लेख
09-Nov-2025
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सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी करते हुए विधि आयोग से अध्ययन कर रिपोर्ट सौंपने को कहा गया है।देश मे अंग्रेजो के जमाने के भूमि कानून आज के समय मे अपेक्षा मुजब ठीक नही है।अदालत ने केस की जिरह पर टिप्पणी करते हुए कहा कि सम्पति खरीदना आघात जैसा है।आज कोई भी व्यक्ति पुष्तैनी जमीन मालिक पर अपना हक अदा कर सकता है।गांवो में दबंगों द्वारा अक्सर ऐसी घटना प्रकाश में आती है कि जूठी चिट्टी बनाकर उस पर एक दो दबंगो के हस्ताक्षर कराकर जमीन का मालिकाना हक अदा करने जैसे मामले सामने आ रहे है।कोर्ट में ब्लोकचेन आधारित भूमि स्वामित्व प्रणाली विकसित करने के लिए जोर दिया।कोर्ट ने संस्थागत सुधार की भी जरूरत पर जोर दिया।देश मे अंग्रेजो द्वारा बनाया गया तीन सौ वर्ष पुराना कानून की समीक्षा कर विधि आयोग ऐसे घटिया कानूनों को बंद कर भूमि कानूनों में सरलीकरण और भूमाफियागिरी पर सरकार सख्त रवैया अपनाने पर चर्चा करने की जरुरत है।कोर्ट ने कहा कि 66 प्रतिशत विवाद सम्पत्ति से जुड़े है।भारी मात्रा में भूमि विवादों के लिए मौजूदा सिस्टम मुख्य जिम्मेदार बताते हुए विधि मंत्रालय को अध्ययन करने का निर्देशन दिया।देश मे गांवो में सम्पति को लेकर परिवार में झगड़े होते है।उसमें एक दो की जान भी चली जाती है।यह हम देख रहे है।कोर्ट ने कहा कि पुराना कानूनी ढांचा उपेक्षित करने वाला है ।क्योंकि दस्तावेज,अतिक्रमण, बिचौलियों की भूमिका आदि असमय चिंता बढ़ाने वाले है।कानूनों में बदलाव करने की जरुरत है।आज अनेक सम्भावना से मुह मोड़ने का समय नही है।सरकार ने डिजिटल इंडिया,लैंड रिकार्ड मॉडर्नाइजेशन प्रोग्राम के अच्छे कार्यो की समीक्षा की गई। भारत में भू-अचल सम्पत्ति का कारोबार तथा उसके कानूनी अभिलेख आदि वर्षों से विवादों, मुकदमों और अनिश्चितताओं से जूझ रहे हैं। हालाँकि कई आधुनिक सुधार हुए हैं, फिर भी एक बड़ी चुनौती यह है कि अधिकांश कानून अभी भी ब्रिटिश राज के समय में बने हैं। इस पृष्ठभूमि में 7 नवंबर 2025 को एससी ने एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है जिसमें इन पुराने ढर्रे के कानूनों की अक्षमता पर प्रकाश डाला गया है तथा सम्पत्ति पंजीकरण प्रणाली में आधुनिक टेक्नोलॉजी की उपयोगिता जरूरी बताया। विशेष रूप से ब्लॉकचेन को अपनाने का निर्देश दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने नोट किया है कि देश की संपत्ति लेन-देन व्यवस्था अभी भी लगभग एक शताब्दी पुराने ब्रिटिश-कालीन कानूनों पर आधारित है। उन कानूनों का स्वरुप, प्रक्रियाएँ एवं अवधारणाएँ उस समय के सामाजिक,आर्थिक और तकनीकी माहौल के अनुरूप थीं, लेकिन आज के डिजिटल, तेजी से बदलते और बड़े पैमाने के लेन-देनों के युग में वो पर्याप्त नहीं हैं। अदालत ने कहा है कि पंजीकरण और स्वामित्व के बीच एक बड़ी समस्या है। उदाहरण के लिए, एक विक्रय-घोषणा को पंजीकृत करना यह नहीं सुनिश्चित करता कि विक्रेता के पास सचमुच उस संपत्ति का ‘मार्केटेबल टाइटल’ हो। पंजीकरण केवल उस दस्तावेज़ का सार्वजनिक अभिलेख बनाता है, लेकिन स्वामित्व की पुष्टि नहीं करता। इसका परिणाम यह हुआ है कि संपत्ति खरीदने वाला व्यक्ति लंबे समय तक पुराने दस्तावेज़ों की श्रृंखला खंगालता है। कभी-कभी 30 साल से भी अधिक पुरानी लेन-देनों तक — यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोई छुपा हुआ बंधक, दावा, एनकम्ब्रेंस न हो। कोर्ट के संज्ञान में आया है कि अनुमानित रूप से कहा है कि सम्पत्ति विवाद भारत में लगभग 66 % नागरिक दीवानी मुकदमों का हिस्सा हैं। यह स्थिति सिर्फ व्यक्तिगत स्तर पर नहीं प्रतिकूल है बल्कि न्यायपालिका, पंजीकरण अधिकारी, संपत्ति खंड तथा निवेश माहौल के लिए भी बोझ बन रही है।