लेख
15-Nov-2025
...


सोशल मीडिया के युग में आरोप लगाना बेहद आसान है। आरोपों की जांच नहीं होना सत्य और असत्य का अंतर धुंधला देता है। कुछ दिनों से इंटरनेट पर एक वायरल मेल तेजी से घूम रहा है। जिसमें दावा किया जा रहा है, कि जेफ्री एपस्टीन से जुड़े एक कथित दस्तावेज़ में भारत सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री का नाम शामिल है। यह दावा जितना सनसनीखेज है, उतना ही संवेदनशील भी है। यह आरोप सीधे तौर पर भारत सरकार के कैबिनेट मंत्री, वैश्विक कूटनीति, विदेश मंत्रालय, पेट्रोलियम मंत्रालय और शासन की नैतिकता से जुड़ता है। सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है, क्या ई-मेल में जो दस्तावेज़ हैं, वह वास्तविक दस्तावेज हैं? अभी तक भारत सरकार,अथवा किसी अंतरराष्ट्रीय जांच एजेंसी और अन्य किसी जिम्मेदार, मान्य स्रोत ने इस वायरल मेल की पुष्टि नहीं की है। बिना सत्यापन के किसी भी व्यक्ति, चाहे वह सामान्य नागरिक हो या कैबिनेट मंत्री के स्तर का हो, उस पर ऐसे गंभीर आरोप लगाना लोकतांत्रिक व्यवस्था के हित में नहीं है। ना ही पत्रकारिता की मर्यादा के अनुरूप हैं। फिर भी, यह घटना और घटना से जुड़े आरोप एक बड़ा सवाल खड़ा करते हैं। जब कोई आरोप या दावा राष्ट्रीय राजनीति और वैश्विक संबंधों से जुड़ा हुआ हो, तो सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी, पारदर्शिता के साथ जांच करते हुए सच्चाई को सुनिश्चित करना होता है। यदि आरोप किसी केंद्रीय मंत्रिमंडल के वरिष्ठ और संवेदनशील विभाग के मंत्री का नाम अंतरराष्ट्रीय दस्तावेज़ में आता है। चाहे वह सत्यापित हो या वायरल दावा हो। सरकार का कर्तव्य है, वह स्पष्ट रूप से दस्तावेज के आरोपी की जांच कराये और उस पर भारत सरकार वस्तु स्थिति से अवगत कराये। ऐसे संवेदनशील आप पर केंद्र सरकार की चुप्पी भ्रम और अविश्वास को जन्म देती है। एपस्टीन मामला स्वयं एक अंतरराष्ट्रीय बहस का विषय बना हुआ है। यह मामला अमेरिका से भी जुड़ा हुआ है। एलन मस्क ने भी इसके बारे में कई तरह के आरोप लगाए हैं। कई देशों के बड़े-बड़े राजनेता, उद्योगपति और प्रभावशाली व्यक्तियों के नाम चर्चा मे हैं। अधिकांश जानकारी अधूरी है। अभी तक आधिकारिक रूप से कोई जानकारी सामने नहीं आई है। ऐसे में किसी भी “वायरल पीडीएफ” को सत्य मान लेना और राजनीतिक निष्कर्ष निकालना एक खतरनाक प्रवृत्ति है। इस तरह के आरोप से राजनीतिक सामाजिक और प्रशासनिक व्यवस्था भंग होती है। मीडिया की भूमिका यहाँ और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। गोदी मीडिया कहकर भारतीय मीडिया को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निशाना बनाया जाता है। यह भी वास्तविकता है, किसी भी संवेदनशील मामले में ठोस सबूतों का इंतजार करना पत्रकारिता का मूल सिद्धांत है। मीडिया खुद अपने स्तर पर तथ्यों को एकत्रित करके इसे सार्वजनिक करता है, ताकि दोनों ही पक्ष अपनी-अपनी बातों को सामने ला सकें। सनसनी फैलाने से अधिक आवश्यक है, जिस तरह के दस्तावेज सामने आए हैं उनकी तथ्यात्मक जांच की जाए और वास्तविक स्थिति को सामने लाया जाए। लोकतंत्र में सत्ता से सवाल पूछना ज़रूरी है। उतना ही ज़रूरी है, सवाल आधारहीन ना हों। भारत सरकार को इस मामले पर स्पष्टता के साथ सामने आना चाहिए। यदि दस्तावेज़ फर्जी हैं, तो सरकार को सार्वजनिक रूप से इस मामले में वक्तव्य देकर आरोपों को खारिज करना चाहिए। अभी तक कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है, यह मामला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वायरल है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सलाहकार रह चुके एलन मस्क द्वारा इस मामले को उठाया गया था, लेकिन किसी दबाव के कारण उन्होंने भी अब इस मामले में चुप्पी साध ली है। यह अमेरिका और भारत से जुड़ा हुआ मामला नहीं है, इसकी जद में कई देश के राजनेता आ रहे हैं। ये आरोप नैतिकता, राजनीतिक भ्रष्टाचार तथा सत्ता के खेल से जुड़े हुए हैं। ऐसी स्थिति में जब विदेश मंत्रालय और पेट्रोलियम मंत्रालय पर इसका असर हो रहा हो ऐसी स्थिति में भारत सरकार को इस मामले की जांच कराकर वास्तविक स्थिति को सामने लाना जरूरी है। इतने गंभीर मामले की जांच पारदर्शिता के साथ भारत सरकार को करानी चाहिए। इस तरह के आरोप से विदेश नीति एवं पेट्रोलियम मामले में भ्रष्टाचार को लेकर भी कई मामले उठकर सामने आ रहे हैं। अमेरिका द्वारा रूस से तेल खरीदने पर भारत पर जो टैरिफ लगाया गया है। इन आरोपों के तार उनसे भी जुड़ते हैं। ऐसी स्थिति में केंद्र सरकार से जवाबदेही की मांग लोकतांत्रिक व्यवस्था में बनती ही है। केंद्र सरकार जल्द से जल्द इस मामले में स्थिति को स्पष्ट करेगी, यह आशा की जा सकती है। एसजे/ 15 नवम्बर/2025