लेख
10-Nov-2025
...


11 नवम्बर को 122 सीटो पर मतदान होगा।गया,मधुबनी की दस दस सीटे और 12 सीटे ईस्ट चंपारण आदि की सीटें का समावेश है। सीमांचल में 4 जिले आते है।कटियार, अररिया, पूर्णिया और किशनगंज इन चार जिलों में 24 विधानसभा सीटे है।बिहार में इस चुनाव के बाद 14 नवम्बर को परिणाम घोषित होगा। पूर्णिया, धमदाहा, बनमनखी, रुपौली, बैसी, अमौर पूर्णिया जिले में आती है।यह सीमांचल का हिस्सा है।सीमांचल की लगभग 45% से 50% आबादी मुस्लिम है, जो बिहार के अन्य हिस्सों से काफी अधिक है।किशनगंज जिला तो लगभग 70% मुस्लिम बहुल है। अररिया, कटिहार और पूर्णिया में भी मुस्लिम आबादी 40–45% तक है।यही कारण है कि यहां एआईयूडीएफ,एआईएमआईएमऔर जेडीयू और कभी-कभी कांग्रेस को मुस्लिम वोटरों का अच्छा समर्थन मिलता है।यादव जाति मुख्यतः आरजेडी का पारंपरिक वोट बैंक भी सीमांचल में प्रभावशाली है, विशेषकर पूर्णिया व अररिया जिलों में।इसके अलावा कुर्मी, कोयरी, निषाद, मल्लाह, बनिया, कुशवाहा जैसी जातियाँ भी अच्छी संख्या में हैं।पासी, मुसहर, चमार समुदाय भी सीमांचल के ग्रामीण इलाकों में बड़ी संख्या में मौजूद हैं। इनका वोट आमतौर पर आरजेडी कॉंग्रेस या जेडीयू में बँटता है।ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत और कायस्थ जातियाँ भी शहरी केंद्रों जैसे कटिहार और पूर्णिया में हैं, परंतु इनकी संख्या अपेक्षाकृत कम है।यह वर्ग प्रायः बीजेपी या जेडीयूको समर्थन देता है।सीमांचल की 24 सीटें राज्य की सत्ता निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। यहाँ के वोट बैंक धार्मिक एकता और स्थानीय मुद्दों पर आधारित होते हैं, न कि केवल जातीय समीकरणों पर। पिछले चुनावों मेआरजेडी और कांग्रेस गठबंधन को मुस्लिम–यादव समीकरण से लाभ एआईएमआईएम ने कुछ सीटों पर मुस्लिम वोटों में सेंध लगाई जैसे—किशनगंज, अमौर, जोकीहाट भाजपा को सवर्ण और गैर-मुस्लिम पिछड़ी जातियों का समर्थन मिला। लेकिन जहां पर लालू और कांग्रेस का गठबंधन था,वहा पर आज भी लोग आस लगाए हुए है।इनको वोट चाहिए।विकास के नाम पर गुमराह किया जाता है।इस बार लालू और कांग्रेस को फायदा होने वाला नही है।अब इस बार एनडीए की तरफ ज्यादा झुके हुए है। सीमांचल के ज़िले कटिहार, पूर्णिया, अररिया, किशनगंजकुल सीटें24मुख्य प्रभावशाली समुदाय मुस्लिम, यादव, कुर्मी, कोयरी, पासी, ब्राह्मण, भूमिहारराजनीतिक रूप से सक्रिय दल आरजेडी, कांग्रेस,जेडीयू एआईएमआईएम और भाजपा है। मुख्य मुद्दे बेरोज़गारी, बाढ़, विकास, शिक्षा, अल्पसंख्यक सुरसीमांचल के बाद बिहार का वह क्षेत्र जहाँ भाजपा मज़बूत है। सीमांचल कटिहार, किशनगंज, पूर्णिया, अररिया के बाद भाजपा का सबसे मज़बूत क्षेत्र मिथिलांचल और मगध क्षेत्र माना जाता है।मिथिलांचल क्षेत्र में मुख्य जिले है।दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर, शिवहर जिसमे भाजपा का गढ़ माना गया है। यहाँ उच्च जाति ब्राह्मण, राजपूत, बनिया और मध्यम वर्गीय मतदाता भाजपा के कोर वोटर हैं।दरभंगा और मधुबनी भाजपा के किला क्षेत्र माने जाते हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने इस क्षेत्र की अधिकांश सीटों पर जीत दर्ज की थी। दरभंगा जिले की 6 में से 4 सीटें भाजपा के पास गईं।मधुबनी की 10 में से 6 सीटें भाजपा को मिलीं थी।