बिहार में पहले चरण के मतदान में मतदाताओं ने बम्पर वोटिंग किया। कई वर्षों के बाद बिहार में64.66मतदान हुआ। 18 जिलों में 121विधानसभा सीटो पर1314 प्रत्याशियो के भाग्य ईवीएम में बंद हो गए। पहले चरण में 121 आवंटित विधानसभा क्षेत्रों तथा 18 जिलों में मतदान हुआ। लगभग 64.66 % मतदान दर्ज हुआ है। यह राज्य के इतिहास में सबसे अधिक दर है। पिछली विधानसभा चुनाव में इसी चरण में लगभग 57 % से कम मतदान हुआ था। अधिकांश क्षेत्रों में 2020 से तुलना में 8 % या अधिक की बढ़त दर्ज की गई। भारी मतदान के बाद किसी भी दल की जीत हार का फैसला या निष्कर्ष नही निकाला जा सकता है। बिहार चुनाव में सभी दलों के नेताओ, कार्यकर्ताओ और स्टार प्रचारकों ने कड़ी मेहनत कर प्रचार में ऐड़ी छोटी का जोर लगा दिया। लेकिन मतदान में बढ़ते के दो पहलू होते है। उसके पीछे अनेक सम्भावनाओ को नजर अंदाज नही कर सकते है। बिहार चुनाव में महिला मतदाताओं की भागीदारी विशेष रूप से उल्लेखनीय रही है। इस तरह स्पष्ट है कि इस बार मतदान तीसरे-दल का उत्साह या सक्रिय भागीदारी काफी बढ़ी हुई थी। लेकिन उच्च मतदान के बदलाव हार जीत नक्की नही की जाती है। उच्च मतदान दर अक्सर संकेत देती है कि मतदाता अधिक सक्रिय हैं, लेकिन इसका अर्थ अनिवार्य रूप से सत्ता-विरोधी लहर नहीं होता। इस बढ़े हुई मतदान दर ने यह सवाल उँचा किया है कि क्या यह संकेत है कि वर्तमान सरकार तथा गठबंधन एनडीए को समर्थन मिला है या फिर जनता बदलाव चाहती है। इसी तरह गुजरात चुनाव में भी देखने को मिला था। लेकिन बढ़त मतदान से गुजरात सतारूढ़ की विजय हुई और करीब 155 सीटो पर जीत प्राप्त की गई थी। 2020 में मतदान दर बढ़ा था लेकिन सत्ता-विरोधी लहर को पूरी तरह नहीं बदल पाई थी। यही हाल इस बार भी हो सकता है। केवल बढ़ी मतदान दर से यह तय नहीं कि कौन आगे होगा, किन्तु यह संकेत देती है कि मतदाता जागरूक हैं। मतदाताओ को प्रलोभन देकर खरीदा नही जा सकता है। वोटर अपने अच्छे बुरे का निर्णय स्वतः करने में सक्षम है। देश के हित मे मतदान करने वाले विरले ही होते है। बिहार में पहले चरण का उन्माद शांत जरुर हुआ है लेकिन अभी दूसरे चरण को होने वाले चुनावों पर राजनीतिक दलों की नजरें गढ़ी हुई है। क्योकि पहले चरण में इतनी भागीदारी ने राजनीतिक दलों को सतर्क कर दिया है। उन्हें समझना होगा कि मतदान केवल पंजीकरण नहीं, बल्कि जनभावना का प्रतिबिंब भी होता है। मतदाताओ के मन मे राज्य और क्षेत्र के लिए किसीबिंदु पर मंथन चलता रहता है। और प्रचार के दौरान मतदाता अपनी चेहती पार्टी और विधायक को ध्यान में रखकर वोट करते है। उन्हें यह भी मालूम है कि किसी अयोग्य प्रत्याशी को मतदान किया गया तो समय और वोट दोनो नष्ट करने जैसा होगा। कौन-कौन से दल एवं गठबंधन इस बढ़त से लाभ उठा सकते हैं। एनडीए के पक्ष में यह उक्ति है कि “बढ़े मतदान का अर्थ है उनका जनसमर्थन जो पहले से था। उदाहरण के लिए, उनकी ओर से कहा गया है कि बढ़ी भागीदारी ने सरकार-सुधार कार्यक्रमों को स्वीकार्यता दी है। यदि एनडीए सफल होती है तो यह पुष्टि होगी कि उनका विकास-विरोधी एजेंडा काम कर गया है, और मतदाताओं ने स्थिरता को महत्व दिया है। महागठबंधन का दृष्टिकोण यह है कि यह मतदान दर बदलाव की चाहत दिखाती है”। उन्होंने यह दावा किया है कि मतदान