ज़रा हटके
04-Nov-2025
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वाशिंगटन(ईएमएस)। गहन अमेज़न जंगलों में बसी आदिवासी महिलाएं अब गर्भधारण से डरने लगी हैं। जीवनरेखा मानी जाने वाली नदियां अब पानी नहीं, ज़हर बहा रही हैं। अवैध सोने की खदानों से पारा नदी में घुल गया, जो गर्भस्थ शिशुओं के लिए घातक साबित हो रहा है। मुंडुरुकु समुदाय की नेता एलेसेंड्रा कोराप ने दर्द भरी आवाज़ में कहा, मां का दूध अब पवित्र नहीं रहा। साई सिन्जा गांव में तीन साल की रैनी केटलेन पारे की पहली शिकार बनी। उसकी मांसपेशियां इतनी ऐंठ गईं कि सिर तक नहीं उठा पाती। क्षेत्र के 36 पीड़ितों में अधिकांश बच्चे हैं, जिन्हें न्यूरोलॉजिकल विकार हो गए। रैनी के पिता रोसील्टन सॉ खनिक हैं, परिवार के लकड़ी के एक कमरे वाले घर में बुजुर्ग रोसेनिल्डो बताते हैं- खतरा पता था, फिर भी मजबूरी में खनन। हर हफ्ते 30 ग्राम सोना निकालकर गुज़ारा मुश्किल से होता है। परिवार मुख्य भोजन ‘सुरुबिम’ मछली खाता है, जो बियोम नदी में पारा जमा करती है। पिछले वर्षों में सरकारी स्वास्थ्य अधिकारियों ने दर्जनों समान मामलों की रिपोर्ट दी, लेकिन जांच व चिकित्सा सुविधाओं की भारी कमी से सटीक कारण पता लगाना असंभव। एक स्थानीय नर्स कहती हैं, स्वास्थ्य निर्देशों के बावजूद मछली छोड़ नहीं सकते, वरना भूखे मर जाएंगे। पारा मछलियों को दूषित कर महिलाओं के प्लेसेंटा, स्तन का दूध और बच्चों में खतरनाक स्तर तक पहुंच गया। शोधकर्ता 2026 तक चलने वाले बहु-वर्षीय अध्ययन में ब्रेन विकृति से मेमोरी समस्याओं तक पारे की तंत्रिका क्षति पर डेटा जुटा रहे हैं। राष्ट्रपति लूला दा सिल्वा ने 2023 से हज़ारों खनिकों को हटाया, किंतु बचा पारा हवा, पानी, मिट्टी में घुलकर अविघटनीय हो गया। स्वास्थ्य मंत्रालय ने पारे की निगरानी बढ़ाई, अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया और स्वच्छ जल स्रोतों में निवेश किया, पर समस्याएं जस की तस। अगले महीने अमेज़न में कॉप-30 ‘वन कॉप’ सम्मेलन होगा, जहां अवैध खनन जैसे मुद्दों पर विश्व नेताओं का ध्यान आकर्षित किया जाएगा। ट्रॉपिकल रेनफॉरेस्ट और उसके निवासियों के लिए यह निर्णायक मौका है। पारे का ज़हर न केवल स्वास्थ्य, बल्कि संस्कृति और अस्तित्व को मिटा रहा है। अमेज़न की पुकार अब वैश्विक कार्रवाई मांग रही है। वीरेंद्र/ईएमएस 04 नवंबर 2025