संपत्ति लेन-देनों में अक्सर नकली दस्तावेज़, गलत पंजीकरण, संदिग्ध वृद्धि आदि की शिकायतें आई हैं। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पुराने ढांचे में मध्यस्थों की भूमिका, देरी, जटिलता और पारदर्शिता की कमी प्रमुख कमजोरियाँ हैं। कोर्ट ने कहा है कि ज़माना बदला है। पंजीकरण-प्रणाली को भी बदलना होगा। व्यवहार में इसे सम्पत्ति क्रय आसान नहीं, बल्कि जैसाकि लोग कह रहे हैं ‘ट्रॉमेटिक’ कहा गया है। विशेष रूप से, SC ने केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों को कहा है कि ब्लॉकचेन-प्रौद्योगिकी को अपनाया जाए ताकि पंजीकरण-और-टाइटल की समस्या का निवारण हो सके — उदाहरण के लिए, पंजीकरण प्रणाली को अपरिवर्तनीय, पारदर्शी ट्रेस-योग्य बनाया जाए। कोर्ट ने Law Commission of India को आदेश दिया है कि वह इस विषय पर समग्र अध्ययन करे। जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों, टेक्नोलॉजी विशेषज्ञों, हितधारकों से परामर्श लिया जाए और एक रिपोर्ट तैयार की जाए जिसमें नए संशोधनों की रूपरेखा हो।बिहार पंजीकरण नियम को अमान्य कहा है, जिसमें विक्रेता के नाम पर पहले म्युटेशन या जमाबंदी का प्रमाण देना अनिवार्य था। SC ने इसे Registration Act के सामने टिकाऊ नहीं माना। ब्लॉकचेन एक वितरित-लेज़र तकनीक है जिसमें लेन-देनों का अभिलेख नेटवर्क के कई प्रतिभागियों द्वारा साझा तथा अद्यतन अपडेट किया जाता है, और एक बार दर्ज हुए डेटा को बाद में बदलना बहुत कठिन होता है। रिकॉर्ड हो गया, उसे बदला नहीं जा सकता या बदलने पर ट्रेस‎ हो जाता है। पारदर्शिता तथा ट्रेसबिलिटी सम्पत्ति-हिस्सा, पिछले मालिक, बंधक आदि की जानकारी आसानी से ट्रैक-की जा सकती है। नकली दस्तावेज़ या नकली हस्ताक्षर से लेन-देनों को रोकने में मदद मिल सकती है। दस्तावेज़ों की हाथ-मटकी कमी, मैनुअल सत्यापन में कम समय, बेहतर पहुँच।ब्लॉकचेन अपनाने में अनेक कानूनी, प्रशासकीय, तकनीकी और सामाजिक चुनौतियाँ हैं। नए कानून या पुराने कानूनों में संशोधन की आवश्यकता है ताकि ब्लॉकचेन-आधारित पंजीकरण का वैधाधिकार सुनिश्चित हो। SC ने इसी दिशा में Law Commission को रिपोर्ट देने का निर्देश दिया है। अलग-अलग प्रणाली में काम करते हैं, जिससे देशव्यापी प्रणाली बनाना चुनौतीपूर्ण होगा। डिजिटल पहुँच तथा साक्षरता ग्रामीण या पिछड़े क्षेत्रों में स्मार्ट-इन्फ्रास्ट्रक्चर, इंटरनेट-सक्रियता तथा उपयोगकर्ता-साक्षरता की कमी होगी। पुराने जमाने के दस्तावेज़ों को डिजिटल-ब्लॉकचेन-फ्रेंडली रूप में लाना आसान नहीं है। वहाँ सत्यापन, पुरानी पंजीकरण श्रृंखला आदि बड़ी चुनौती हैं।नागरिकों को इसे समझाने, उनके विश्वास को बढ़ाने, प्रक्रिया-सरलीकरण की जानकारी देना आवश्यक होगा।ताकि विलंब, भ्रम या असंतोष कम हो। (यह लेखक के व्य‎‎‎क्तिगत ‎विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अ‎निवार्य नहीं है) .../ 9 नवम्बर/2025