लेख
10-Nov-2025
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भारत की अर्थव्यवस्था वर्तमान में एक दिलचस्प बदलाव के दौर से गुजर रही है। जहां अब तक देश की आर्थिक ऊर्जा का स्रोत युवा पीढ़ी को माना जाता था, वहीं अब यह तस्वीर बदलती नजर आई है। अर्थशास्त्री इसे सिल्वर इकोनॉमी का युग बता रहे हैं, यानी बुजुर्गों पर आधारित अर्थव्यवस्था। एक ओर कर्ज़ और उपभोक्तावाद में डूबे युवा हैं, तो दूसरी ओर स्थिर आय, बचत और विवेकपूर्ण खर्च के कारण बुजुर्ग वर्ग अर्थव्यवस्था की नई ताकत बनकर उभरा है। इस संबंध में बैंकिंग डेटा का उल्लेख किया जा सकता है, जिसमें यह बताया जा रहा, कि 2023 से 2025 के बीच 25 से 40 वर्ष के युवाओं का औसत कर्ज़ 42 प्रतिशत बढ़ा है। बढ़ती महंगाई, बेरोज़गारी, आसान कर्ज़ की उपलब्धता और दिखावे की संस्कृति ने युवाओं की बचत खत्म कर दी है। मोबाइल, गाड़ियां, फैशन और ऑनलाइन शॉपिंग जैसी चीज़ों ने उनकी कमाई को ईएमआई अर्थव्यवस्था में बदल दिया है। नतीजे में युवा वर्ग कर्ज के बोझ तले दबता चला जा रहा है। आज का युवा उधारी के जाल में फंसकर आर्थिक रूप से अस्थिर हो गया है। इसके उलट, बुजुर्गों ने अपने जीवनकाल में आय का लगभग 25-30 प्रतिशत हिस्सा बचत के रूप में सुरक्षित रखा। रिज़र्व बैंक के अनुसार, भारत की घरेलू बचत का लगभग 22 प्रतिशत हिस्सा 60 वर्ष से अधिक उम्र के नागरिकों के पास है। रिटायरमेंट फंड, पेंशन, ब्याज और संपत्ति से उन्हें स्थिर आय मिल रही है। यही वजह है कि अब बाज़ार की नज़र इस सिल्वर क्लास पर है। हेल्थकेयर, वेलनेस, बीमा, फार्मा, एस्टेट और टूरिज्म सेक्टर इस वर्ग को केंद्र में रखकर योजनाएं बना रहे हैं। लो-शुगर फूड्स, जॉइंट केयर उत्पाद, सीनियर-फ्रेंडली होम्स और तीर्थ यात्राओं जैसी सेवाएं तेजी से बढ़ी हैं। बुजुर्गों के लिए विशेष आवासीय सोसाइटियों की मांग में 28 प्रतिशत और वेलनेस टूरिज्म में 40 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। तकनीकी रूप से पहले पिछड़े माने जाने वाले बुजुर्ग अब डिजिटल अर्थव्यवस्था का हिस्सा बन चुके हैं। यूपीआई पेमेंट, ऑनलाइन दवाइयों की खरीद, ई-हेल्थ कंसल्टेशन और डिजिटल निवेश में उनकी सक्रिय भागीदारी बढ़ी है। सिल्वर इकोनॉमी ने न सिर्फ बाज़ार को नया उपभोक्ता वर्ग दिया है, बल्कि डिजिटल ट्रांजैक्शन को भी बूस्ट किया है। दिलचस्प बात यह है कि जो बुजुर्ग पहले परिवारों पर आश्रित माने जाते थे, अब वही कई परिवारों की आर्थिक रीढ़ बन गए हैं। बच्चों की शिक्षा, घरेलू खर्च और स्वास्थ्य बीमा जैसे जिम्मेदारियों का बड़ा हिस्सा आज बुजुर्गों की पेंशन या जमा पूंजी के ब्याज से पूरा हो रहा है। उनके अनुभव और वित्तीय अनुशासन ने उन्हें आधुनिक भारत की आर्थिक स्थिरता का आधार बना दिया है। भारत सरकार ने भी इस बदलाव को पहचाना है। यही वजह है कि 2024 में जारी सिल्वर इकोनॉमी पॉलिसी फ्रेमवर्क के तहत बुजुर्गों के स्वास्थ्य, रोजगार और वित्तीय सुरक्षा को सशक्त बनाने की दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं। नीति आयोग का अनुमान है कि 2030 तक भारत की सिल्वर इकोनॉमी 100 अरब डॉलर तक पहुंच सकती है, जिसमें सबसे बड़ा योगदान स्वास्थ्य, पर्यटन और वित्तीय सेवाओं का होगा। हालांकि इस परिवर्तन की एक चिंताजनक दिशा भी है, युवा वर्ग का बढ़ता कर्ज़ और घटती बचत। यदि यह प्रवृत्ति जारी रही, तो भविष्य में युवा आर्थिक रूप से बुजुर्गों पर निर्भर होते चले जाएंगे। इससे न सिर्फ आर्थिक बल्कि सामाजिक संतुलन पर भी असर पड़ेगा। बहरहाल भारत की सिल्वर इकोनॉमी आर्थिक परिवर्तन की कहानी है, जो यह दर्शाती है कि अनुशासन, बचत और स्थिरता कितनी दूर तक समाज को संभाल सकती है। इस बदलाव से सबक लेते हुए युवा पीढ़ी की अब यह जिम्मेदारी हो जाती है कि वह अपनी वित्तीय आदतों में सुधार लाए, और आय-बचत के बीच संतुलन स्थापित करे। यदि ऐसा हुआ, तो भारत न केवल सिल्वर इकोनॉमी का लाभ उठाएगा, बल्कि इसे स्वर्णिम अर्थव्यवस्था में बदल देगा, जहाँ अनुभव और ऊर्जा, दोनों मिलकर विकास की नई कहानी लिखेंगे। ईएमएस / 10 नवम्बर 25