नई दिल्ली(ईएमएस)। बीते रोज भारत ने एक ऐसा वैज्ञानिक खो दिया जिसने अंतरिक्ष की दुनिया में एक से बढकर एक काम किए। डॉ चिटनिस ने ग्रामीण भारत में टीवी क्रांति लाने वाले अग्रदूतों में से एक थे। वे इसरो के संस्थापकों में से भी एक थे। उन्होंने ही मिसाइल मैन एपीजे अब्दुल कलाम को परखा था। बाद में कलाम ने देश के साथ ही दुनिया भर में भारत का परचम बुलंद किया था। वे भारत के राष्ट्रपति भी बने थे। आपने भारत के पहले अंतरिक्ष कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार करने में अहम भूमिका निभाई थी। विक्रम साराभाई के विश्वस्त सहयोगी के रूप में उन्होंने न केवल संस्थान निर्माण में बल्कि टेक्नोलॉजिकल इनोवेशनमें भी बड़ा योगदान दिया। साइंस और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में डॉ चिटनिस का अभूतपूर्व योगदान रहा है। उनके भारत की विज्ञान यात्रा की चर्चा पूरी नहीं हो सकती है। 1985 में विज्ञान और राष्ट्रनिर्माण में उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। कम ही लोग जानते हैं कि एपीजे अब्दुल कलाम के करियर की दिशा बदलने में भी डॉ। चिटनिस का अहम हाथ था। 1962 में उन्होंने युवा कलाम का बायोडाटा स्वयं पढ़ा और उन्हें नासा के प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए रिकमेंड किया। इस एक निर्णय ने भारत की एयरोस्पेस यात्रा की दिशा ही बदल दी।1989 में सेवानिवृत्त होने के बाद डॉ चिटनिस पुणे चले गए। वहां उन्होंने सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय में एजुकेशनल मल्टीमीडिया रिसर्च सेंटर की स्थापना में मदद की। उन्होंने दो दशकों तक विज्ञान शिक्षा और विकास संचार के क्षेत्र में कार्य जारी रखा। इस वर्ष उनके शताब्दी वर्ष पर पुणे के भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान और मुंबई के नेशनल सेंटर फॉर साइंस कम्युनिकेटर्स ने ‘पायनियरिंग स्पेस, साइंस, पॉलिसी एंड इनोवेशन’ शीर्षक से सम्मेलन आयोजित किया। इसमें वरिष्ठ इसरो वैज्ञानिकों से लेकर युवा शोधकर्ताओं तक ने भाग लिया और भारत की वैज्ञानिक दृष्टि के इस पुरोधा को श्रद्धांजलि दी। डॉ चिटनिस भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति के सदस्य सचिव थे, जिसने आगे चलकर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन का रूप लिया। कार्यक्रम की शुरुआत, रिमोट सेंसिंग एप्लिकेशन की स्थापना और अंतरिक्ष आधारित संचार परियोजनाओं को आकार दिया, जिसने दूरदराज के भारतीय गांवों तक टेलीविजन और दूरसंचार की पहुंच सुनिश्चित की। 1981 से 1985 तक वे अहमदाबाद स्थित स्पेस एप्लिकेशन सेंटर के निदेशक रहे। अपने पूर्ववर्ती प्रो यशपाल के बाद उन्होंने इस संस्थान को नई दिशा दी। प्रख्यात वैज्ञानिक डॉ एकनाथ वसंत चिटनिस का 100 साल पूरे होने के दूसरे दिन निधन हो गया। इससे पहले उनका 100वां जन्मदिन मनाया गया था। बीते कुछ दिनों से अस्वस्थ चल रहे थे और उनका दिल का दौरा पड़ने निधन हुआ था। 25 जुलाई 1925 को जन्मे डॉ चिटनिस भारत की उस प्रथम पीढ़ी के वैज्ञानिकों में थे, जिन्होंने देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम की नींव रखी। उन्होंने केरल के थुंबा में भारत के पहले रॉकेट प्रक्षेपण केंद्र (थुंबा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन) की पहचान की। 1960 के दशक की शुरुआत में उन्होंने उस स्थल का सर्वेक्षण किया और विक्रम साराभाई को इसके भूमध्य रेखीय स्थान की रणनीतिक अहमियत के बारे में समझाया। यही निर्णय भारत के आने वाले दशकों के अंतरिक्ष विकास का आधार बना। वीरेंद्र/ईएमएस/23अक्टूबर2025