अंतर्राष्ट्रीय
30-Oct-2025


काठमांडु(ईएमएस)। नेपाल में अंतरिम सरकार की वैधता और संसद भंग होने से उत्पन्न हुए संवैधानिक संकट को लेकर भारत के सरकारी सूत्रों ने गंभीर चिंता व्यक्त की है। सरकारी सूत्रों की जानकारी के अनुसार, काठमांडू में पैदा हुआ यह सत्ता का शून्य संभावित रूप से चीन द्वारा इस्तेमाल किया जा सकता है। भारतीय एजेंसियों का मानना है कि नेपाल में चुनाव में किसी भी तरह की देरी या न्यायिक गतिरोध से भारत विरोधी ताकतों को लाभ मिल सकता है। यह संकट तब शुरू हुआ जब राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने अंतरिम सरकार की सिफारिश पर प्रतिनिधि सभा भंग कर दी। इससे निचले सदन का कार्यकाल समय पूर्व समाप्त हो गया और नए चुनाव जरूरी हो गए। राजनीतिक दलों व विशेषज्ञों ने इस कदम की कड़ी आलोचना की। उनका कहना है कि अंतरिम सरकार को संसद भंग करने की सिफारिश का संवैधानिक अधिकार नहीं था। मामला नेपाल के सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा, जहां मुख्य न्यायाधीश प्रकाश मान सिंह राउत की अगुवाई में संवैधानिक पीठ गठित हुई। कई याचिकाओं में प्रधानमंत्री सुशीला कार्की की नियुक्ति को असंवैधानिक ठहराने की मांग की गई। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश को प्रधानमंत्री बनाना अनुच्छेद 132(2) का उल्लंघन है। राष्ट्रपति का संसदीय सिफारिश बिना अंतरिम सरकार गठित करना अनुच्छेद 74 व 76 का उल्लंघन है। संसद भंग करने का फैसला भी असंवैधानिक है क्योंकि इसमें किसी संवैधानिक प्रावधान का उल्लेख नहीं किया गया। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश को अंतरिम सरकार सौंपना राष्ट्रपति पद पर राजनीतिक कब्जे को दर्शाता है, जो शक्तियों के पृथक्करण को कमजोर करता है। अदालत में वकीलों ने अंतरिम सरकार की वैधता पर तीखे सवाल उठाए। एक जानकारों ने कहा कि सरकार में चुनाव कराने की वैधता व इरादे की कमी है और शक्ति सड़कों से हड़पी नहीं जा सकती। राष्ट्रपति पर संवैधानिक सीमाओं से परे जाने का आरोप लगाया और सरकार की शक्तियां सीमित करने के लिए अंतरिम आदेश की मांग की। एडवोकेट शेर बहादुर केसी व एकराज पोखरेल ने सुशीला कार्की की नैतिक असंगति व कानूनी अपात्रता पर सवाल उठाए तथा गैर-सांसद द्वारा संसद भंग करने की स्थिति को बेतुका बताया।न्यायमूर्ति सपना प्रधान मल्ला ने वकीलों से अंतरिम आदेश पर फोकस करने को कहा, जबकि न्यायमूर्ति कुमार रेगमी ने पूछा कि सरकार बनने के बाद दूसरा प्रशासन क्यों नहीं बनाया गया। संवैधानिक पीठ अब अंतरिम आदेश पर फैसला करेगी। न्यायालय ने राष्ट्रपति पौडेल व प्रधानमंत्री कार्की से नियुक्ति व संसद भंग के संवैधानिक आधार पर लिखित जवाब मांगा है।भारतीय सूत्र इस टकराव को सत्ता शून्य मानते हैं, जिसका लाभ चीन उठा सकता है। एजेंसियों को आशंका है कि अस्थिरता से सीमा प्रबंधन, सीमा पार व्यापार व खुफिया सहयोग प्रभावित होंगे। चुनाव में देरी या गतिरोध से भारत विरोधी ताकतें मजबूत होंगी। सूत्रों के अनुसार, चीन न्यायिक व नौकरशाही माध्यमों से लोकतांत्रिक संस्थाओं को पंगु बना सकता है। पौडेल का पूर्व मुख्य न्यायाधीश को अंतरिम सरकार सौंपना राष्ट्रपति पद पर राजनीतिक कब्जे का संकेत है, जो नेपाल की कमजोर संवैधानिक व्यवस्था को उजागर करता है। वीरेंद्र/ईएमएस/30अक्टूबर2025 ------------------------------------