बढ़ा-भागीदारी ने पुरानी व्यवस्थाओं से असंतोष को उजागर कर दिया है। लेकिन सभी कयासों के बाद पहले चरण के मतदान के पूर्व राहुल का चुनाव आयोग पर जूठा आरोप मतदाताओ के मन मे कांग्रेस के प्रति ओर अधिक वैमनस्य पैदा कर दिया है। बढ़ते मतदान की वजह यह है कि सतारूढ़ भाजपा को ही हम वापस लाने के लिए सहमत है। महागठबंधन के घोषणा पत्र वैसे ही जनता ने कागज का पुलिंदा समझकर नकार दिया है। रही कसर राहुल के जूठे मुद्दे ने पूरी कर दी। इस बढ़ी भागीदारी को अपने पक्ष में मोड़ने में सफल रहे, तो यह संकेत होगा कि जनता ने पूरा समर्थन एनडीए के पक्ष में दिया है। यदि एनडीए को इस पहले चरण में मजबूत प्रदर्शन दिखे, तो उनका मनोबल बड़ा होगा और वे पूरा राज्य में उसी लय को बनाए रखने का अवसर पायेंगे। इस तरह उनकी सरकार बनने की सम्भावना बढ़ सकती है। लेकिन यदि महागठबंधन-संघ ने बढ़ी मतदान दर को सक्रिय रूप से भू-भागों में लागू किया हो, तो वे एनडीए के लिए चुनौती खड़ी कर सकते हैं। फिर भी जनाधार ऐसे कोई संकेत नही दे रहे है। मतदाता जाग चुका है। पहला चरण अभी सिर्फ संकेत है, अंतिम फैसला दूसरे चरण तथा मतगणना के बाद स्पष्ट होगा। लेकिन यदि मतदान बढ़ा है, अपराध-प्रभाव कम हुआ है, तो यह सामान्य तौर पर मौजूदा सरकार के लिए अलार्म की घंटी हो सकती है। इसलिए, पूर्वानुमान यही है कि एनडीए के लिए सम्भावना दिख रही है, क्योंकि उन्होंने पहले चरण में बेहतर संगठन और त्वरित प्रतिक्रिया दिखाई है, लेकिन महागठबंधन को पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता है। महागठंबधन के लिए जूठे आरोप और विकास को नजरअंदाज करना ही बड़ा कमजोर पहलू होगा। प्रथम चरण के 121 सीटों का परिणाम पूरे 243 सीटों पर लागू नहीं होगा। क्योकि दूसरे चरण के 122 सीटें भी अहम है। अनिवार्य रूप से यह बदलाव नहीं, यह जागरूक जनता का बेहतर मतदान सुविधा” “उत्तेजित अभियान” आदि का संकेत भी हो सकती है। मतगणना तक प्रायोगिक आंकड़ों व उपजी बहस को अंतिम परिणाम नहीं समझना चाहिए। अक्सर मतदान पैटर्न व मत-बदलाव बीच का फासला जटिल होता है। पहले चरण में 64-65 % के आसपास मतदान दर ने बिहार के चुनावी परिदृश्य को गतिशील बना दिया है। यह संकेत है कि मतदाता इस बार अधिक सक्रिय हैं, उनकी भागीदारी बढ़ी है। इस बढ़त का अर्थ यह हो सकता है कि:सरकार-विपक्ष दोनों के लिए जागरूक मतदाता एक नया तथ्य बन कर उभरे हैं। यदि नितीश कुमार-नीतियों या एनडीए के काम-काज को जनता ने स्वीकार किया है, तो एनडीए की सरकार बनने की सम्भावना उज्जवल है। इसके विपरीत, यदि जनता बदलाव चाहती है और महागठबंधन ने मैदान तैयार किया है, तो वहाँ से बदलाव की सम्भावना है। लेकिन मतदाताओ के रुझान के अनुसार ऐसा कुछ नही दिखाई दे रहा है कि महागठबंधन के लिए शुभ संकेत है। अभी-अभी बढ़ता मतदान स्थायी परिणाम नहीं तय करता है। दूसरे चरण का मतदान, मतगणना एवं क्षेत्र-विशिष्ट चलन अंतिम तस्वीर बनाएँगे। अतः, इस पहले चरण की बढ़ी भागीदारी एक महत्वपूर्ण संकेत है, लेकिन यह अलग-अलग क्षेत्रों में किस दिशा में जा रही है यह अब अगले कुछ दिनों में स्पष्ट होगा। हमे इंतज़ार करना होगा। (L 103 जलवंत टाऊनशिप पूणा बॉम्बे मार्केट रोडनन्दालय हवेली सूरत वरिष्ठ पत्रकार,साहित्यकार स्तम्भकार) ईएमएस / 08 नवम्बर 25