाली में मस्त लोगों क़ो इससे क्या मतलब वो तो मदिरा में मशगुल है lदुनियादारी है दुनिया का दस्तूर है किसी क़ो नहीं पड़ी होती किसी की सब मस्त हैं l अक्सर देखा गया है की हर साल त्योहार आते ही कई हादसे हो जाते हैं और असमय काल के गाल में समा जाते हैं हादसों में किसी के सिर से बाप का साया उठ जाता है तो किसी का सुहाग उजड़ जाता है बच्चे अनाथ हो जाते हैं अकाल मौतें हो जाती है l त्यौहार क़े दिन हुई मौत एक यादगार बन जाती है हर त्यौहार पर अपनों की याद आती है कमी खलती है lकहीं डीजे बजता है तो कहीं मातम छा जाता है l समाज के लोग मस्त हैं मस्ती में झूम रहे हैं मदिरापान हो रहा है डांस हो रहा है l कौन जी रहा कौन मर रहा कोई सरोकार नहीं है l व्हाट्सप्प व फेसबुक व इंस्टाग्राम पर व्यस्त हैं l मजदूर मजदूरी कर रहे हैं उन्हें त्यौहार में कोई दिलचस्पी नहीं है पापी पेट के लिए कमरतोड़ मेहनत कर रहे हैं ताकि परिवार भूखा न रहे l अमीरों क़े घर पकवान बन रहे हैं कहीं पनीर बन रहा तो कहीं चिकन बन रहा है l अमीर लोग लाखों रूपया खर्च कर रहे हैं ग़रीब दो वक़्त की रोटी क़ो तरस रहे हैं l आधुनिक समाज संवेंदनहीन हो चूका हैं संवेदनायें मर चुकी हैं l कोई किसी का नहीं है लोग अनावश्यक व्यस्त हैं l समाज बेरहम हो गया है लोग पथरदिल होते जा रहे हैं lइंसानियत मर चुकी है l गरीब भूखे मर रहे हैं कुत्ते बिस्कुट खा रहे हैं l अमीर लोग कुत्तों पर हजारों रुपया खर्च कर देते हैं लेकिन किसी ग़रीब के लिए एक रोटी नहीं दे सकतेl यह प्रलय की आहट है l ईमानदार भूखा मर रहा है बेईमान मजे लूट रहा है l कोई गरीब रोटी क़ो तरसता है तो किसी अमीर क़े पास रोटी खाने क़ो समय नहीं है l अमीर बीमारी से ग्रस्त है तो ग़रीब स्वस्थ है l अमीर लोग गरीबों क़ो आदमी ही नहीं समझते भेदभाव करते हैं आज इनसानियत का जनाजा निकल रहा है ।इंसानियत व मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है। समाज में सुधार की गुजाइस है। अगर समाज में इंसानियत जिन्दा रहेगी तो एक नए युग का सूत्रपात होगा । इंसानियत क़ो जिन्दा रखना होगा l जरूरतमंद की मदद कीजिये अपने कर्म सुधारिये l इंसान बनिये हैवान मत बनिये l मानव जीवन बहुत दुर्लभ है l अच्छे कर्म करते रहो फल की इच्छा मत कीजिये l इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं है इंसान बनो हैवान मत बनो मानव जीवन दुर्लभ है l मानव ही मानव से नफ़रत करता है लेकिन मानव ही मानव क़े काम आता है l अपने ही काम आते हैं अपनों क़ो समय दीजिये अपनों क़ो मत खोइये रिश्तों क़ो मत तोड़िये l त्यौहार आते रहते हैं लेकिन आदमी एक बार ही मरता है संवेदनशील बनिये हर दुःख सुख में समाज का साथ दीजिये अमर कोई नहीं रहेगा मौत सबको आनी है l संवेदना को जिन्दा रखो इंसान ही इंसान के काम आएगा l (यह लेखक के व्य‎‎‎क्तिगत ‎विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अ‎निवार्य नहीं है) .../ 23 अक्टूबर/2025