दिगंबर जैन मुनि आर्थिकाएं अहिंसा, सत्य, आचोर्य, ब्रह्माचर्य एवं अपिरग्रह आिद अनेक महव्रतों के पासक होते हैं वे अपने साथ कमंडल, पिच्छि एवं धार्मिक ग्रंथों, पुराणों को ही रखने के अधिकारी होते हैं। संसार की अन्य समस्त वस्तुओं, घर, परिवार का उन्हें पूर्ण रूपेण त्याग होता है। पिच्छि एवं कमंडल दिगंबर मुनि के स्वालंबन के दो हाथ होते है। पैरो की सफाई, शुध्दि हेतु कमंडल की आवश्यकता होती है। पिच्छि दिगंबर साधु का अत्याधिक महत्वपूर्ण उपकरण होता है। वर्ष भर प्रति समय उपयोग होने से पिच्छि कमजोर हो जाती है अत: प्रत्येक वर्ष चातुर्मास के उपरांत सभी दिगंबर जैन साधुओं को विशेष सात्विक व्यक्तियों द्वारा नई पिच्छि प्रदान की जाती है। पिच्छि का महत्व- पिच्छि के द्वारा ही नग्न साधु एवं आर्थिका को त्यागी साधु के रूप में देखा जाता है। चरित्र पालन कायोत्सर्ग, (जाप) आने-जाने में, बैठने-उठने में, साधु हेतु पिच्छि अत्यधिक उपयोगि होती हैं। अहिंसा महाब्रती जब भी किही स्थान में बैठते है, तब वे उस स्थान को इसी पिच्छि से बुहारकर दृश्य-अदृश्य सूक्ष्मतम जीवाणुओं की रक्षा करते हुए उन्हें अलग कर देते हैं। दिगंबर जैन सम्प्रदाय में मुनि, ऐलक, झुल्लक, आर्थिका माताएं पिच्छि का उपयोग करते हैं। यह परंपरा प्राचीन काल से श्रमव परंपरा के अनुसार चली आ रही है। पिच्छि का निर्माण- दिगंबर जैन साधु हेतु पिच्छि का निमार्ण मयूर के सुंदर पंखा से होता है। अन्य पसी के पंखों का उपयोग इस हेतु नहीं िकया जा सकता। अन्य पंख नरम नहीं होते। मयूर पंख के द्वारा ही मुनि हिंसा , परिग्रह आदि से बच सकते है। जिस तरह शिशिर रितु में वसों के जीर्ण पत्ते स्वयं गिर जाते हैं, उसी तरह वषर् में एक बार मयूर अपने पुराने पंखों को कार्तिक माह में स्वयं स्वेच्छा से त्याग कर देता है, अत: वे उसके शरीर से अपने आप जमीन से गिर जाते हैं, जिन्हें एकत्रित कर ही पिच्छि का निर्माण किया जाता है। पंख प्राप्ति हेतु न ही मोर की हिंसा की जाती है न ही उन्हें किसी तरह का कष्ट पहुंचाया जाता है। अत: दिगंबर साधु के उपयोग में आने वाली पिच्छि पूर्णत : अहिंसक उपकरण हैं। पिच्छि के गुण- मयूर के पंखों से बनाई गई पिच्छि अत्याधिक मृदु होती है। इसके पंख का भाग आंख में भी लग जाए तो भी आंख को किसी तरह का कष्ट नहीं होता। ऐसी पिच्छि से जैन दिगंबर साधु उस स्थान को साफ करते हैं जहां वे बैठते हैं- चलते हैं। तात्पर्य यह होता है कि न दिखने वाले सूक्ष्म जीवाणुओं को बिना कष्ट पहुंचाय वहां से अलग कर दिया जाय। इस तरह जीव हिंसा से साधु स्वयं को बचा लेते हैं। पिच्छि धूल को अहटा नहीं करती है। यह अत्याधिक सुकुमार होती है। पिच्छि का वजन बहुत हल्का होता है जिसे साधु आसानी से उपयोग कर सकते है। पिच्छि का उपयोग कब- दिगंबर जैन साधु कमंडल के साथ पिच्छि को सदैव अपने साथ रखते हैं। वे दुनिया की अन्य किसी भी वस्तु से संबंध नहीं रखते सिर्फ धार्मिक ग्रंथों, पुराणों के अतिरिक्त। दिगंबर जैन साधु पिच्छि का उपयोग वंदना, सामायिक, प्रायश्चित, रग्णदशा, आहार समय, आने-जाने में, गमन में किया जाता है। बैठने, चलने, शास्त्रों को स्पर्श करने के पूर्व उनके पृष्ठों को पलटने में पिच्छि से स्वान को साफ किया जता है, जिससे सूक्ष्म जीवाणु को अलग किया जा सके। अपने प्रिय भक्तों को आशीर्वाद भी पिच्छि द्वारा कभी-कभी मिल जाता है, जिसे भक्तगण अपना परम सोंभाग्य मानते है। हमने कई बार हमारे शरीर में सूक्ष्म जीवाणु के चलने का अनुभव किया होगातथा बेचेन होकर हम जैसे ही अपने हाथ की उंगलियों से उसे हटाने का प्रयास करते हैं तो कई बार हम पाते हैं कि वह जीवाणु वहीं मसल गया और मर गया। जैन साधु के शरीर में सूक्ष्म जीवाणु जब बैठते हैं, तब वे अपने शरीर को पिच्छि से ही हल्के हाथ से साफ कर लेते हैं, फलस्वरूप सूक्ष्म जीवाणु मयूर पंख के स्पर्स से आसानी से अपना स्थान छोड़ देता है जिससे उसके जीवन को किसी तरह की हानि नहीं होती। पिच्छि उपयोग संबंधी विशेष बातें- पिच्छि के माध्यम से जैन साधु अपने अहिंसा व्रत का निर्वाह अच्छी तरह से कर लेते हैं। इसलिये सदैव साथ रखना अति आवश्यक है। यदि पिच्छि के बिना साधु सात कदम भी चल लेते हैं, तो उन्हें प्रायश्चित स्वरूप अतिरिक्त जाप देना पड़ती है। यिद जैन साधु को दो कोस बिना पिच्छि के चलना पड़े तो उन्हें विशेष शुध्दि एवं उपवास (भोजन-जल कुछ भी नहीं) दोनों प्रायश्चित स्वरूप करना पड़ता है। आहार के समय पिच्छि को थोड़ा दूर रखा जाता है। क्योंकि आहार समय पिच्छि स्पर्श से अंतराय आ जाता है, तात्पर्य फिर वे भोजन-पानी ग्रहण नहीं करते। साधु को पिच्छि कौन दे सकता- साधु को एक विशेष समारोह में जो वषर् में चातुर्मास की समाप्ति पर आयोिजत होता है- विशेष जीवन चर्या से रहने वाले, संयमित, सात्विक ब्रती जो सरल एवं धार्मिक, श्रेष्ठ श्रावक गृहस्थ होता है वहीं साधु को नई पिच्छि प्रदान कर सकते है, तथा साधु के साधु को नई पिच्छि प्रदान कर सकते है, तथा साधु के उपयोग की गई पुरानी पिच्छि भी वैराग्य ब्रह्मचर्य तथा अत्यािधक सरल धार्मिक विचारधारा वाले व्यक्ति को ही प्रदान की जाती है, जिसे पाक व्यक्ति अपने को धन्य मानते हैं। पिच्छि लेने एवं देने वाले श्रेष्ठ व्यक्तित्व का चुनाव साधु स्वयं करते है। .../ 8 नवम्बर/2025