मुजफ्फरपुर की अधिकांश शहरी सीटें भी भाजपा के खाते में गईं। दरभंगा, मधुबनी, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी में भाजपा को फिर से बढ़त मिलने की उम्मीद है। मिथिला क्षेत्र में हिन्दुत्व और प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता भाजपा के पक्ष में है। मगध क्षेत्र के मुख्य जिलों मेंगया, नवादा, नालंदा, औरंगाबाद, जहानाबाद, अरवल आदि का समावेश होता है। इस क्षेत्र में ओबीसी, अति पिछड़ा और ऊँची जातियों का संतुलन है।भाजपा को यहाँ औरंगाबाद, नवादा, गया ग्रामीण सीटों में अच्छा समर्थन मिला था।यहाँ के शहरी वोटर और व्यावसायिक समुदाय भाजपा को पसंद करते हैं।भाजपा ने यहाँ 2020 में लगभग 60% सीटें जीती थीं।औरंगाबाद, नवादा, जहानाबाद, अरवल जैसे जिलों में भाजपा की स्थिति पहले जैसी या बेहतर रहने की उम्मीद है।नालंदा और गया में जेडीयू के मुकाबले भाजपा को प्रत्यक्ष लाभ हो सकता है क्योंकि एनडीए के अंदर अब सीटों का सीधा मुकाबला विपक्ष से है। सीमांचल पूर्णिया, कटिहार, अररिया, किशनगंज कमजोर मामूली सुधार मिथिलांचल दरभंगा, मधुबनी, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी मज़बूत बरकरार या और बेहतर मगध गया, औरंगाबाद, नवादा, नालंदा अच्छी संभावित बढ़त भोजपुर-शाहाबाद बक्सर, आरा, रोहतास संतुलित बढ़त संभव है।घोषणा पत्र में बिहार में विपक्ष ने जो 2020 में वादे किए थे।वे कागज के पुलिंदे साबित हुए।चुनाव में इस बार सभी राजनैतिक दलों ने घोषणा पत्र दिया है।लेकिन भाजपा से संकल्प पत्र दिया है।भाजपा वादा पूर्ण करती है।यह उसकी ख्याति बरकरार है।इसी का कारण है कि भाजपा बारबार सत्ता हासिल कर रही है।बिहार में लालू के सुपुत्र तेजस्वी और कांग्रेस के महागठबंधन में राजनीतिक प्रयोग प्रारम्भ हुआ है।इस बार इन दलों ने इतिहास को नकारने की कोशिश की है।जिस तरह इन नेताओ पर भ्रष्टाचार के आरोप है और ये चाहते है कि सरकार बनने के बाद हम सबकुछ कर सकते है।लेकिन यह नही भूले कि भ्रष्टाचार में नाम आने के बाद सजा का प्राविधान है।बिहार में कांग्रेस सालों से हाशिये में है।अपने पुनरोद्धार के लिए बिहार में हाथ पांव मार रही है।राहुल औए प्रियंका आदि और अन्य दलों ने भी सबकुछ दांव पर लगा दिया है। हर दल की नजर युवा मतदाताओ पर है।हर दल में पीढ़ी और पट परिवर्तन का दृश्य है।तेजस्वी और कांग्रेस के साथ मतदाताओ का मिजाज ठंडा है।क्योंकि ये गुमराह करने वाली पार्टियां है।इनके शासन काल मे कानून व्यवस्था की पोलमपोल रहती है।चारो तरफ दादागिरी और कट्टा संस्कृति को पनपने में सहायक सिद्ध होते है।इन दलों में लूटपाट का कोई औचित्य नही है।लेकिन विकास के नाम पर इनकी भृकुटि तन जाती है।अपहरण, रेप और धर्मांतरण जैसे मुद्दे हावी होते है।कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दरमैया को माला और पगड़ी पहनाकर सम्मान किया जाने लगा और उन्होंने मना कर दिया।ज्यो ही मुस्लिम टोपी पहनाने के लिए कार्यकर्ता आगे आये तो उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर मुस्लिम टोपी पहन ली थी।इस तुष्टिकरण के बाद भी वोट के लिए हिन्दू वोटो का ध्रुवीकरण करने वाले नेताओं पर भरोसा करना कितना उचित है? (वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार स्तम्भकार) (यह लेखक के व्य‎‎‎क्तिगत ‎विचार हैं इससे संपादक का सहमत होना अ‎निवार्य नहीं है) .../ 10 नवम्बर/2025