23-Oct-2025
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दोहा (ईएमएस)। कतर ने भी इस्लामी कूटनीति में अपनी पकड़ और भूमिका को और मज़बूत करने की दिशा में कदम बढ़ाया है। इस खाड़ी देश ने मिर्दिफ अल काशूती को अफगानिस्तान में पूर्ण राजदूत बनाने का फैसला किया है। वह पिछले तीन वर्षों से काबुल स्थित कतर दूतावास में वरिष्ठ राजनयिक के रूप में काम कर रहे थे। कतर ने यह नियुक्ति ऐसे वक्त पर की है जब वह अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच जारी तनाव में मध्यस्थ की भूमिका निभा रहा है, और दोनों देशों की अगली बैठक तुर्किये में होने वाली है। इधर भारत सरकार ने अफगानिस्तान में काबुल स्थित अपने तकनीकी मिशन को तत्काल प्रभाव से दूतावास में अपग्रेड करने का फैसला लिया है। भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस महीने अफगान विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी के भारत दौरे के दौरान काबुल में भारतीय तकनीकी मिशन को दूतावास का दर्जा देने की घोषणा की थी। दक्षिण एशिया और इस्लामी जगत में तेजी से बदलते समीकरणों के बीच भारत और कतर ने ऐसे कदम उठाए हैं, जिसने न केवल अफगानिस्तान बल्कि पूरे मुस्लिम वर्ल्ड में नए संकेत दे दिए हैं। भारत सरकार ने मंगलवार को काबुल में अपने मिशन को अपग्रेड कर फिर से ‘दूतावास’ का दर्जा देने की घोषणा की है। वहीं कतर के अमीर शेख तमीम बिन हमद अल थानी ने अफगानिस्तान में मिर्दिफ अली अल काशूती को अफगानिस्तान का नया राजदूत नियुक्त किया है। ये दोनों फैसले ऐसे समय में आए हैं, जब अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच अगली वार्ता तुर्की में होने वाली है और इस्लामी जियो पॉलिटिक्स में नए शक्ति समीकरण बनते दिख रहे हैं। मुत्तकी 9 से 16 अक्टूबर तक भारत में थे। इस दौरान वह दक्षिण एशिया के सबसे प्रभावशाली इस्लामिक इदारे ‘दारुल उलूम देवबंद’ का भी दौरा किया था। तालिबान की वैचारिक जड़ें जो प्रतीकात्मक रूप से इस भारतीय इदारे से भी जुड़ी मानी जाती हैं। मुत्तकी के दौरे के दौरान कई अहम मुद्दों पर चर्चा हुई, जिसमें अफगानिस्तान में भारत की विकास और मानवीय सहायता की भूमिका भी शामिल थी। वहीं अब अफगानिस्तान में दोबारा से दूतावास शुरू करने पर भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा है कि यह फैसला भारत और अफगानिस्तान के बीच द्विपक्षीय रिश्तों को ‘हर क्षेत्र में और गहराई तक’ ले जाने की दिशा में एक अहम कदम है। भारत पहले ही अफगानिस्तान में कई विकास परियोजनाओं और स्वास्थ्य सहायता कार्यक्रमों का हिस्सा रहा है और अब दूतावास के दोबारा एक्टिव होने से ये संबंध औपचारिक रूप से और मजबूत होंगे। जानकारों का मानना है कि भारत और कतर के ये कदम एक बड़े भू-राजनीतिक संदेश का हिस्सा हैं। यह संकेत है कि इस्लामी वर्ल्ड की धुरी अब सिर्फ तुर्की या पाकिस्तान के इर्द-गिर्द नहीं घूमेगी। तुर्की खुद को इस्लामी दुनिया का नेता बनाने की कोशिश करता रहा है। वहीं पाकिस्तान अफगानिस्तान में अपनी प्रभावशाली भूमिका बनाए रखना चाहता है। हालांकि भारत और कतर की बढ़ती उपस्थिति से इन दोनों देशों का चिंतित होना लाजमी माना जा रहा है।भारत ने जहां मुत्तकी के दौरे और देवबंद जैसी इस्लामी संस्था के माध्यम से एक ‘धार्मिक संवाद की कूटनीति’ को आगे बढ़ाया है। वहीं कतर ने अपनी ‘मध्यस्थ डिप्लोमेसी’ के जरिये इस्लामिक देशों में तुर्की की बढ़ती दखलअंदाजी को संतुलित करने की कोशिश की है। यह दोनों घटनाएं बताती हैं कि दक्षिण एशिया में इस्लामी विश्व की नई धुरी बन रही है, जिसमें भारत, कतर और अफगानिस्तान की भूमिका अहम होती जा रही है। वीरेंद्र/ईएमएस 23 अक्टूबर 2025